मौसम के खराब मिजाज ने रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतें बढ़ा दी हैं. पहले टमाटर फिर प्याज और अब बाकी सामन भी महंगे होने लगे हैं. सब्जियों से लेकर स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों द्वारा खाए जाने वाले स्वादिष्ट सुपरफूड्स की भी कीमतें बढ़ती जा रही है. यूरोप में और अपने देश के बिहार में सूखे के कारण जैतून तेल और मखाना (फॉक्स नट) की कीमतों में एक साल में लगभग 80% से अधिक की वृद्धि हुई है. इतना ही नहीं, आने वाले दिनों में इनकी कीमतें और बढ़ सकती हैं.
तुर्की के निर्यात प्रतिबंध का असर जैतून तेल पर दुनिया के सबसे बड़े जैतून तेल उत्पादक देश तुर्की ने इस हफ्ते निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है. इसके बाद वैश्विक स्टार पर जैतून के तेल की कमी बढ़ गई है. भारत जैतून तेल की जरूरतें आयात के जरिए ही पूरा करता है. भारत हर साल सभी ग्रेडों का लगभग 13,000 टन जैतून का तेल आयात करता है. यानी अगर वैश्विक बाजार में जैतून तेल की मांग, कमी और कीमतें बढती हैं तो इसका असर सीधा भारत पर पड़ेगा, क्योंकि भारत के पास इसका विकल्प नहीं है. भारत में जैतून के तेल की खुदरा कीमतों में साल-दर-साल लगभग 70-80% की वृद्धि हुई है, जबकि पिछले दो महीनों में कीमतों में 20% का इजाफा देखा गया है. इसके अलावा, हल्के श्रेणियों के जैतून तेल की कीमतें भी 40% तक बढ़ सकती हैं. फिलहाल ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर प्रमुख ब्रांडों के एक्स्ट्रा वर्जिन ऑलिव ऑयल की एमआरपी 1000-1400 रुपए प्रति लीटर तक है.
और बढ़ सकती है मखाने की कीमतें पूर्वी भारत में मखाना एक पारंपरिक भोजन के रूप में जाना जता है.इसे वॉटर लिली के बीजों को निकालकर बनाया जाता है, जिसे गॉर्गन सीड्स कहते हैं.कोरोना काल के समय से देश भर में मखाना सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला स्नैक बन गया है. दरअसल, मखाना एक हेल्दी स्नैक है, इसलिए ज्यादातर लोग इसे अपने खाने में शामिल करते हैं. पिछले दो महीनों में मखाने की कीमतों में 70% का बड़ा उछाल आया है क्योंकि अत्यधिक गर्मी के कारण मखाना की खेती के लिए इस्तेमाल होने वाले कृत्रिम तालाब सूख गए हैं.
खराब मौसम ने बिगाड़ा जायका सुपरफूड के रूप में मखाने की लोकप्रियता साल-दर-साल बढ़ती जा रही है. 2017 के बाद मखाने के बीज की कीमतें 3-4 गुना बढ़ कर 22,000 रुपए प्रति क्विंटल की ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गईं. मखाने की बढती मांग ने किसानों को इसकी खेती की तरफ आकर्षित किया है. हालांकि पिछले साल नवंबर में मखाने की बीज की कीमतें गिरकर 3,500 रुपए प्रति क्विंटल के निचले स्तर पर आ गईं. दरअसल, मंदी के दबाव में मांग घट गई, जिसके कारण लगभग 25% किसानों ने मखाना की खेती करना बंद कर दिया. मखाने की खेती के लिए 1 फुट से 5 फुट तक जल स्तर की आवश्यकता होती है. लेकिन प्री-मानसून बारिश की कमी और गर्मी के मौसम में अत्यधिक गर्मी के कारण बिहार में कृत्रिम तालाब सूख गए, जिससे उत्पादन में करीब 50% की कटौती होने की संभावना है. टाटा और रिलायंस जैसे बड़े ब्रांड मखाना बेचते हैं.
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