सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बाजार नियामक सेबी से पूछा कि वह शेयर बाजार में अत्यधिक उतार-चढ़ाव से निवेशकों को सुरक्षित रखने के लिए किस तरह के कदम उठाने की मंशा रखता है. कोर्ट ने कुछ मीडिया रिपोर्ट के आधार पर सेबी को अदानी-हिंडनबर्ग मामले की जांच करने का निर्देश देने पर भी आपत्ति जताई.
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि शेयर बाजार में अत्यधिक उतार-चढ़ाव की स्थिति को देखते हुए शीर्ष अदालत इन याचिकाओं में हस्तक्षेप के लिए सहमत हुई है. पीठ ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि अब सेबी निवेशकों की पूंजी को नुकसान पहुंचाने वाली अस्थिरता से बचाने के लिए क्या कदम उठाने का इरादा रखता है.
मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली इस पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं. पीठ ने कहा कि क्या सेबी ने इस पर गौर किया है कि नियमों को कड़ा करना जरूरी है. निवेशकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के मामले में सेबी क्या करने का इरादा रखता है. इस पर मेहता ने सकारात्मक राय जाहिर की. शीर्ष अदालत ने इस मामले में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया. यह मामला जनवरी में आई हिंडनबर्ग रिसर्च की एक रिपोर्ट में अदानी समूह पर शेयरों के भाव में हेराफेरी करने और धोखाधड़ी के आरोपों से संबंधित है. इन आरोपों के बाद समूह की कंपनियों के शेयरों के भाव में भारी गिरावट आई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कुछ मीडिया रिपोर्टों के आधार पर सेबी को मामले की जांच करने का निर्देश देने पर भी आपत्ति जताई. सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने पीठ को बताया कि अदानी समूह के खिलाफ लगे आरोपों से संबंधित 24 में से 22 मामलों की जांच पूरी हो चुकी है, जबकि दो मामलों में विदेशी नियामकों से जानकारी हासिल करने की जरूरत है.
मेहता ने कहा कि बाकी दो मामलों के लिए हमें विदेशी नियामकों से जानकारी और कुछ अन्य सूचनाओं की जरूरत है. हम उनके साथ परामर्श कर रहे हैं. कुछ जानकारी मिली है लेकिन स्पष्ट कारणों से समय सीमा पर हमारा नियंत्रण नहीं है.
पीठ ने शॉर्ट सेलिंग के संदर्भ में कोई गड़बड़ी पाए जाने के बारे में भी पूछा. इस पर मेहता ने कहा कि जहां भी सेबी को ‘शॉर्ट सेलिंग’ का पता चला है, वहां पर सेबी अधिनियम के अनुसार कार्रवाई की जा रही है. सॉलिलिटर जनरल ने कहा कि नियामक ढांचे को लेकर न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति के सुझाव मौजूद हैं. उन्होंने कहा कि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में दिए गए सुझावों को लेकर सैद्धांतिक तौर पर कोई आपत्ति नहीं है. मामले के एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने बहस करते हुए सेबी की जांच की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए. पीठ ने अन्य याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें भी सुनीं. न्यायालय ने 17 मई को अदानी समूह के शेयरों में हेराफेरी के आरोपों की जांच पूरी करने के लिए सेबी को 14 अगस्त तक का समय दिया था.
शीर्ष अदालत की तरफ से गठित विशेषज्ञ समिति ने मई में एक अंतरिम रिपोर्ट में कहा था कि उसने उद्योगपति गौतम अदानी की कंपनियों में हेराफेरी का कोई स्पष्ट सबूत नहीं देखा और इसमें किसी भी तरह की नियामकीय नाकामी नहीं हुई थी. हालांकि समिति ने 2014 और 2019 के बीच सेबी द्वारा किए गए कई संशोधनों से जांच करने की उसकी क्षमता बाधित होने का उल्लेख करते हुए कहा था कि विदेशी कंपनियों से आने वाले निवेश में कथित उल्लंघनों की जांच में कुछ नहीं मिला है.
अमेरिकी वित्तीय शोध और ‘शॉर्ट सेलिंग’ कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च ने 24 जनवरी को जारी रिपोर्ट में अदानी समूह की कंपनियों में वित्तीय गड़बड़ियों और इसके शेयरों के भाव में हेराफेरी के आरोप लगाए थे.
हालांकि अदानी समूह ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था लेकिन इसके कारण मार्च तक उसकी कंपनियों के शेयरों के भाव में भारी गिरावट आ गई थी.
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