शेयर बाजार के निवेशकों के मन में इस वक्त सबसे बड़ा सवाल क्या है? यही कि क्या भारतीय शेयर बाजार मंदी की गिरफ्त में आ गए हैं? क्या विदेशी निवेशकों की भारी बिकवाली से बुल रन का दम फूलने लगा है? या बाजार की गिरावट केवल एक हेल्थी करेक्शन यानी अगली तेजी से पहले की मुनाफावसूली है. बाजार की तस्वीर आपको कैसी नजर आएगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप बाजार को किस तरफ से देख रहे हैं.
मसनल, अगर आपके पोर्टफोलियो में HDFC लाइफ इंश्योरेंस, हिंदुस्तान यूनीलीवर, ब्रिटेनिया, कोटक महिंद्रा बैंक जैसी दिग्गज कंपनियां है तो आपको बाजार मंदा नजर आ सकता है. क्योंकि ये सभी कंपनियां अपने उच्चतम स्तर से 20 फीसद से ज्यादा टूट चुकी हैं. मंदी की परिभाषा यही है, जो अपने हाई से 20 फीसद टूटा वो मंदी वाले भालूओं की चपेट में है. निफ्टी 50 की 13 कंपनियों का यही हाल है.
दिग्गजों को छोड़िए मिडकैप-स्मॉलकैप में तो हाल और बुरा है. बाजार की टॉप 500 कंपनियों में 62 फीसद कंपनियां ऐसी हैं जो 52 हफ्तों की ऊंचाई से 20 फीसद नीचे हैं. यह आंकड़े पढ़कर बाजार में मंदी दिखने लगी है तो ठहर जाइए और निफ्टी सेंसेक्स की गिरावट पर नजर डालिए.
शेयर बाजार के दोनों प्रमुख सूचकांक अपनी रिकॉर्ड ऊंचाई से महज 7 फीसद नीचे हैं. जी हां, सिर्फ 7 फीसद… यहां भी गिरावट 15-16 फीसद की थी. 8 मार्च को 15671 का निचला स्तर छुआ था. लेकिन बाजार ने अच्छी वापसी दिखाई. सोमवार यानी 28 मार्च को निफ्टी 17222 के स्तर पर है. निफ्टी ने बीते साल अक्टूबर में 18604 का उच्चतम स्तर छुआ था यानी निफ्टी सेंसेक्स अभी मंदी की गिरावट में नहीं आपको पोर्टफोलियो के स्टॉक भले हो सकते हैं. दरअसल, शेयरों में गिरावट के पीछे कोई एक वजह नहीं हैं.
कुछ कंपनियों में कार्पोरेट गवर्नेंस की वजह से निवेशकों ने बिकवाली की है तो कुछ के महंगे वैल्युएशन उनपर भारी पड़े हैं. कमोडिटीज के बढ़े दाम, क्रूड ऑयल की महंगाई ने भी निवेशकों को कई कंपनियों से पैसा निकालने के लिए मजबूर किया है.. अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने का सिलसिला शुरू होते ही विदेशी निवेशकों ने भी भारी बिकवाली की है. बीते 3 महीने में विदेशी निवेशकों ने बाजार से 1.11 लाख करोड़ से ज्यादा का निवेश निकाल चुके हैं.
अब समझिए सबसे जरूरी बात बियर मार्केट की गिरफ्त से ये कंपनियां बाहर कब आएंगी? बाजार विशेषज्ञ मानते हैं कि अगली तिमाही कंपनियों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होगी. केआर चौकसी शेयर्स एंड सिक्योरिटीज के मैनेजिंग डायरेक्टर देवेन चौकसी बताते हैं. अभी तक कंपनियां पहले से कम कीमत पर खरीदे कच्चे माल का इस्तेमाल कर रहीं थी, लेकिन अब महंगे कच्चे माल को खरीदकर उत्पाद तैयार करने होंगे. इससे उनके प्रॉफिट मार्जिन प्रभावित होंगे. क्योंकि कंपनियां एक सीमा तक ही उत्पादों के दाम बढ़ाकर बढ़ी कीमतों को ग्राहकों तक पहुंचा सकती हैं. ऐसे में कंपनियों के लिए अप्रैल-जून तिमाही में चुनौती बढ़ जाएगी.
बड़ा सवाल फिर क्या करें निवेशक? बाजार में फिलहाल कोई साफ दिशा नहीं दिख रही. विशेषज्ञों की सलाह यही है कि फिलहाल नकदी पर बैठें. अच्छी कंपनियों में धीरे धीरे खरीदारी करने लगें. विदेशी निवेशकों के वापस लौटने और कंपनियों की मार्जिन सुधरने पर ही बाजार में नई तेजी की उम्मीद बनेगी.