सरकार ने तेल और तिलहन पर स्टॉक लिमिट हटाकर कहीं जल्दबाजी तो नहीं कर दी, क्योंकि स्टॉक लिमिट हटाने को लेकर सरकार ने जो तर्क दिया है वह हकीकत से परे नजर आता है. सरकार ने कहा है कि घरेलू मार्केट में खाने का तेल सस्ता हो रहा है और साथ में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी कीमतें घटी हैं लेकिन सरकार के इस तर्क को उसके उपभोक्ता विभाग के आंकड़ों का समर्थन नहीं मिल रहा.
20-22 दिनों में खाने के तेल महंगे हुए
आंकड़े साफ कह रहे हैं कि अक्टूबर के अंतिम 20-22 दिनों में अधिकतर खाने के तेल महंगे हुए हैं. पाम और सोया तेल की कीमतों में तो 10-11 फीसद का उछाल आया है. 9 अक्टूबर को दिल्ली में पाम तेल का भाव 110 रुपए था जो अक्टूबर अंत में 121 रुपए तक पहुंच गया है. इस दौरान सोया तेल का भाव 17 रुपए और सरसों तेल का भाव 5 रुपए बढ़ा है.
विदेशी बाजार में भी खाने का तेल महंगा हुआ
विदेशी बाजार में भी खाने का तेल महंगा हुआ है. मलेशिया में पाम तेल का भाव 4500 रिंगिट प्रति टन तक पहुंच गया है जो करीब 2 महीने में सबसे ज्यादा भाव है. यानी विदेशी बाजार में सस्ते खाद्य तेल का तर्क भी ठीक नहीं बैठ रहा. भारत को अपनी जरूरत का 60 फीसदी खाने का तेल आयात करना पड़ता है. आयात होने वाले खाने के तेल में 60 फीसद हिस्सेदारी पाम तेल की होती है. और जितना पाम तेल आयात होता है उसका लगभग आधा हिस्सा मलेशिया से ही आता है.
खरीफ तिलहन का उत्पादन भी पिछले साल से कम
ऊपर से इस साल खरीफ तिलहन का उत्पादन भी पिछले साल से कम है. कृषि मंत्रालय के आंकड़े साफ कह रहे हैं कि इस साल खरीफ सीजन के दौरान देश में 235 लाख टन तिलहन उत्पादन अनुमानित है जबकि पिछले साल 238 लाख टन से ज्यादा फसल हुई थी. तिलहन उत्पादन घटने की वजह से खाद्य तेल उत्पादन में कमी आ सकती है.
तिलहन उत्पादन में कमी और खाद्य तेल कीमतों में हुई बढ़ोतरी के आंकड़े पहले से सरकार के सामने मौजूद हैं लेकिन इसके बावजूद सरकार ने थोक तेल-तिलहन कारोबारियों के लिए स्टॉक लिमिट हटा दी है. स्टॉक लिमिट हटने से तेल और तिलहन की कालाबाजारी को बढ़ावा मिल सकता है. और इससे खाने के तेल की महंगाई और भी बढ़ सकती है. यही वजह है कि स्टॉक लिमिट हटाने के सरकार के फैसले को लेकर सवाल उठ रहे हैं.