कोविड महामारी के बाद श्रम आपूर्ति में सुधार का प्रतिकूल असर वेतन वृद्धि पर पड़ा है. श्रम बल उपलब्धता में सुधार होने से वेतन वृद्धि की रफ्तार घटी है. इसके साथ ही लैंगिक आधार पर वेतन में अंतर भी बढ़ गया है. सेंटर फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस के अध्यक्ष लवीश भंडारी का कहना है कि कोविड के बाद की अवधि में श्रम आपूर्ति में सुधार का समग्र वेतन वृद्धि पर असर पड़ा है, जो पिछले वर्ष की तुलना में कम है. पेरिओडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के आंकड़ों के मुताबिक, शहरी क्षेत्रों में नियमित वेतनभोगी कर्मचारियों की औसत वेतन वृद्धि दर 2022-23 (जून-जुलाई) में घटकर 4.9 फीसदी पर आ गई, जो 2021-22 में 8.3 फीसदी थी.
मैनेजरियल और प्रोफेशनल्स जॉब की तुलना में कम वेतन वाली नौकरियों जैसे क्लर्क, सर्विस और स्केल वर्कर्स की वेतन वृद्धि में अधिक गिरावट दर्ज की गई है. शहरी क्षेत्रों में मैनेजरियल जॉब्स के लिए औसत वेतन वृद्धि 19.6 फीसदी रही, जबकि क्लर्क के वेतन में 5.4 फीसदी और सर्विस एवं सेल्स वर्कर्स के लिए वेतन वृद्धि 1.4 फीसदी रही.
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ में सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज के विजिटिंग प्रोफेसर, संतोष मेहरोत्रा का कहना है कि कॉरपोरेट सेक्टर के कर्मचारियों और अन्य नियमित वेतनभोगी कर्मचारियों के वेतन वृद्धि में अंतर अर्थव्यवस्था में के-शेप रिकवरी की ओर इशारा करता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, पुरुष और महिला कर्मचारियों के बीच वेतन को लेकर भेदभाव भी बढ़ा है. शहरी क्षेत्रों में मैनेजरियल, प्रोफेशनल और टेक्नीकल स्तर पर पुरुष कर्मचारी और महिला कर्मचारी की कमाई के बीच का अंतर 2022-23 में बढ़कर 1.27 गुना हो गया है, जो 2021-22 में औसतन 1.19 गुना था.
विशेषज्ञों के मुताबिक, वर्कफोर्स में अधिक संख्या में महिलाओं के शामिल होने और महिलाओं की तुलना में पुरुषों के अधिक भरोसेमंद होने की पुरानी धारणा प्रगति में बाधा बन रही है. शहरी क्षेत्रों में महिला कर्मचारियों की संख्या 2022-23 में बढ़कर 25.4 फीसदी हो गई, जो इससे पहले साल में 23.8 फीसदी थी. बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि कंपनियां पुरुषों को अधिक वेतन वृद्धि देती हैं, क्योंकि उनसे लंबे समय तक काम करने की उम्मीद की जाती है.
2022-23 में, मैनेजरियल काम में कार्यरत पुरुषों के वेतन में 20 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि महिला मैनेजर्स के वेतन में मात्र 9 फीसदी की वृद्धि हुई. हालांकि, सबनवीस ने कहा कि अब धारणाएं बदल रही हैं और कुछ क्षेत्र जैसे बीएफएसआई में महिला-पुरुषों के बीच वेतन समानता आ चुकी है.
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