टैक्स चोरी रोकने के लिए आयकर विभाग कई कदम उठा रहा है. हाई वैल्यू ट्रांजैक्शन यानी मोटे लेनदेन पर नजर रखी जा रही है. विभाग चाहता है कि लोग अपनी कमाई और खर्च को आयकर रिटर्न में दिखाए और उस हिसाब से टैक्स का भुगतान करें. दरअसल, आयकर विभाग अब इस लॉजिक पर काम करता है कि कोई व्यक्ति अपनी कमाई तो छिपा सकता है, लेकिन अपने खर्च या निवेश नहीं छिपा सकता है. पिछले कुछ सालों में आयकर विभाग ने एक Mechanism यानी व्यवस्था बनाई है, जिससे खर्च और निवेश पर नजर रखा जाता है.
सवाल है कि आयकर विभाग हमारे किस लेनदेन पर नजर रखता है. इसका जवाब है हाई-वैल्यू ट्रांजैक्शन यानी बड़े खर्च और निवेश पर. इस व्यवस्था का नाम है Statement of Financial Transaction यानी SFT. इसके तहत, विभिन्न तरह के लेनदेन के लिए अलग-अलग सीमा तय की गई है. इस सीमा से ज्यादा का लेनदेन होने पर संबंधित इकाई इसकी जानकारी आयकर विभाग को देती है.
किसे और कब देनी होती है जानकारी? 1)- पहला ट्रांजैक्शन बचत खाते से जुड़ा है. पूरे वित्त वर्ष में 10 लाख रुपए या उससे ज्यादा कैश बचत खाते में जमा या निकालने पर बैंक इसकी जानकारी आयकर विभाग को देता है. ये लेनदेन चाहे एक खाते से हो या उससे ज्यादा खाते से. इसके अलावा, कैश देकर 10 लाख रुपए या उससे ज्यादा का डिमांड ड्रॉफ्ट (DD), पे ऑर्डर या बैंकर चेक बनाने की जानकारी भी दी जाती है.
2)- करंट अकाउंट यानी चालू खाते में 50 लाख रुपए या इससे ज्यादा कैश जमा करने या निकालने पर आयकर विभाग को जानकारी दी जाती है.
3)- एक वित्त वर्ष में 10 लाख या उससे ज्यादा के टाइम डिपॉजिट यानी FD (फिक्स्ड डिपॉजिट) की जानकारी भी टैक्स डिपार्टमेंट को दी जाती है. कैश और डिजिटल दोनों मामलों में यह लागू होता है. FD रिन्यूएल की जानकारी नहीं भेजी जाती है.
4)- चौथा ट्रांजैक्शन क्रेडिट कार्ड को लेकर है. एक लाख या उससे ज्यादा का क्रेडिट कार्ड बिल कैश में या फिर 10 लाख या उससे ऊपर का बिल किसी दूसरे तरीके से भरने पर क्रेडिट कार्ड कंपनी या बैंक इसकी जानकारी आयकर विभाग को देते हैं.
5)- पांचवां ट्रांजैक्शन मकान, फ्लैट और जमीन से जुड़ा है. अगर आप 30 लाख रुपए या उससे ज्यादा की प्रॉपर्टी खरीदते या बेचते हैं तो इसकी जानकारी देना प्रॉपर्टी रजिस्ट्रार का काम है. 50 लाख से ज्यादा की प्रॉपर्टी खरीदने पर 1 फीसदी TDS (स्त्रोत पर कटौती) काटा जाता है. TDS कटौती की वजह से भी लेनदेन की जानकारी विभाग के पास पहुंच जाती है.
6)- अगर कोई व्यक्ति एक वित्त वर्ष में 10 लाख या उससे ज्यादा के शेयर, डिबेंचर, बॉन्ड या म्यूचुअल फंड खरीदता है तो इसकी जानकारी आयकर विभाग को देना उस कंपनी या संस्थान की जिम्मेदारी है.
7)- सातवां ट्रांजैक्शन आम आदमी से जुड़ा है. मालती जैसे करोड़ों लोग इसके दायरे में आते हैं. किसी वस्तु या सेवा की खरीद के लिए 2 लाख रुपए से ज्यादा का नगद भुगतान करने पर संबंधित विक्रेता को इसकी जानकारी इनकम टैक्स विभाग को देनी होती है… उदाहरण के लिए आप ज्वैलरी खरीदते हैं और 2 लाख से ज्यादा की रकम कैश में देते हैं तो यह दुकानदार की जिम्मेदारी है कि वो इसकी जानकारी विभाग को दे… इसके अलावा, 2 लाख रुपए से ऊपर के सभी लेनदेन के लिए आपको पैन कार्ड भी देना होता है…
पैन, मोबाइल नंबर और आधार भी जरिया पैन, मोबाइल नंबर और आधार से भी वित्तीय लेनदेन की जानकारी आयकर विभाग तक पहुंचती है. क्योंकि करीब-करीब हर बड़े लेनदेन में इनका इस्तेमाल होता है. उदाहरण के लिए, टू-व्हीलर छोड़कर कोई और गाड़ी खरीदने या बेचने पर पैन लगता है. इसी तरह, बैंक अकाउंट या डीमैट खाता खोलने, क्रेडिट कार्ड अप्लाई करने के लिए पैन की जरूरत है. अगर आपका बैंक जमा, इंश्योरेंस प्रीमियम, म्यूचुअल फंड या बॉन्ड खरीद, रेस्टोरेंट, होटल या फॉरेन ट्रिप का बिल 50 हजार रुपए से ज्यादा है तो भी पैन देना होता है. प्रॉपर्टी से किराया मिलने पर किराएदार को पैन देना होता है.
करदाताओं की आमदनी पर नजर रखने का TDS भी एक तरीका है. बैंक या पोस्ट ऑफिस में जमा रकम पर ब्याज और प्रॉपर्टी खरीदने समेत अन्य मामलों में भी TDS डिडक्ट होता है. इससे भी आयकर विभाग को आपकी कमाई के बारे में पता चल जाता है.
आप चाहे या न चाहे आपके हर बड़े लेनदेन की खबर आयकर विभाग को है. आपको तब तक घबराने की जरूरत नहीं है जब तक आप अपने खर्च और निवेश को कमाई से जस्टीफाई कर सकते हैं. कमाई और खर्च में अंतर होने पर आयकर विभाग नोटिस थमा सकता है. वित्त वर्ष में किए गए सभी खर्च-निवेश का ब्योरा आपको अपने एनुअल इंफोर्मेशन स्टेटमेंट (AIS) में मिल जाएगा. जिसे इनकम टैक्स विभाग की वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते हैं. आयकर रिटर्न भरने से पहले AIS जरूर चेक करें ताकि आमदनी और खर्च या निवेश में कोई अंतर न हो.
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