दिवालियापन संरक्षण की मांग करने वाली गो फर्स्ट की मुश्किलें अभी तक खत्म नहीं हुई हैं. दरअसल एयरलाइंस के ऋणदाताओं ने कर्ज समाधान की समय-सीमा को 90 दिनों के लिए और बढ़ा दिया है. पिछली बढ़ी समय सीमा की आखिरी तारीख सोमवार थी. वहीं दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह निर्णय लिया है कि विमान पट्टेदारों के पास प्रशासन में किसी वाहक के विमानों को जब्त करने का अधिकार है. बता दें मई में गो फर्स्ट की सेवाएं बंद होने के बाद से ऋणदाताओं का लगभग 6,500 करोड़ रुपए फंस गया है.
सूत्रों का कहना है कि मौजूदा स्थिति को देखते हुए समय सीमा को बढ़ाया जाना जरूरी था. चूंकि नवीन जिंदल ही ऐसे इकलौते व्यक्ति हैं जिन्होंने बोली लगाई थी. ऐसे में उन्हें इस मसले पर काम करने के लिए कम से कम एक महीने का समय दिया जाना चाहिए. बता दें जिंदल स्टील एंड पावर के प्रमोटर नवीन जिंदल ने ईओआई के जरिए गो फर्स्ट खरीदने के लिए बोली लगाई थी. जबकि दो अन्य संभावित बोलीदाता ऋणदाताओं की ओर से निर्धारित वित्तीय मापदंडों को पूरा नहीं कर सके थे.
नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने एक हलफनामे में दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि विमानन दिवालियापन स्थगन से छूट देने वाला आदेश दूसरी दिवालिया कार्यवाही से गुजरने वाली कंपनियों पर भी लागू होना चाहिए. डीजीसीए के इस बयान के चलते बैंकर रिवाइवल प्लान को लेकर ज्यादा उम्मीद नहीं रख रहे हैं. एयरलाइन के रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल (आरपी) ने अदालत को बताया कि दिवाला और दिवालियापन संहिता के तहत विमान और इंजन से संबंधित लेनदेन को अनिवार्य स्थगन से छूट देने वाली 3 अक्टूबर की सरकारी अधिसूचना भविष्य में लागू होगी.
बैंकरों और आरपी ने तर्क दिया है कि नई सरकारी अधिसूचना उस एयरलाइन पर लागू नहीं हो सकती है, जिसे 5 मई को दिवालिया घोषित कर दिया गया था. पट्टेदारों ने 54 विमानों के पट्टे खत्म कर दिए हैं और दिवालियापन स्थगन को खत्म करने के लिए अदालत में याचिका दायर की है. इससे उन्हें पट्टे पर लिए गए विमान वापस लेने की अनुमति मिल जाएगी. दिल्ली उच्च न्यायालय में पट्टादाताओं द्वारा दायर मामले में दलील दी गई है कि वे विमानों का पंजीकरण रद्द कर सकते हैं क्योंकि पट्टे अधिस्थगन की घोषणा से पहले समाप्त कर दिए गए थे. मामले में सुनवाई की अगली तारीख 9 नवंबर है.
बैंकरों का कहना है कि यदि पट्टेदारों को विमान का कब्ज़ा लेने की अनुमति दी गई, तो एयरलाइन का रिवाइवल प्लान खतरे में पड़ जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप बैंक ऑफ बड़ौदा और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के नेतृत्व वाले लेनदारों को 6,500 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान होगा.
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