संपत्ति को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है. पहला स्वयं से अर्जित संपत्ति और दूसरा पैतृक संपत्ति. स्वयं अर्जित संपत्ति वो है जो आप खुद की कमाई प्रॉपर्टी है जबकि पैतृक संपत्ति कई पीढ़ियों से चली आ रही विरासत में मिली प्रॉपर्टी को कहते हैं. सरल शब्दों में कहें तो पुरुषों की चार पीढ़ियों तक जो संपत्ति विरासत में मिली हो उसे पैतृक संपत्ति कहा जाता है.
विरासत के अन्य तरीकों से अलग, पैतृक या पुश्तैनी संपत्ति में हिस्सेदारी का अधिकार जन्म से ही हो जाता है. जबकि विरासत के दूसरे तरीकों में वारिस का अधिकार प्रॉपर्टी के मालिक की मौत के बाद होता है. पैतृक संपत्ति का परिवारवालों के बीच बंटवारा होने के बाद यह पैतृक संपत्ति नहीं रह जाती है. किसी भी पैतृक संपत्ति के बंटवारे के लिए सबसे पहले संपत्ति के मुख्य मालिक की संतानों की गिनती की जाती है और उसी आधार पर उस संपत्ति का बंटवारा किया जा सकता है.
हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून, 2005 पैतृक संपत्ति में बेटों के साथ-साथ बेटियों को भी बराबर उत्तराधिकार का दर्जा देता है. अगर पैतृक संपत्ति को बेचा जाता है या उसका बंटवारा होता है तो बेटियों को भी उसमें से हिस्सा मिलेगा.