Cycle: प्राचीन काल में अगर पहिया इंसान की सबसे बड़ी खोज थी तो साइकिल को निश्चित तौर पर इसका सबसे बढ़िया प्रयोग कहा जा सकता है. साइकिल (Cycle) को छोड़कर ट्रांसपोर्ट का ऐसा दूसरा कोई भी बढ़िया जरिया नहीं है जो कि सस्ता, पर्यावरण अनुकूल, आसानी से मेंटेन करने लायक, चलाने का जीरो खर्च, दूरी के पालन और एक रोमांचक पुट वाला है. इसके साथ ही अगर शारीरिक कसरत को भी इससे जोड़ दें तो ये एक जबरदस्त कॉम्बिनेशन बन जाता है.
भारतीयों ने महामारी के दौरान साइकिल (Cycle) के फायदों का अहसास किया है. गुजरे एक साल में साइकिलों की बिक्री ने रफ्तार पकड़ी है. ये हमारी सरकारों के लिए कोई छिपा हुआ संदेश नहीं है.
जाहिर है सरकारों को साइकिलों को ट्रांसपोर्ट के जरिए के तौर पर प्रमोट करना चाहिए. ये काम पूरे देश में होना चाहिए. सभी नई टाउनशिप्स को अनिवार्य रूप से डेडिकेटेड साइकिल ट्रैक बनाने चाहिए.
शहरी प्रशासनों को इस तरह के ट्रैक (Cycle Track) जोड़ने की संभावनाएं तलाशनी चाहिए. कोलकाता म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन ने ऐसा ही कुछ किया है.
खबरों से पता चल रहा है कि महामारी के दौरान बीजिंग में 150 फीसदी साइकिलें बढ़ी हैं. चीन में 37.2 फीसदी लोग साइकिल इस्तेमाल करते हैं. स्विट्जरलैंड और बेल्जियम में ये आंकड़ा 48 फीसदी, जापान में 57 फीसदी और फिनलैंड में 60 फीसदी है. कोपेनहेगेन को दुनिया का सबसे साइकिल-फ्रेंडली शहर माना जाता है.
भारत में कई वजहों से ऑटोमोबाइल सेक्टर में फोकस शिफ्ट हो रहा है. इसमें सबसे बड़ी वजह लाखों परिवारों की बढ़ती महत्वाकांक्षाएं हैं. इसी के साथ महंगी कारें खरीदने का सपना रखने वाला शिक्षित तबका अब साइकिलों (Cycle) के लिए भी अपनी दिलचस्पी दिखा रहा है.
किसी गरीब मजदूर या स्कूल जाती ग्रामीण बच्ची के हाथ में साइकिल (Cycle) एक संघर्ष की निशानी है. कुछ शहरी एग्जिक्यूटिव्स ने अब साइकिल से दफ्तर जाना भी शुरू कर दिया है. इसकी एक बड़ी वजह स्वास्थ्य संबंधी कारण हैं.
अगर कोई सामान्य शख्स इसे आम वजहों से ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना शुरू कर देगा तो इससे आत्मनिर्भर शब्द को सबसे ज्यादा बल मिलेगा.
भारत में ट्रांसपोर्ट के लिए साइकिल (Cycle) से अच्छा कुछ भी आत्मनिर्भर और विनम्र जरिया नहीं हो सकता है.
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