देश में बैंकिंग फ्रॉड तेजी से बढ़े हैं. इस वजह से बैंकों को नुकसान भी उठाना पड़ा है. वित्तीय वर्ष 2015-2016 के बाद से, अबतक सभी बैंक धोखाधड़ी की वजहों से 1.01 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि को बट्टे खाते में डाल चुके हैं. इसका मतलब है कि वित्त 2015-2016 से अबतक बैंकों ने लगभग 13,000 करोड़ रुपए सालाना बट्टे खाते में डाले हैं.
वित्त वर्ष 2016 में बैंकों ने लगभग 3,000 करोड़ रुपए के राइट-ऑफ की सूचना दी था. यह उस साल के कुल कर्ज का 0.04 फीसद था. इसकी तुलना में, वित्त वर्ष 202-2023 में धोखाधड़ी के कारण कुल क्रेडिट का 0.03 फीसद बट्टे खाते में डाला गय था. हालांकि कुल आंकड़ा वित्त वर्ष 2016 की तुलना में अभी भी ज्यादा था. वित्त वर्ष 2019 से वित्त वर्ष 23 के बीच बैंकों ने 10 लाख करोड़ रुपए से अधिक की रकम राइट ऑफ कर दी है. इस राशि का 9 फीसद धोखाधड़ी से बट्टे खाते में डाला गया.
हालांकि पहले सरकारी बैंक धोखाधड़ी की वजह से प्राइवेट बैंकों के मुकाबले ज्यादा रकम राइटऑफ किया करते थे. लेकिन धीरे-धीरे यह तस्वीर पलटने लगी.वित्त वर्ष 2016 में, सरकारी बैंकों ने कुल राशि का 80 फीसद धोखाधड़ी के कारण बट्टे खाते में डाल दिया गया. तब निजी बैंकों की हिस्सेदारी 12 फीसद थी. वहीं वित्त वर्ष 2021 में सरकारी बैंकों का राइट-ऑफ में 14 फीसद और निजी बैंकों का 79 फीसद हिस्सा था.
वित्त वर्ष 2023 में धोखाधड़ी के कारण बट्टे खाते में डाली गई रकम में से 74 फीसदी हिस्सेदारी निजी बैंकों की थी और 24 फीसदी हिस्सेदारी राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों की थी. बैंक धोखाधड़ी की कुल संख्या वित्त वर्ष 2019 में 6,800 थी जो वित्त वर्ष 2022-23 में बढ़कर 13,500 से ज्यादा हो गई. इसमें निजी बैंकों की हिस्सेदारी 34 फीसद से 66 फीसद हो गई. हालांकि इस अवधि में धोखाधड़ी में शामिल राशि 71,500 करोड़ रुपए से घटकर 30,200 करोड़ रुपए हो गई. सभी बैंक धोखाधड़ी में शामिल राशि वित्त वर्ष2020 और 2021 में 1 लाख करोड़ रुपए से ऊपर थी.
हालांकि धोखाधड़ी में शामिल राशि में निजी बैंकों की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2018-2019 में 10 फीसद से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में 30 फीसद हो गई. वित्त वर्ष 2022-2023 में सभी बैंक धोखाधड़ी में से 30 फीसदी धोखाधड़ी कर्ज से जुड़ी थी.