दिवाली से ठीक पहले गेहूं की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई तक पहुंच गई हैं और महंगी गेहूं की वजह से आटा, मैदा और सूजी के महंगा होने की आशंका बढ़ गई है. कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार की तरफ से तमाम प्रयास किए गए लेकिन गेहूं का भाव घटने के बजाय लगातार बढ़ ही रहा है. महज 2 हफ्ते में प्रति क्विंटल भाव 100 रुपए से ज्यादा बढ़ गया है. 3 अक्टूबर को दिल्ली में गेहूं का भाव 2,519 रुपए प्रति क्विंटल था और सोमवार को यह 2,620 रुपए की रिकॉर्ड ऊंचाई तक पहुंच गया. केंद्रीय खाद्य सचिव सुधांशू पांडे ने सोमवार को कहा कि जरूरत पड़ी तो गेहूं की महंगाई को काबू करने के लिए सरकार अपने स्टॉक से खुले बाजार में गेहूं बेचेगी लेकिन सरकार के गेहूं भंडार को देखें तो उसमें स्टॉक 14 वर्षों के निचले स्तर पर है.
पहली अक्टूबर तक केंद्रीय पूल में 227 लाख टन गेहूं दर्ज किया गया है जो अक्टूबर की शुरुआत में पिछले साल के मुकाबले 51% कम और 2008 के बाद सबसे कम स्टॉक है.
केंद्रीय पूल में गेहूं के सरकारी स्टॉक के लिए नियम कहता है कि सरकार के पास ऑपरेशनल और रणनीतिक जरूरत के लिए 205 लाख टन गेहूं का भंडार होना जरूरी है. यानी इस बार सरकार के पास जितना स्टॉक है. वह ऑपरेशनल और रणनीतिक जरूरत से थोड़ा ही ज्यादा है यानी सरकार के पास खुले बाजार में बेचने के लिए ज्यादा गेहूं नहीं है.
सरकार ने हाल में आटा निर्यात के नियमों में बदलाव किया है और आयातित गेहूं से तैयार होने वाले आटे के एक्सपोर्ट को खोला है यानी जो कारोबारी आटे का निर्यात करना चाहते हैं उनके लिए पहले गेहूं आयात का बंदोबस्त किया जाए. फिर उसका आटा बनाकर एक्सपोर्ट किया जाए.
गेहूं आयात का मौजूदा नियम कहता है कि इंपोर्ट पर 40% टैक्स लगेगा और ऊपर से इंपोर्ट के लिए माल भाड़ा अलग से ग्लोबल मार्केट में गेहूं का भाव देखें तो ऑस्ट्रेलियाई गेहूं का भाव 3,000 रुपए के ऊपर है और रूस के गेहूं का भाव 2,600 रुपए के ऊपर. ऐसे में 40 फीसद इंपोर्ट ड्यूटी और मालभाड़ा मिलाकर गेहूं आयात की गुंजाईश नहीं दिखती. गेहूं की नई फसल की बात करें तो अभी सिर्फ बुआई शुरू हुई है और मार्च से पहले मंडियों में नई फसल के आने के आसार नहीं हैं यानी कम से कम 6 महीने तक गेहूं की महंगाई का सामना करना पड़ सकता है.
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