देश में पिछले नौ साल में 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी यानी स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनस्तर के मामले में गरीबी से बाहर आए हैं. नीति आयोग ने एक रिपोर्ट में कहा है कि गरीबी में सबसे ज्यादा कमी उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में आई है. बहुआयामी गरीबी को स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनस्तर में सुधार के जरिये मापा जाता है. नीति आयोग के परिचर्चा पत्र के अनुसार, देश में बहुआयामी गरीबी 2013-14 में 29.17 फीसद थी, जो 2022-23 में घटकर 11.28 फीसद रही. इसके साथ इस अवधि के दौरान 24.82 करोड़ लोग इस श्रेणी से बाहर आये हैं.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा है कि बहुत उत्साहजनक। यह समावेशी विकास को आगे बढ़ाने और हमारी अर्थव्यवस्था में परिवर्तनकारी बदलावों पर ध्यान केंद्रित करने के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है. हम चौतरफा विकास और प्रत्येक भारतीय के लिए समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करने की दिशा में काम करना जारी रखेंगे. आयोग ने कहा कि राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनस्तर के मोर्चे पर स्थिति को मापती है. यह 12 सतत विकास लक्ष्यों से संबद्ध संकेतकों के माध्यम से दर्शाए जाते हैं.
इनमें पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृत्व स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने का ईंधन, स्वच्छता, पीने का पानी, बिजली, आवास, संपत्ति और बैंक खाते शामिल हैं. नीति आयोग का राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) गरीबी दर में गिरावट का आकलन करने के लिए ‘अलकायर फोस्टर पद्धति’ का उपयोग करता है. हालांकि, राष्ट्रीय एमपीआई में 12 संकेतक शामिल हैं जबकि वैश्विक एमपीआई में 10 संकेतक हैं. राज्य स्तर पर, उत्तर प्रदेश में 5.94 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले और इस मामले में यह सूची में शीर्ष पर है. इसके बाद बिहार में 3.77 करोड़ और मध्य प्रदेश में 2.30 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले. इस अवधि के दौरान एमपीएस के सभी 12 संकेतकों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है.
नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि नौ साल में 24.82 लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर आए यानी हर साल 2.75 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले. नीति आयोग के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) बी वी आर सुब्रमण्यम ने कहा कि सरकार का लक्ष्य बहुआयामी गरीबी को एक प्रतिशत से नीचे लाना है और इस दिशा में सभी प्रयास किए जा रहे हैं. परिचर्चा पत्र में कहा गया है कि भारत गरीबी स्तर को इस साल एकल अंक में लाने के लिए पूरी तरह से तैयार है. इससे यह भी पता चलता है कि गरीबी में गिरावट की गति 2005-06 से 2015-16 की अवधि (7.69 फीसद सालाना) की तुलना में 2015-16 से 2019-21 के बीच बहुत तेज थी.
2019-21 के दौरान इसमें सालाना आधार पर 10.66 प्रतिशत की गिरावट आई. सरकार के विभिन्न कदमों और योजनाओं से यह संभव हुआ है. परिचर्चा पत्र के अनुसार गरीब राज्यों में गरीबी में गिरावट तेज रही. यह बताता है कि विषमता में कमी आई है. परिचर्चा पत्र के अनुसार, भारत 2030 से काफी पहले सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 1.2 (बहुआयामी गरीबी को कम-से-कम आधा करना) हासिल कर सकता है.
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