आजकल ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं जहां डिजिटल अरेस्ट के नाम पर लोगों को ठगा जा रहा है. यहां कॉल करने वाला खुद को पुलिस या CBI जैसी प्रवर्तन एजेंसियों का अधिकारी बता कर ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ का दावा करता है और पैसे वसूलता है. इसी तरह के मामलों और भारत के बाहर से आने वाली फर्जी कॉल्स को रोकने के लिए इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C) दूरसंचार विभाग (DoT) के साथ काम कर रही है.
अक्सर विदेशों में बैठे घोटालेबाजों भारतीयों से पैसे ऐंठने के लिए प्रवर्तन एजेंसी के LOGO का भी इस्तेमाल करती है, जिससे विक्टिम को विश्वास दिलाकर धोखा देना आसान हो जाए. इसे रोकने के लिए I4C माइक्रोसॉफ्ट के साथ भी काम कर रही है.
कैसे होती है ठगी?
I4C के सीईओ राजेश कुमार के मुताबिक पीड़ित को एक भारतीय नंबर से सामान्य कॉल की जाती है. कॉल स्पूफिंग का इस्तेमाल कर ठग खुद को सीबीआई, आरबीआई, एनआईए या बैंक कर्मचारी बताकर कॉल करते हैं. भारतीय एजेंसियों का प्रतिरूपण करते हुए हजारों स्काइप आईडी बनाए गए हैं. I4C ने कुमार ने आगे कहा कि माइक्रोसॉफ्ट को 1,500 सक्रिय स्काइप आईडी की सूचना दी गई है.
कैसे वसूला जाता है पैसा?
डिजिटल गिरफ्तारियों के दौरान पैसा वसूलने के लिए अंतरराष्ट्रीय फंड ट्रांसफर, फिजिकल गोल्ड, क्रिप्टोकरेंसी और एटीएम निकासी जैसे माध्यम का इस्तेमाल किया जाता है. कुमार ने नागरिकों से साइबर अपराध वेबसाइट पर धोखाधड़ी वाले फोन नंबर, व्हाट्सएप पहचान या यूआरएल की रिपोर्ट करने का आग्रह किया, जो “संदिग्ध डेटा” में किया जा सकता है. नागरिक वेबसाइट पर “संदिग्ध रिपॉजिटरी डेटा” से फोन नंबरों को भी वेरिफाई भी कर सकते हैं.
सरकार ने जारी एडवाइजरी
गृह मंत्रालय (एमएचए) ने पिछले हफ्ते डिजिटल गिरफ्तारियों पर एक सलाह जारी की थी जिसमें कहा गया था कि ये धोखेबाज पुलिस स्टेशनों और सरकारी कार्यालयों पर आधारित स्टूडियो का इस्तेमाल करते हैं और असली दिखने के लिए वर्दी पहनते हैं. वे पीड़ित को फोन करते हैं और उन्हें बताते हैं कि उन्होंने एक पार्सल भेजा है या उन्हें पार्सल भेजा जाएगा जिसमें अवैध सामान, ड्रग्स, नकली पासपोर्ट जैसा सामान है. कभी-कभी, वे उन्हें यह भी बताते हैं कि पीड़ितों में से कोई करीबी किसी अपराध या दुर्घटना में शामिल पाया गया है और उनकी हिरासत में है.
सरकार उठा रही कदम
“केस” में समझौता करने के लिए पैसे की मांग की जाती है. कुछ मामलों में, बिना सोचे-समझे पीड़ितों को “डिजिटल गिरफ्तारी” से गुजरना पड़ता है. और जब तक उनकी मांग पूरी नहीं हो जाती, तब तक वे स्काइप या अन्य वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग जारी रखते हैं. यह एक संगठित ऑनलाइन आर्थिक अपराध है. माना जा रहा है कि इसे क्रॉस बॉर्डर क्राइम सिंडिकेट चला रहा है. गृह मंत्रालय ने कहा कि I4C ऐसे धोखेबाजों के सिम कार्ड, मोबाइल और मूल खातों को ब्लॉक कर रही है.
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