कैफीनयुक्त एनर्जी ड्रिंक्स का बढ़ता इस्तेमाल इन्हें सरकारी जांच के दायरे में ले आया है . कैफिनेटेड एनर्जी ड्रिंक्स की ग्रोथ दहाई के अकों में बढ़ी है. इसका इस्तेमाल किशोरों, एथलीटों और जिम उत्साही लोगों के बीच तेजी से बढ़ा है. इसकी वजह है कि हाई-कैफीन एनर्जी ड्रिंक्स पहले की तुलना में ज्यादा किफायती और आसानी से उपलब्ध हैं. हालांकि लोगों की सेहत को ध्यान में रखते हुए
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ऊर्जा या कैफीनयुक्त ड्रिंक्स के लिए मौजूदा नियमों का दोबारा मूल्यांकन कर रहा है ताकि उन्हें सख्त बनाया जा सके.
बढ़ रहा है एनर्जी ड्रिंक्स का इस्तेमाल
कंपनी के अधिकारियों ने रिसर्सचर नील्सनआईक्यू के डेटा से पता चला है कि एनर्जी ड्रिंक्स की बिक्री हर साल 50-55 फीसद बढ़ रही है. रेड बुल और मॉन्स्टर के मुकाबले पेप्सिको, कोका-कोला और हेल जैसी कंपनियां लगभग एक-चौथाई कीमत पर एनर्जी ड्रिंक्स बेच रही हैं. किराने की दुकानों पर भी इन कंपनियों का दबदबा है.
स्वास्थ्य पर असर
हालांकि, युवाओं के बीच उनकी बढ़ती खपत चिंता का विषय है क्योंकि अध्ययनों से पता चलता है कि इनके ज्यादा सेवन का स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है. मेडिकल जर्नल बीएमजे ओपन ने जनवरी में एक रिपोर्ट में कहा था कि एनर्जी ड्रिंक के ज्यादा सेवन से नींद न आने की समस्या को बढ़ा सकता है.
क्या होगा बदलाव?
अंग्रेजी अखबार इकम FSSAI ने कंपनियों को कैफीन सामग्री को प्रमुखता से प्रदर्शित करने, या “हाई कैफीन” जैसे लेबल लगाने की योजना बनाई है. उन्होंने कहा, “भले ही अब पैक पर कैफीन की मात्रा का खुलासा करना अनिवार्य है, हम चाहते हैं कि इसे प्रमुखता से लिखा जाए.” कार्यकारी ने कहा कि भविष्य में नियमों में पैक पर कैफीन की खपत सीमा का खुलासा करना भी अनिवार्य हो सकता है.
कैफीन की सीमित मात्रा
2016 में, नियामक ने 145 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक कैफीन वाले सभी गैर-अल्कोहल ड्रिंक्स को ‘कैफिनेटेड ड्रिंक्स’ के रूप में लेबल किया था. इसके अलावा नियामक ने ड्रिंक्स में कैफीन की मात्रा 300 मिलीग्राम प्रति लीटर तक सीमित कर दी थी.