Election Manifesto: ताजा चुनावी घमासान में पश्चिम बंगाल पर सबकी नजर है. वैसे तो हर राज्य का चुनाव महत्वपूर्ण है लेकिन पश्चिम बंगाल में रोमांच थोड़ा एक्सट्रा है. उसी रोमांच से जुड़ने के लिए मैंने वहां की सारी बड़ी पर्टियों- टीएमसी, बीजेपी, लेफ्ट और कांग्रेस- के घोषणा पत्र पढ़ डाले. इतने बड़े संग्राम में भी वादों की जो लिस्ट दिखी उसे देखकर आपको वो फिल्मी गाना ही याद आएगा- “हमरे बलमा बेईमान हमें पटियाने आए हैं.” इसमें आप जोड़ सकते हैं कि बड़े-बड़े सपने दिखाने वाले वादों से पटियाने आए हैं.
कुछ वादों पर गौर कीजिए. ध्यान रहे कि ये वादे किसी एक पार्टी की नहीं है. सबके वादों का सैंपल है. देखिए जरा –
– राज्य के दो शहरों को एलेक्ट्रिक व्हीकल का हब बनाएंगे.
– प्रति व्यक्ति आय को दोगुना होने में 10 साल लगा था. अब पांच साल में ही ऐसा कर देंगे
– स्वास्थ्य और शिक्षा पर जितना खर्च होता आया है उससे कई गुना ज्यादा खर्च शुरू करे देंगे. एक विज्ञापन की तर्ज पर कुछ इस तरह का वादा कि सारे घर के बदल डालेंगे.
– जो फैक्टरियां बंद हो गई हैं उनके कर्मचारियों को भी तनख्वाह का प्रबंध किया जाएगा.
– हर साल लाखों एसएसएसई खुलेंगे और नौकरियों की बारिश होगी.
– बीपीओ (BPO) की भरमार होगी, स्किल सेंटर्स खुलेंगे.
ये कोरे वादे होते तो कोई बात नहीं. ये ऐसे वादें हैं जिसके आधार पर वोट मांगे जा रहे हैं (Election Manifesto), इसलिए इनकी पड़ताल होनी ही चाहिए.
पश्चिम बंगाल में कुल सरकारी खर्च का करीब 42 परसेंट से ज्यादा सैलरी, पेंशन और कर्ज पर ब्याज चुकाने में चला जाता है. मतलब यह कि शिक्षा पर सालाना अगर 10,000 करोड़ रुपए का बजट है तो इसका करीब 4,200 करोड़ रुपए का हिसाब तो पहले से तय होता है. इसके बाद जो रकम बचती है उससे कुछ बड़ी योजना पूरी हो जाए, ऐसा संभव नहीं है. ऐसे में शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव का जो वादा कर रहे हैं वो ये तो बताएं कि बदलाव को फंड कैसे करेंगे.
उसी तरह जिस प्रति व्यक्ति आय को दोगुना होने में 10 साल लगे वो पांच साल में ही अब दोगुना कैसे हो जाएगा – छूमंतर से तो होगा नहीं. ऐसे में इसका रोडमैप तो दीजिए.
कुल मिलाकर मेरा कहना है कि हमें पार्टियों से चुनावी घोषणा पत्र (Election Manifesto) का ठीक से हिसाब मांगना चाहिए. अभी घोषणा पत्र जिस तरह से लिखे जा रहे हैं उसके आधार पर हिसाब मांगना मुश्किल होगा. इसलिए हम सवाल पूछें कि चुनावी घोषणा पत्र में किए गए वादे पूरे कैसे होंगे.
लोकतंत्र में चुनाव ही ऐसा समय होता है जब नेताओं से हिसाब मांगा जाता है, जिम्मेदारियां तय की जाती है. अगर इस समय भी हमने आंखे बंद रखीं तो पार्टियों को सही फीडबैक नहीं मिल पाएगा और वो अपने हिसाब से फैसले लेते रहेंगे. फिर जनता के मुद्दों का क्या?
जनता द्वारा, जनता का और जनता के लिए वाले शासन तंत्र में जनता के मुद्दे ही एजेंडा नंबर वन होना चाहिए. ऐसा चुनाव के समय हिसाब मांगने से ही संभव है. और इसकी शुरुआत घोषणा पत्र (Election Manifesto) की पड़ताल से ही होनी चाहिए.
(Disclaimer: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.)
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