सीमेंट महंगा होना शुरू हो गया है. अगस्त के बाद से कई जगहों पर 50 किलो के कट्टे के लिए 10-15 रुपए अधिक चुकाने पड़ रहे हैं. यह बढ़ोतरी तब हुई है जब सीमेंट कंपनियों को मई से अगस्त तक कीमतों में 40-60 रुपए की कटौती करनी पड़ी थी लेकिन अब मानसून की बरसात उठने लगी है जिसके साथ सीमेंट की मांग बढ़ेगी और इसी मांग को देखते हुए सीमेंट कंपनियों ने दाम बढ़ाना शुरू कर दिए हैं.
आशंका ये भी है कि सीमेंट की कीमतों में आने वाले दिनों में और बढ़ोतरी होगी क्योंकि सप्लाई के मुकाबले मांग अधिक रहने का अनुमान है. ब्रोकिंग कंपनी निर्मल बंग का मानना है कि आने वाले दिनों में सीमेंट की रुकी हुई मांग भी निकल सकती है और साथ में 2024 के चुनाव से पहले केंद्र सरकार की तरफ से इंफ्रास्ट्रक्चर पर किया जाने वाला खर्च भी बढ़ेगा. जिस वजह से सीमेंट की सप्लाई के मुकाबले इसकी मांग अधिक रह सकती है.
सीमेंट की मांग बढ़ने की उम्मीद से ही अब शेयर बाजार के जानकार अधिकतर सीमेंट कंपनियों में पैसा लगाने की सलाह दे रहे हैं. निर्मल बंग ने कई कंपनियों खरीदारी की सलाह के साथ लक्ष्य को भी बढ़ा दिया है. लेकिन सीमेंट कंपनियों में निवेश की सलाह के पीछे सिर्फ मांग बढ़ना ही वजह नहीं है, उत्पादन लागत का सही प्रबंधन भी है.
महंगे कोयले के बावजूद सीमेंट कंपनियों के लिए हाल के दिनों में सीमेंट उत्पादन की लागत में कुछ कमी भी आई है. क्योंकि कंपनियों ने ईंधन के लिए कोयले की जगह अब पेटकोक के इस्तेमाल को बढ़ाया है. साथ में ग्रीन एनर्जी और ईंधन के अन्य विकल्पों पर भी जोर दिया है. सीमेंट उत्पादन की कुल लागत में ईंधन की हिस्सेदारी 30-35 फीसद होती है. यानी ईंधन सस्ता होगा तो कंपनियों के लिए लागत घटेगी. हाल में पेटकोक की कीमतों में कमी आई है और इसके इस्तेमाल को बढ़ाकर सीमेंट कंपनियों ने अपनी लागत को बढ़ने नहीं दिया.
सीमेंट की मांग सप्लाई और लागत के इस गणित में कंपनियां और उनके निवेशक तो फायदे में रह सकते हैं लेकिन सीमेंट की खपत करने वाले ग्राहकों की जेब कटना तय है. क्योंकि मांग और सप्लाई का यह गणित सीमेंट के और महंगा होने का संकेत दे रहा है.