Property: 42 साल के भार्गव त्रिवेदी ने चार साल पहले मार्केट से 30 प्रतिशत कम भाव में 2BHK फ्लैट खरीदा था. मार्केट भाव से इतनी कम कीमत में फ्लैट मिलना तो लगभग असंभव है, फिर अहमदाबाद के भार्गव को ये जेकपॉट कैसे लगा?
भार्गव कहते हैं, “मैंने डेट रिकवरी ट्रिब्युनल (DRT) की प्रॉपर्टी नीलामी में भाग लिया था. जिसमें 40 लाख रुपये का फ्लैट सिर्फ 28 लाख रुपये की बेस कीमत में मिल रहा था.”
नीलामी में ज्यादा बोली लगाने के बाद भार्गव को रजिस्ट्रेशन चार्ज, स्टैम्प ड्यूटी वगैरह खर्च के साथ आखिर में 32 लाख रुपये में प्रॉपर्टी मिल गई.
कई कंपनियां और खरीदार लोन नहीं चुकाते हैं और तब उनकी खरीदी प्रोपर्टी को बेच कर बैंक अपना पैसा निकालते हैं. इसके लिए बैंक ई-ऑक्शन करते हैं. बैंक अपने आप और कुछ केस में ट्रिब्युनल के जरिए नीलामी करते हैं.
ई–नीलामी में प्रॉपर्टी बिक जाए इसलिए भाव 30 फीसदी तक कम रखा जाता है. आए दिन अखबार में ऐसी नीलामी के प्रचार (Advertisement) भी दिख जाते हैं.
अभी 11 बैंको के 12,000 से भी ज्यादा घर और 2,500 से भी ज्यादा कमर्शियल प्रॉपर्टी ऐसी नीलामी में बेची जा रही हैं. प्रॉपर्टी की ई–नीलामी में भाग लेने से पहले आपको नीचे बताई गई बातों का ध्यान रखना होगा.
बैंको के संगठन IBAMPI (Indian Banks Auctions Mortgaged Properties Information) की वेबसाइट www.ibapi.in पर जाकर रजिस्ट्रेशन करवाना होगा. जिस बैंक की प्रॉपर्टी नीलाम हो रही है उस बैंक में जाकर आप ज्यादा जानकारी हासिल कर सकते हैं. बैंक की एडवर्टाइज्मेंट में संपर्क अधिकारी का फोन नंबर भी दिया जाता है.
नीलामी में भाग लेने से पहले प्रॉपर्टी की 10 फीसदी रकम EMD (अर्नेस्ट मनी डिपॉजिट) के रूप में जमा करवानी होती है. अगर आप नीलामी में हार जाते हैं तो ये पैसा वापस मिलता है, लेकिन जीत जाते हैं तो नीलामी के 24 घंटे में ही दूसरी 15 फीसदी राशि चुकानी होती है.
शेष 75% अमाउंट अगले 15-30 दिनों में चुकानी होती है. यदि आप ये अमाउंट नहीं चुका सकते तो आपकी EMD जब्त हो जाती है. इसलिए, ई–नीलामी में प्रॉपर्टी खरीदने से पहले आपके पास पर्याप्त फंड होना आवश्यक है. किसी वकील की सलाह लें और प्रॉपर्टी खरीदने के बाद आप पर कितनी लाएबिलिटी आती है वो अच्छी तरह से जान लें.
जिस प्रॉपर्टी की नीलामी हो रही है उसका ओरिजिनल सेल डीड चेक करें. प्रॉपर्टी के ऊपर कोई भार (Encumbrance सर्टिफिकेट) तो नहीं है वो चेक करें. प्रॉपर्टी रजिस्टर्ड नहीं होगी तो बाद में विवाद होने की संभावना बढ़ जाती है. हाउसिंग सोसायटी से नो–ओब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) हासिल कर लेना चाहिए और प्रोपर्टी के असली मालिक ने पुराने बिल और प्रॉपर्टी टैक्स का भुगतान किया है या नहीं ये पता कर लें.
बैंक सिर्फ रीपोजेज्ड (Repossessed) प्रॉपर्टी की नीलामी करतै हैं, प्रॉपर्टी के मालिक तो कोई और होते हैं. इसलिए, टाइटल ओनरशिप के डॉक्युमेंट्स का स्टेटस चेक कर लें.
भविष्य में प्रॉपर्टी मालिक के क्लेम की वजह से आपको परेशान न होना पड़े इसलिए बैंक से इन्डेम्निटी (indemnity) सर्टिफिकेट प्राप्त कर लें.
रियल एस्टेट संबंधित कानून के एक्सपर्ट एडवोकेट मयुरिका बी सुथार के मुताबिक, “बैंकों की ई–नीलामी में प्रॉपर्टी सस्ते में मिल सकती है, लेकिन कुछ चीजों का ध्यान नहीं रखेंगे तो प्रोपर्टी महंगी पड़ सकती है और भविष्य में कानूनी दिक्कतें खड़ी हो सकती हैं. बैंक कुछ टेक्निकल गलतियां करती हैं, जिस वजह से ओरिजिनल बायर को कोर्ट से स्टे मिल जाता है, और नीलामी से प्रॉपर्टी खरीदने वाला बायर फंस जाता है. इसलिए, हम बायर को DRT के जरिए होने वाली नीलामी से ही प्रोपर्टी खरीदने की सलाह देते है.”
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