इजरायल-हमास युद्ध की वजह से लाल सागर में बढ़े तनाव का असर मालवाहक समुद्री जहाजों के किराए पर पड़ रहा है. अंग्रेजी समाचार पत्र इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि सामान्य तौर पर इस रास्ते 500-600 डॉलर का किराया वसूला जाता है और जनवरी से मार्च के पीक सीजन में यह बढ़कर 1500 डॉलर हो जाता है, लेकिन निर्यातकों को बताया गया है कि इस बार 2000 डॉलर किराया होगा और वार प्रीमियम की वजह से सरचार्ज भी वसूला जा रहा है, जिस वजह से किराया बढ़कर 3000 डॉलर हो गया है. भारत और यूरोप के बीच का अधिकतर कारोबार इसी रास्ते के जरिए होता है.
किराए में बढ़ोतरी को लेकर किसी सरकारी अधिकारी की तरफ से यह बयान पहली बार आया है, और ऐसे समय पर आया है जब शिपिंग कंपनियां लाल सागर के रास्ते अपने जहाज भेजने से इनकार कर रही हैं. दिग्गज शिपिंग कंपनी Maersk ने पहले ही साफ कर दिया है कि वह सामान की आवाजाही कि लिए अफ्रीका के रास्ते अपने जहाज भेजेगी न कि लाल सागर के रास्ते. इस वजह से भी किराए में बढ़ोतरी हुई है.
इस बीच वैश्विक व्यापार पर रिसर्च करने वाली संस्था GTRI ने कहा है कि बाद-अल-मन्देब खाड़ी में तनाव को देखते हुए भारत को समुद्री रास्ते अपने सामान की आवाजाही के लिए कोई नई योजना तैयार करनी होगी और नए रूट्स खोजने होंगे. बाद-अल-मन्देब खाड़ी में ही यमन के हूति विद्रोही मालवाहक जहाजों को निशाना बना रहे हैं, इजरायल-हमास युद्ध की वजह से हूति विद्रोहियों हमास का समर्थन करने के लिए यह कदम उठाया है. GTRI ने भारत को यह भी कहा है कि उसे यमन में मानवीय सहायता भेजनी चाहिए, नेचुरल गैस तथा कच्चे तेल के नए सप्लायर ढूंढने चाहिए और मालभाड़ा कम करने के लिए इंटरनेशनल शिपिंग कंपनियों के साथ बातचीत करनी चाहिए.
GTRI के मुताबिक यूरोप और उत्तरी अफ्रीका के साथ भारत के लगभग 113 अरब डॉलर का व्यापार के लिए इस रूट का इस्तेमाल होता है जिसमें इंपोर्ट और एक्सपोर्ट दोनों शामिल हैं. ऐसे में भारत के लिए अगर यह रूट बंद होता है तो इसकी वजह से भारत का विदेश व्यापार तो प्रभावित होगा ही, साथ में भारत में आयातित वस्तुओं की महंगाई भी बढ़ सकती है.