वसीयत न करके फतेह सिंह परिवार में फजीहत करा गए. अभी उनकी बरसी भी नहीं हुई कि प्रॉपर्टी के बंटवारे को लेकर बच्चे कचहरी तक पहुंच गए. फतेह सिंह के निधन के बाद दोनों बेटों ने उनकी प्रॉपर्टी आपस में बांट ली. बेटी सलोनी ने अपना हिस्सा मांगा तो नौबत मरने मारने पर आ गई. यह कहानी सिर्फ फतेह सिंह के परिवार की नहीं है. देश के लाखों परिवारों में बंटवारे को लेकर कानूनी जंग छिड़ी हुई है. पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के मुताबिक देश की अदालतों में 15 सितम्बर, 2021 तक 4.5 करोड़ से ज्यादा मामले लंबित थे. एक अनुमान के मुताबिक इनमें दो-तिहाई जमीन-जायदाद से जुड़े हैं. इस तरह के मामलों के निपटारे में वर्षों लग जाते हैं.
सरकारी स्तर पर सुधारों के बावजूद बंटवारे को लेकर कुछ ऐसे सवाल हैं जिन पर दशकों बाद भी तस्वीर साफ नहीं हो पाई है. इनमें कुछ बड़े सवाल ये हैं कि बेटी का अपने पिता की संपत्ति में कितना हक होता है, क्या बेटी का अपने दादा की संपत्ति में हिस्सा होता है, शादी के बाद बेटी को हक मिल सकता है या नहीं ?
बेटी के हितों की सुरक्षा के लिए वर्ष 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 में बदलाव किया गया था. इसके तहत पैतृक संपत्ति में बेटियों को बराबर का हिस्सा होता है. चाहे बेटी शादीशुदा हो, विधवा हो, अविवाहित हो या पति पत्नी अलग हो गए हों. विरासत में मिली संपत्ति में बेटी का जन्म से ही हिस्सा बन जाता है.
इसमें शर्त यह थी कि अगर उसके पिता 9 सितंबर, 2005 तक जीवित रहे हों. इसी स्थिति में बेटी अपनी पैतृक संपत्ति में हिस्सा ले सकती है. अगर पिता की मौत इससे पहले हो चुकी है तो बेटी को पैतृक संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा. हालांकि पिता की खुद की खरीदी हुई संपत्ति वसीयत के अनुसार बांटी जाती है.
वर्ष 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से व्यवस्था में बदलाव किया. शीर्ष कोर्ट ने साफ कर दिया कि अगर किसी के पिता की मौत 9 सितंबर 2005 के पहले भी हुई हो तब भी बेटी का अपनी पैतिृक संपत्ति पर बेटों की तरह ही हक होगा. अगर पिता ने अपनी संपत्ति खुद ही अर्जित की है तो पिता की मर्जी है कि वो अपनी संपत्ति बेटी को दे या नहीं. लेकिन पिता की मौत बिना वसीयत लिखे ही हो जाए तो बेटी उस संपत्ति में भी हिस्सा ले सकती है.
बेटी के हक को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक नई व्यवस्था दी है. इसके तहत संयुक्त परिवार में रह रहे व्यक्ति की वसीयत लिखे बिना ही मौत हो जाए तो उसकी संपत्ति पर बेटों के साथ उसकी बेटी का भी हक होगा. बेटी को अपने पिता के भाई के बेटों की तुलना में संपत्ति का हिस्सा देने में प्राथमिकता दी जाएगी. इस तरह की व्यवस्था हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 लागू होने से पहले हुए संपत्ति के बंटवारे पर भी लागू होगी.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल कर्णवाल कहते हैं कि पैतृक संपत्ति में बेटी का पूरा हक होता है. इससे उसके शादीशुदा, विधवा या तलाकशुदा होने का कोई लेना देना नहीं है. हालांकि पिता की स्वअर्जित संपत्ति में बेटी को हिस्सा तब ही मिल सकता है जब वह अपनी मर्जी से देना चाहें.
अगर पिता बेटी को अपनी संपत्ति में हिस्सा नहीं देना चाहता है तो बेटी उसमें हिस्सा नहीं ले सकती. अगर पिता की मौत वसीयत लिखने से पहले हो जाए तो बेटी उनकी संपत्ति में हिस्सा ले सकती है. फतेह सिंह ने वसीयत नहीं लिखी थी. ऐसे में कानूनी तौर पर सलोनी को प्रॉपर्टी में हिस्सा मिलेगा.
मनी9 की सलाह
संपत्ति के बंटवारे के लिए समय रहते वसीयत बनाएं. किसको कितना हिस्सा देना है, इस बारे में स्पष्ट रूप से लिखें. अगर बेटी से प्यार करते हैं वसीयत में उसे भी शामिल करें. अन्यथा भाई आपस में मिल बांट कर खा लेंगे. अधिकांश मामलों में देखा जाता है कि भाई अपनी बहन से अनापत्ति प्रमाण पर साइन करा लेते हैं.
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