अनिवार्य वैक्सीनेशन को लेकर कुछ तबकों में लगातार बहस जारी है. कोविड के खिलाफ जंग में कई वैक्सीन्स अब तक विकसित हो चुकी हैं. हालांकि, वैक्सीन लगवाने या नहीं लगवाने का फैसला अभी तक नागरिकों पर ही है. वैक्सीनेशन अनिवार्य बनाने से इसका कवरेज तेजी से बढ़ेगा, लेकिन जबरन कोई फैसला थोपना मौजूदा वक्त में उचित नहीं जान पड़ता.
हालांकि, कोविड की तीसरी लहर आना तय माना जा रहा है. ऐसे में इस बात को लेकर शायद ही कोई शक है कि वैक्सीन्स इस जंग में हमारा सबसे बड़ा हथियार हैं. हमारे पास वैक्सीनेशन की रफ्तार कम होने देने की गुंजाइश नहीं है. 85 लाख वैक्सीन डोज एक दिन में लगाने का पीक एक महीने पहले गुजर गया है और उसके बाद से ये आंकड़ा कम हो रहा है.
हालांकि, वैक्सीन्स लगाने के काम में तेजी लाई जानी चाहिए, लेकिन सरकार को तत्काल आधार पर वैक्सीनेशन से जुड़ी हुई हिचक को भी दूर करना होगा.
सरकार, हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स, पॉलिसीमेकर्स और नागरिकों को खुद आगे आकर इससे जुड़े हुए मिथकों और अफवाहों को खत्म करना होगा.
राजनीतिक पार्टियां भी देश में लोगों की वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट दूर करने में अहम भूमिका निभा सकती हैं. हर पार्टी के पास जमीन तक जुड़े कार्यकर्ताओं और फॉलोअर्स की बड़ी तादाद होती है. इनका इस्तेमाल लोगों का वैक्सीनेशन से जुड़ा डर दूर करने में किया जा सकता है.
कई राजनीतिक पार्टियां सालभर रक्तदान कैंप चलाती हैं. इस तरह की ही मुहिम वैक्सीन को लेकर लोगों को शिक्षित बनाने में भी होनी चाहिए. इससे बड़ा फर्क पैदा होगा.
सरकार वैक्सीनेशन को स्कूली पाठ्यक्रम का भी हिस्सा बनाने पर सोच सकती है. इससे जागरूकता बढ़ाने में मदद मिलेगी. कोविड के नए वैरिएंट्स देशों के सामने फिर से खतरा पैदा कर रहे हैं, ऐसे में हमें अपने पास मौजूद वैक्सीन नाम के हथियार का इस्तेमाल अपने बचाव में करना चाहिए. इस मामले में रियायत की कोई गुंजाइश नहीं है.
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