Assam: असम का एक छोटा सा गांव इन दिनों खासा चर्चा में है. दरअसल, इस गांव की महिलाएं कोरोना काल में अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत रखने की बेहतरीन मिसाल समाज के समक्ष पेश कर कर रही हैं.
जी हां, यह ऐसा गांव है, जहां पहुंचते ही आपको चरखे की चूं-चूं और करघे की खट-खट की आवाज सुनाई देगी. दरअसल, असम (Assam) का यह गांव खूबसूरत और रंग-बिरंगे कपड़े बनाने के लिए जाना जाता है.
कहते हैं कि असम के इस गांव की युवतियां कपड़ों पर परियों की गाथाएं बुनती हैं. प्रकृति के साथ पली-बढ़ीं यहां की महिलाओं के रंगों की समझ देखते ही बनती है.
इसलिए इस काम को यहां की महिलाएं बखूबी ढंग से करती हैं. ये महिलाएं अपने हाथ के हुनर और कलात्मकता के आधार पर अच्छे-अच्छे उत्पाद तैयार कर उन्हें बेचती हैं, जिससे इनकी अच्छी आय भी होती है.
चराईदेव जिले के मेहमोरा गांव की यह महिलाएं पारम्परिक गमोचा कपड़े की कताई और बुनाई का कार्य करती हैं.
यह गमोचा त्योहार के दौरान उपहार के रूम में भेंट देने के लिए लोकप्रिय है. इस साल इनके पास कुछ नई कालीनों के ऑर्डर हैं.
ये हैं मझोतपुर, सेजपुर और अमगुरी गांव की महिलाएं, जिनकी आजीविका पहले कृषि पर ही निर्भर थी, लेकिन खेती की जमीन कम होने के कारण इनका गुजारा मुश्किल से होता था, लेकिन अब इन गांवों की महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं और अपने पारम्परिक परिधानों को नई पहचान भी दिला रही हैं.
इसके लिए राज्य के ग्रामीण रोजगार मिशन द्वारा चार स्वयं सहायता समूह की 36 महिलाओं को कालीन और गलीचा बनाने की ट्रेनिंग दी गई.
रोजगार अभियान के तहत प्रशिक्षित महिलाएं अपने परिवारों की मदद करने के लिए अच्छी कमाई कर रहे हैं.
आज ये महिलाएं आर्थिक विकास की नई पटकथाएं लिख रही हैं. कोविड महामारी के इस दौर में भी अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बना रही हैं.
हालांकि यह सच है कि इन महिलाओं के सरकार ने वित्तीय संवृद्धि के रास्ते पर आगे बढ़ाया है, लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि इनकी सफलता अपनी पहल के कारण ही है.
प्रगति करने की चाहत, कुछ सकारात्मक करने का संकल्प और पूरी तरह से कुछ नया करने की कोशिश ने इन महिलाओं को प्रेरणा का स्रोत बनाया है.
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