BSE Stock Price: हफ्ते के पहले दिन (29 अप्रैल) को BSE के शेयरों में शुरुआती कारोबार के दौरान ही 18 फीसद तक की बड़ी गिरावट दर्ज की गई. BSE के शेयरों की लिस्टिंग के बाद से इतनी बढ़ी एकदिनी गिरावट अब तक नहीं देखा गया था. शेयरों में आई इस गिरावट की वजह सेबी का एक आदेश है. पूंजी बाजार नियामक Sebi ने कहा है कि स्टॉक एक्सचेंज ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट्स के नोशनल वैल्यू के आधार पर नियामकीय शुल्क का भुगतान करें न कि प्रीमियम वैल्यू के आधार पर.
BSE के शेयर क्यों टूटे?
शेयर बाजार के जानकारों की मानें तो नियामकीय शुल्क के बढ़े पेमेंट से BSE के फाइनेंशियल्स पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. इसकी वजह है कि नियामकीय शुल्क जिसका भुगतान अभी प्रीमियम वैल्यू के आधार पर किया जाता है, अब नोशनल वैल्यू पर किया जाएगा और यह कहीं अधिक होगा. नोशनल वैल्यू की गणना कॉन्ट्रैक्ट साइज और अंतर्निहित मूल्य (Underlying’s Price) को गुणा कर की जाती है. इसी को देखते हुए काराबारियों और निवेशकों ने इसके शेयरों में भारी बिकवाली की.
BSE के वॉल्यूम में बढ़ोतरी
खबर लिखे जाते समय BSE के शेयरों का ट्रेडिंग वॉल्यूम 94,27,000 था. कारोबार के दौरान इसके शेयर ने 2,612.10 रुपये का निचला स्तर छुआ और इसका उच्च स्तर 2,894.95 रुपये रहा.
Sebi के आदेश में क्या था?
स्टॉक एक्सचेंज को भेजे गए आदेश में Sebi ने कहा है कि जबसे डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स की शुरुआत हुई है, तब से BSE ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट्स के प्रीमियम वैल्यू के आधार पर रेगुलेटरी फीस का भुगतान कर रहा है, नोशनल वैल्यू के आधार पर नहीं. BSE और NSE जैसे स्टॉक एक्सचेंजों को वित्त वर्ष समाप्त होने के 30 दिनों के भीतर Sebi को रेगुलेटरी फीस का भुगतान करना होता है.
Jefferies ने BSE को किया डाउनग्रेड
Sebi के आदेश के बाद ब्रोकरेज फर्म जेफरीज ने बीएसई के शेयरों की रेटिंग बाई से घटाकर होल्ड कर दिया है. इसने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बीएसई की प्रति शेयर आय (EPS) भी 18 फीसद से घटकर 15 फीसद पर आ सकती है.