कमरे में पड़े गुप्ता जी पंखे को ताक रहे थे. दूसरी तरफ से जैसे पंखा एकटक उन्हें घूर रहा था स्थिर और शांत. शाम के 6 बजे थे और पसीना गुप्ता जी के सिर से पैर तक बह रहा था. दोपहर 12 बजे से बत्ती गायब थी और इनवर्टर भी टैं बोल गया था. अभी तो पूरी रात बाकी है. पिछले 15-20 दिन से ये जैसे रोज का हाल हो गया था…रोज 8-10 घंटे बत्ती गायब रहती है. आखिर में हार मानकर गुप्ता जी कुछ बुदबुदाते हुए बेड से उठ ही गए. फिर उनके मन में आया कि घर में गर्मी से सड़ने से अच्छा है कि रामू की टपरी पर ही चला जाए.
वहां, गुल्लू भी मिल जाएंगे…बढ़िया पेड़ की छांव है…रामू से एक ठंडी लस्सी भी पी लेंगे. गुप्ता जी ने तौलिये से पसीना पोंछने की एक आखिरी नाकाम कोशिश की, इसके बाद साइकिल उठाई और चल दिए रामू की टपरी पर.
उधर, रामू और गुल्लू के साथ दुकान से लगा पेड़ भी मुंह लटकाए खड़ा था. खैर, गुप्ता भी पहुंच गए दुकान पर…साइकिल टिकाकर गुप्ता जी बोलेः अरे, हवा भी नहीं चल रही…क्यों रामू तेरे यहां भी लाइट नहीं आ रही क्या?
रामूः अरे ये क्या कोई मुख्यमंत्री आवास है जो हर वक्त लाइट रहेगी.
गुल्लूः गुप्ता जी… तुम्हारी सरकार देखो क्या-क्या दिन दिखाती है.
गुप्ता जीः हर बात में सरकार को क्यों घेर लेते हो.
रामूः इसलिए दद्दा क्योंकि रोज 10-12 घंटे बत्ती नहीं आ रही…सूरज भगवान थर्मामीटर से पारा तोड़कर निकाल देना चाहते हैं…अभी पूरा मई पड़ा है, जून की गर्मी कैसे झेलेंगे महाराज
गुप्ता जीः अरे तो सरकार क्या कर दे. डिमांड पीक पर है और कोयले का थोड़ा संकट पैदा हो गया है..सरकार लगी तो है.
गुल्लूः अब जगी है तुम्हारी सरकार… पहले से क्या नहीं पता था कि गर्मी होगी, लॉकडाउन के बाद फैक्ट्रियां खुलेंगी तो बिजली की मांग बढ़ेगी. तब सो रही थी तुम्हारी सरकार?
रामूः अरे मेरी पूछो…कल रात भर बत्ती नहीं रही. बच्चा रात भर रोता रहा… रातभर जगा हूं.
गुप्ताः देखो पूरा पावर सेक्टर क्राइसिस में पड़ा है… डिस्कॉम कर्ज में दबे हैं. सरकार ताबड़तोड़ बैठक कर रही, ट्रेनें चला रही और क्या करे सरकार.
गुल्लू – अरे तो इत्तेे साल हो गए संकट का हल क्यों नहीं निकाल लेते….हर दूसरे साल वही तमाशा.
गुप्ता जीः अरे, तो कोयला कंपनियों का बकाया नहीं चुकाएंगी बिजली कंपनियां तो ऐसा ही होगा भाई… कोल इंडिया का कुल 7918.72 करोड रुपये बकाया है इन कंपनियों पर…
रामूः अरे दादा तो हम का करी… हम तो हर महीना समय पर बिल भर देता हुं… हमारी क्या गलती है.
गुल्लूः इसकी सच्चाई भी बता दें गुप्ता जी… मुंह मत फुला लेना.. कर्ज तुम्हारे ही सरकार के विभाग नहीं चुका रहे. सरकार अपने ही महकमों का बिल नहीं भरती इसमें भी का हमारी क्या गलती…
गुप्ताः अरे इत्ते आंकड़े धरे बैठे रहते हो तो तुम्हीं बता दो सरकार क्या करे.
गुल्लूः बताने को छुपा क्या है? देश में पांचवा सबसे बड़ा कोयला रिजर्व है, हम दुनिया के दूसरे सबसे बड़े कोयला उत्पादक है और हाल यह है कि हमारे ही बिजली घरों पर कोयला नहीं. 173 पावर प्लांट में से 105 में कोयला खत्म होने की कगार पर है और जान लो…कोयले का मौजूदा स्टॉक अपने तय लेवल के 25% से भी कम रह गया है.
रामूः अरे भइया…मेरे जैसे गरीब का सोचो…महंगाई इतनी है कि घर चलाना मुश्किल है. अब सरकार पंखे की हवा को भी छीने ले रही है. हमें बताओ गुप्ता जी…करें तो करें क्या जाएं तो जाएं कहां.
गुप्ताः हैं…गर्मी जैसे तुझे ही तो लग रही है. मेरे यहां तो सीधी स्विट्जरलैंड से ठंडी हवा आ रही है.
गुल्लूः यार रामू…बर्फ डालकर बढ़िया लस्सी पिलाओ…दो गिलास एक गुप्ता जी को और एक मुझे.
रामूः दद्दा दो दिन से बर्फ नहीं आ रही. बिजली नहीं है तो दाम दोगुने हो गए हैं. आज ऐसी ही लस्सी पीनी पड़ेगी सादा.
गुप्ताः अरे यार…अच्छी मुसीबत है.
गुल्लूः गुप्ता जी घर जाओ और पानी के टब में लेट जाओ…बस फिलहाल यही तरीका है.
रामूः हां गुल्लू भइया…और हम दोनों चलो नहर में गोते मार लेते हैं.
गुप्ताः अरे यार, मैं भी नहर में ही नहाने चलता हूं..चलो उठाओ साइकिल चलते हैं.
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