धन-दौलत बढ़ाने की चाहत रखने वाले लोगों के लिए रियल एस्टेट यानी प्रॉपर्टी इन्वेस्टमेंट का एक अच्छा ऑप्शन रहा है. गाजियाबाद के विनोद का भी ऐसा ही इरादा है, वो किराए से कमाई चाहते हैं. लेकिन कंफ्यूज हैं कि रेजिडेंशियल और कमर्शियल प्रॉपर्टी में से किसे चुनें? विनोद की तरह आपके मन में भी यही सवाल होगा कि इन्वेस्टमेंट के लिए मकान खरीदें या दुकान? दोनों प्रॉपर्टी के अपने फायदे और चुनौतियां हैं. आइए जानते हैं इनके बारे में ताकि विनोद की तरह आपको भी informed decision ले सकें.
प्रॉपर्टी दो तरह की होती है, रेजिडेंशियल और कमर्शियल. रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी में मकान, फ्लैट और विला आते हैं, जबकि कमर्शियल प्रॉपर्टी में शॉपिंग कॉम्प्लेक्स व मॉल्स की दुकानें, ऑफिस स्पेस, वेयरहाउस यानी गोदाम, डेटा सेंटर, रेस्तरां और होटल जैसी प्रॉपर्टी शामिल हैं. रेजिडेंशियल यानी आवासीय प्रॉपर्टी ज्यादातर खुद के इस्तेमाल के लिए खरीदी जाती हैं. हालांकि, इसे किराए पर उठाकर कमाई भी की जा सकती है. रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी की कीमत में समय के साथ बढ़ोतरी एक और वजह है, जिस वजह से लोग इसमें निवेश करते हैं.
कमर्शियल प्रॉपर्टी का इस्तेमाल Business Purpose यानी कारोबारी उद्देश्य के लिए होता है. इस वजह से इसमें किराया ज्यादा मिलता है और निरंतर बना भी रहता है. कमर्शियल प्रॉपर्टी रेगुलर इनकम के लिए अच्छे ऑप्शन है क्योंकि इसमें मकान के मुकाबले रेंटल यील्ड ज्यादा है.
रेंटल यील्ड का मतलब प्रॉपर्टी पर किराए से मिलने वाला रिटर्न है. दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी की रेंटल यील्ड अधिकतम 2 से 3 फीसद है. मौजूदा समय में कुछ जगहों पर यह बढ़कर 3.5 फीसदी तक पहुंच गई है. वहीं, कमर्शियल प्रॉपर्टी के मामले में रेंटल यील्ड 5 से 6 फीसदी होती है… मॉल या शॉपिंग कॉम्प्लेक्स जैसे हाई-एंड रिटेल में यील्ड 7 से 8 फीसदी तक जाती है. रेंटल यील्ड जितनी ज्यादा किराए से कमाई उतनी ज्यादा.
प्रॉपर्टी की किराए से कमाई और प्रॉपर्टी की कीमतें बढ़ना यानी कैपिटल एप्रिसिएशन कई चीजों पर निर्भर करता है. इनमें लोकेशन, डिमांड और सप्लाई यानी मार्केट कंडीशन, इंफ्रास्ट्रक्चर, एमिनिटीज यानी सुविधाएं शामिल हैं. कमर्शियल और रेजिडेंशियल दोनों प्रॉपर्टी के मामले में ये फैक्टर्स निर्णायक हैं.
कमर्शियल प्रॉपर्टी में आमतौर पर लॉन्ग टर्म लीज होती है यानी प्रॉपर्टी लंबे समय के लिए किराए पर उठी रहती है. कमर्शियल प्रॉपर्टी में टेनेंट यानी किराएदार जल्दी-जल्दी लोकेशन बदलना पसंद नहीं करते हैं, जिससे किराया रेगुलर आता है और लीज के मुताबिक बढ़ता रहता है. रेसिडेंशियल प्रॉपर्टी में किराएदार के मकान छोड़ने पर refurbishment (रीफर्बिश्मन्ट) कॉस्ट यानी मरम्मत, रंगाई-पुताई का खर्च काफी आता है… जिसे लोग ध्यान में नहीं रखते हैं.
मकान जैसी रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी के मुकाबले दुकान या ऑफिस स्पेस जैसी कमर्शियल प्रॉपर्टी महंगी पड़ती है. कमर्शियल प्रॉपर्टी का Per Square feet का रेट रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी से काफी ज्यादा होता है. हालांकि, कुछ मामलों में ओवर ऑल इन्वेस्टमेंट कॉस्ट कम हो सकती है. उदाहरण के लिए, आप 300 स्क्वायर फुट का ऑफिस स्पेस लेकर उसे आराम से किराए पर उठा सकते हैं. लेकिन इसी साइज के फ्लैट को किराए पर चढ़ाने में दिक्कत आती है और किराया भी कम मिलता है.
पहली प्रॉपर्टी खरीदने वाले लोग आमतौर पर रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी यानी मकान खरीदना पसंद करते हैं क्योंकि इसमें उन्हें सुरक्षा का भाव महसूस होता है. वहीं दूसरी, तीसरी बार रियल एस्टेट में पैसा लगाने के पीछे की मुख्य वजह बेहतर रिटर्न पाना होता है. इस कारण ऐसे इन्वेस्टर्स कमर्शियल प्रॉपर्टी को तरजीह देते हैं.
कमर्शियल और रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी में से किसी एक का चुनाव करना कठिन है क्योंकि दोनों के नफा-नुकसान हैं. आखिरी फैसला विनोद जैसे निवेशकों के फाइनेंशियल सिचुएशन पर निर्भर करेगा. अगर बजट की कोई दिक्कत नहीं है और लंबे समय के लिए किराए से अधिक कमाई करना चाहते हैं तो कमर्शियल प्रॉपर्टी अच्छा ऑप्शन हो सकता है. लेकिन अगर निवेश के लिए बजट कम है, तो रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी में जा सकते हैं. कोई भी फैसला लेने से पहले बजट, कनेक्टिविटी, रेंट, मेंटेनेंस, ऑपरेटिंग कॉस्ट, किराएदारों की एविलेबिलिटी और मार्केट कंडीशंस जैसे फैक्टर्स पर जरूर गौर करें.
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