बिल्डर की तरफ से घर मिलने का इंतजार कर रहे लाखों घर खरीदारों के लिए दिल्ली के कंज्यूमर कमिशन का फैसला बड़ी उम्मीद बनकर आया है. घर खरीदार को घर मिलने में हुई देरी के बाद बिल्डर के खिलाफ शिकायत से जुड़े एक मामले में, दिल्ली कंज्यूमर कमिशन ने बिल्डर को आदेश देकर घर खरीदार को 63 लाख रुपए देने का फैसला सुनाया है.
मामला 2013 का है. शिकायतकर्ता रमिंदर चिमनी ने पार्श्वनाथ एक्सोटिका, गाजियाबाद में 60 लाख रुपए में 1,920 वर्ग फुट का फ्लैट खरीदा था. एग्रीमेंट के तहत घर का निर्माण खरीद के 6 महीने के भीतर शुरू होना था और 3 साल में इसे पूरा करना था. लिहाजा मार्च 2017 तक फ्लैट का कब्ज़ा सौंपा जाना था. मगर सात साल बाद भी रियल एस्टेट कंपनी फ्लैट नहीं दे सकी. मजबूरन खरीदार ने दिल्ली उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी. वहीं सुनवाई के दौरान रियल एस्टेट फर्म ने भी अपना पक्ष रखा. फर्म का कहना है कि शिकायतकर्ता उपभोक्ता नहीं बल्कि एक निवेशक था क्योंकि वह गुड़गांव का स्थायी निवासी था. उपभोक्ता ने मुनाफा कमाने के लिए फ्लैट खरीदा था. हालांकि आयोग ने इस दलील को नकार दिया.
दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने कंपनी को उपभोक्ता को 60 लाख रुपए का रिफंड और 3 लाख रुपए “मानसिक पीड़ा और मुकदमेबाजी” लागत के रूप में भुगतान करने का निर्देश दिया. आयोग्य सदस्य राजन शर्मा और बिमला कुमारी ने 19 मार्च के आदेश में कहा कि केवल यह आरोप कि उक्त फ्लैट की खरीद मुनाफा कमाने के लिए की गई है, वर्तमान उपभोक्ता शिकायत को खारिज करने का आधार नहीं हो सकता है. आयोग ने यह भी माना कि रियल एस्टेट फर्म शिकायतकर्ताओं को गुमराह कर रही थी क्योंकि परियोजना के निर्माण के लिए वैध लाइसेंस 2012 में ही समाप्त हो गया था.