कई सालों की मशक्कत के बाद जब अपने घर का सपना पूरा होता है तो उसकी खुशी अलग होती है लेकिन इस खुशी के रंग का भंग बन सकती है जब इस बड़ी खरीदारी में कोई चूक हो जाए – लोकेशन हो या कोई कागजी दिक्कत. घर, जमीन और फ्लैट या कोई भी प्रॉपर्टी (Property) खरीदनी हो आप चाहते हैं कि उसे पूरी बारीकी से परखें और अपना पैसा पूरे भरोसे से ही खर्च करें. घर खरीदने से पहले इन बातों पर गौर जरूरी करें.
1. कार्पेट एरिया
अक्सर प्रॉपर्टी का एरिया और आपके फ्लैट खरीदने पर मिलने वाली जगह में बड़ा फर्क होता है. प्रॉपर्टी (Property) के बिल्ट-अप स्पेस में एलिवेटर, सीढ़ियों, दीवारों की चोड़ाई जैसे कंस्ट्रक्शन का स्पेस भी शामिल होता है. फ्लैट का कार्पेट एरिया वो जगह है जो आपको अपने फ्लैट की दीवारों के बीच मिलेगा और जो आपके इस्तेमाल के लिए होगा. अक्सर कार्पेट एरिया बिल्ट-अप एरिया से 30 फीसदी कम होता है. इसलिए प्रॉपर्टी (Property) खरीदते वक्त और उसके दाम की तुलना करते वक्त कार्पेट एरिया पर गौर करें.
2. प्रॉपर्टी की कानूनी जांच
घर खरीदने के बाद कानूनी पचड़े में फंसना सबसे बड़ी चिंता की बात हो जाती है. इसलिए जरूरी है कि डेवलेपर ने सभी मंजूरी हासिल की है और एरिया डेवलेप्मेंट अथॉरिटी और म्यूनिसिपल कॉरपेरशन से सीवेज, वॉटर सप्लाई के NOC यानि नो-ऑबजेक्शन सर्टिफिकेट हासिल किया है. ऐसे कई मामले देखने को मिले हैं जब डेवलेपर ने फ्लैट मुहैया कराने में देरी की स्थिति में बिना पूरे NOC के घर खरीदारों को शिफ्ट करवा दिया लेकिन सुविधाएं अधूरी ही रहीं. ऐसे में आप जरूर जांच लें कि जब आप शिफ्ट होने वाले हों तो प्रॉपर्टी (Property) की सारी कानूनी जांच हो चुकी हो और आप डेवलेपर के दिए किसी भरोसे पर बिना किसी कागजी प्रूफ के विश्वास ना करें.
3. बिल्डर या प्रॉपर्टी चुनने से पहले फाइनेंस तय करें
फ्लैट खरीदने से पहले ये जरूर देखें कि आपका बजट कितना है और बैंक आपको कितनी रकम पर लोन दे सकता है. वहीं जब आपकी लोन कैपेसिटी आपको पता हो तो बिल्डर और प्रॉपर्टी चुनें. बिल्डर चुनने से पहले बैंक से जांच करें कि वो बिल्डर अप्रूव है या नहीं. कई बार ऐसे बिल्डर जिनका ट्रैक रिकॉर्ड खराब होता है बैंक उनकी प्रॉपर्टी के लिए लोन देने से मना कर देते हैं. अगर आप होम लोन ले रहे हैं तो बैंक लोन देने से पहले आपके प्रॉपर्टी (Property) के डॉक्यूमेंट्स की जांच करेगा.
4. छिपे चार्ज या अतिरिक्त चार्ज
फ्लैट लेने से पहले सभी डक्यूमेंट ध्यान से पढ़ें और पेनाल्टी क्लॉज की भी जांच करें. तय समय में अगर आपको फ्लैट नहीं मिलता तो बिल्डर से आपको हर महीने पेनाल्टी मिलनी चाहिए. इसके अलावा GST, स्टांप ड्यूटी, होम लोन प्रोसेसिंग फीस, रजिस्ट्रेशन चार्ज जैसे अन्य खर्च का भी हिसाब जरूर लगाएं. कई राज्यों ने फिलहाल स्टांप ड्यूटी घटाई है.
5. लोकेशन, कनेक्टिविटी और पजेशन
कहीं भी घर लेने का पहला कदम होता है लोकेशन और कनेक्टिविटी की सहूलियत देखना. हालांकि सरकारी स्कीमों के तहत तैयार किए जा रहे फ्लैट ले रहे हैं तो उनमें भी अपने लिए कनेक्टिविटी देखें. ऐसा ना हो कि किफायती की सोच में बाद में आपकी आवाजाही में ही दिक्कतें हो जाएं. वहीं बिल्डर से पजेशन मिलने का समय तय करें. अक्सर बिल्डर 6 महीने का ग्रेस पीरियड मांगते हैं जिसके अंदर उन्हें फ्लैट देना होता है. देरी होने पर बिल्डर से वाजिब सफाई मांगे.
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