रोशन भाई शेयर बाजार के मंझे हुए खिलाड़ी हैं जो वैल्यू investing पर फोकस करते हैं. वैल्यू investing यानी अपनी असली कीमत से नीचे कारोबार कर रहे अच्छे शेयरों में सस्ते भाव पर खरीदारी कर ऊंचे भाव पर बेचकर मुनाफा कमाना. पर केवल अच्छी वैल्यू मिलना ही शेयर के चुनाव के लिए काफी नहीं है और रोशन भाई को इसकी सीख Taparia Tools नाम की कंपनी से मिली है.
दरअसल हुआ यूं कि 30 मई को FY23 के नतीजों के साथ-साथ इस कंपनी ने 77.50 रुपए डिविडेंड और 4:1 बोनस शेयरों की घोषणा भी की थी. 4:1 यानी हर एक शेयर पर 4 बोनस शेयर दिए जाएंगे. अगर हम बोनस को छोड़ भी दें तो 12 रुपए के शेयर जोकि उस समय का भाव था, उस पर 77.50 रुपए के डिविडेंड की घोषणा को देखकर न केवल रोशन भाई बल्कि कोई भी हैरान हो जाता और सीधे लगा देता खरीदारी का ऑर्डर जैसा कि रोशन भाई ने भी किया. पर जैसे ही उन्होंने शेयर खरीदने के लिए बिड लगाई तो पता चला कि कंपनी के शेयर होल्डर्स शेयर बेच ही नहीं रहे और उससे से भी ज्यादा इस कंपनी के ज्यादा शेयर ट्रेड ही नहीं होता यानी वॉल्यूम न के बराबर हैं.
खैर, रोशन भाई को शेयर खरीदने का मौका नहीं मिला. लेकिन 12 रुपए के शेयर पर 77.50 रुपए के डिविडेंड की गुथ्थी उन्हें समझ नहीं आ रही थी. और वे इस गुत्थी को सुलझाने में लग गए. रोशन भाई ने जब थोड़ी रिसर्च की, कंपनी के नतीजे देखे, शेयर होल्डिंग पैटर्न देखा. उन्हें पता चला कि कैसे कंपनी के प्रमोटर्स खेल करके शेयर के भाव को Manipulate कर रहे हैं और अपनी ही फैमिली को फायदा पहुंचाया जा रहा है.
सबसे पहले रोशन भाई ने इस कंपनी के वित्तीय प्रदर्शन पर नजर डाली. FY23 में कंपनी की ₹764 करोड़ रुपए की आय थी और मुनाफा 72.32 करोड़ रुपए जबिक मार्केट कैप केवल 3.34 करोड़ रुपए, शेयर बाजार के जानकार किसी भी व्यक्ति को ये आंकड़े हैरान करने वाले थे, रोशन भाई को भी हैरानी हुई.
फिर उन्होंने तापड़िया टूल्स के शेयरहोल्डिंग पैटर्न को चेक किया. कंपनी के प्रमोटर्स यानी Taparia और Bangur फैमिली के पास करीब 70% हिस्सेदारी है यानी करीब सवा 21 लाख शेयर और पब्लिक के पास 30.2% हिस्सा है जोकि सवा 9 लाख शेयरों के आसपास बैठता है. यानी कि कंपनी के कुल outstanding share केवल 30 लाख 35 हजार ही हैं.
इससे एक बात तो पता चली कि कंपनी की इक्विटी छोटी है यानी कुल शेयरों की संख्या बहुत कम है जिस वजह से शेयर की कीमत को कंट्रोल करना कोई मुश्किल बात नहीं है. पर फिर भी रोशन भाई की जिज्ञासा शांत नहीं हुई और उन्होंने पब्लिक शेयरहोल्डर्स की detail देखी तो पूरा माजरा ही साफ हो गया. कंपनी के पब्लिक शेयरहोल्डर्स यानी आम निवेशकों में से ज्यादातर लोगों के surname यानी कुलनाम Taparia और Bangur ही नजर आएंगे. यानी कि indirectly अब भी प्रमोटर्स के पास ही लगभग पूरा हिस्सा है और वही price को कंट्रोल कर रहे हैं. शायद यही कारण है कि इस कंपनी के प्रमोटर्स पर आरोप भी लगते रहे हैं कि free float को यानी खुले बाजार में ट्रेडिंग के लिए मौजूद शेयरों को खुद प्रमोटर्स ही कंट्रोल कर रहे हैं..
इन आरोपों के मद्देनजर सितंबर से दिसंबर 2010 के दौरान कंपनी ने कुल 11 प्रमोटर और प्रमोटर ग्रुप एन्टिटीज को reclassify करने का फैसला लिया था और इन एन्टिटीज को पब्लिक शेयरहोल्डर्स यानी गैर प्रमोटर का दर्जा दिया था. इन 11 एन्टिटीज के पास कंपनी की 12.28% हिस्सेदारी थी. लेकिन कंपनी के इस कदम के बावजूद 26 जून 2019 को मार्केट रेगुलेटर SEBI ने एक ऑर्डर पारित किया जिसमें कहा गया था कि केवल इन 11 एन्टिटीज को reclassify करने से इनका directly या indirectly कंपनी पर कंट्रोल खत्म नहीं हुआ क्योंकि ये तमाम एन्टिटीज प्रमोटर्स के साथ मिलकर काम कर रही है. SEBI के इस ऑर्डर को कंपनी ने SAT यानी Securities Appeallate Tribunal में चुनौती दे दी थी जिसके बाद 9 नवंबर 2021 को SAT ने SEBI के ऑर्डर को खारिज कर दिया
तो अब रोशन भाई को पूरी कहानी समझ में आ गई कि कैसे प्रमोटर्स अपनी कंपनी के शेयरों में खेल करते हैं? प्रमोटर्स कैसे शेयर की कीमतों को manipulate करते हैं? और किस तरह खुद की फैमिली को पूरा डिविडेंड और पूरा फायदा पहुंचाते हैं? यानी कि एक जेब से पैसा निकाल कर कैसे अपनी ही दूसरी जेब में ट्रांसफर करते हैं.
एक बात तो साफ है कि Taparia Tools को लेकर regulators यानी SEBI के साथ-साथ stock exchanges को भी कदम उठाने की जरूरत है. ऐसे शेयरों में Corporate governance के issues होते हैं. निवेशकों को बिना समझे बड़े डिविडेंड या किसी और लालच के चलते ऐसे शेयरों में पैसा लगाने से बचना चाहिए और केवल फंडामेंटल आधार पर लंबी अवधि के लिए निवेश करना चाहिए. अगर खुद रिसर्च न कर पाएं तो किसी वित्तीय सलाहकार की राय लेनी चाहिए.
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