पिछले महीने ही एलन मस्क ने न्यूरालिंक (Neuralink) यूजर के बारे में एक सकारात्मक अपडेट साझा किया था. उन्होंने खुलासा किया था कि पहला मरीज जिसे न्यूरालिंक ब्रेन चिप इम्प्लांट मिला था, वह पूरी तरह से ठीक हो गया है और अब वह अपने विचारों का इस्तेमाल करके कंप्यूटर माउस को नियंत्रित कर सकता है. और अब, लगभग एक महीने बाद, न्यूरालिंक के आधिकारिक हैंडल से लाइव-स्ट्रीम किए गए एक वीडियो में मरीज का खुलासा किया गया है. मरीज 29 वर्षीय व्यक्ति है जो एक दुर्घटना के बाद कंधों के नीचे लकवाग्रस्त हो गया था. वीडियो में उसे अपने दिमाग का इस्तेमाल करते हुए कंप्यूटर पर शतरंज का खेल खेलते हुए दिखाया गया है. एलन मस्क ने भी एक्स पर अपने निजी हैंडल के जरिए वीडियो पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है.
खूब वायरल हो रहा वीडियो
वीडियो को पहले ही 74 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है और इसे इंटरनेट पर खूब वायरल किया जा रहा है. कई यूजर्स ने मस्क की पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए न्यूरालिंक को यह उपलब्धि हासिल करने पर बधाई दी है. जहां कुछ यूजर्स का कहना है कि वे इस वीडियो को देखने के बाद “प्रेरित” हुए हैं, वहीं कई इसे “अविश्वसनीय” कहते हैं.
दुर्घटना में हो गए थे लकवाग्रस्त
वीडियो की बात करें तो इसमें एक न्यूरालिंक इंजीनियर को कंपनी के पहले ह्यूमन ट्रायल रोगी का परिचय कराते हुए दिखाया गया है. 29 वर्षीय इस व्यक्ति का नाम नोलैंड आर्बॉघ (Noland Arbaugh) है, जिसने वीडियो में खुलासा किया कि लगभग 8 साल पहले हुई एक दुर्घटना के बाद उसके कंधों के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया था. अर्बॉघ फिर कहते हैं कि न्यूरालिंक ने उन्हें शतरंज खेलने में सक्षम बनाया है, कुछ ऐसा जो उन्हें पसंद है लेकिन अब तक अपने दम पर ऐसा करने में असमर्थ थे.
न्यूरालिंक चिप प्राप्त करने के बाद वह कैसा महसूस कर रहे हैं और केवल सोचने मात्र से शतरंज खेलने में सक्षम हैं, इस बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “यह पागलपन भरा है, बहुत अच्छा है. मैं इसका हिस्सा बनकर भाग्यशाली हूं. ऐसा लगता है कि हर दिन मैं कुछ नया सीख रहा हूं.” मैं बता नहीं सकता कि ऐसा करने में सक्षम होना कितना अच्छा है.”
नहीं लेनी पड़ती दूसरों की मदद
उन्होंने यह भी खुलासा किया कि पहली बार जब उन्हें पूरा नियंत्रण दिया गया, तो वह सुबह 6 बजे तक सिविलाइज़ेशन 6 खेलते रहे. फिर उन्होंने इस बारे में बात की कि कैसे न्यूरालिंक ने उन्हें सक्षम बनाया है क्योंकि उन्हें किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है. “मैं आईपैड के जरिए ही खेल सकता था और मैं अपने माता-पिता की मदद के बिना नहीं खेल सकता था. मैं उन्हें पूरी रात गेम खेलने में मदद करने के लिए जगाकर नहीं रख सकता था. मैं केवल कुछ घंटों के लिए ही खेल सकता था . पूरा गेम खेलना संभव नहीं था. और अब मैं बस बिस्तर पर लेट सकता हूं और जी भर कर खेल सकता हूं. सबसे बड़ी बाधा इम्प्लांट के चार्ज होने तक इंतजार करना था लेकिन यह बहुत बढ़िया रहा.”
अभी और काम बाकी
ऐसा कहने के साथ ही, आर्बॉघ ने कहा कि तकनीक अभी भी सही नहीं है और अभी भी बहुत काम किया जाना बाकी है. हालांकि, यह अभी भी कुछ ऐसा है जो दुनिया को बदलने जा रहा है और जो लोग इस प्रक्रिया में शामिल होने की सोच रहे हैं उनके लिए डरने की कोई बात नहीं है.
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