सरकारी कंपनियों में खाली पड़े पद और उन कंपनियों के पास पड़े पैसे का हिसाब लगाया जाए तो इतना पैसा तो जरूर है कि खाली पड़े पदों को आसानी से भरा जा सकता है. लेकिन कंपनियां इस पैसे का इस्तेमाल खाली पदों को भरने के बजाय म्यूचुअल फंड्स में निवेश के लिए कर रही हैं और अब तो सरकार ने इन कंपनियों को निजी म्यूचुअल फंड्स की डेट स्कीम में निवेश की अनुमति भी दे दी है. पहले SBI, UTI और LIC जैसे पब्लिस सेक्टर के म्यूचुअल फंड्स में ही निवेश की अनुमति थी.
35 म्यूचुअल फंड्स के पास डेट स्कीम में निवेश का ऑप्शन
देश में करीब 35 म्यूचुअल फंड्स के पास डेट स्कीम में निवेश का विकल्प है, और माना जा रहा है कि सरकार की अनुमति के बाद सरकारी कंपनियों की तरफ से इन सभी म्यूचुअल फंड्स में निवेश बढ़ सकता है, क्योंकि कोल इंडिया, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स, मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स, एनएमडीसी, बीईएल और भेल जैसी लिस्टेड सरकारी कंपनियों के पास भारी-भरकम नकदी है. 31 मार्च 2022 के आंकड़ों के अनुसार, इन कंपनियों के पास करीब 158,478 करोड़ रुपए का कैश बैलेंस है. इसमें सरकारी बैंकों, बीमा कंपनियों और वित्तीय कंपनियों के कैश बैलेंस के आंकड़े शामिल नहीं हैं.
इंडस्ट्री का कुल AUM 40-41 लाख करोड़ तक पहुंचेगा?
इतनी बड़ी रकम अगर म्यूचुअल फंड्स के पास मैनेज होने के लिए आएगी तो उनकी असेट अंडर मैनेजमेंट यानी AUM में तो बढ़ोतरी होगी ही साथ में म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री का शेयर बाजार में भी निवेश बढ़ सकता है. इस साल अक्टूबर अंत तक म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री का कुल AUM 39 लाख करोड़ रुपए था, और अब इसके बढ़कर 40-41 लाख करोड़ तक पहुंचने की संभावना है.
सरकारी कंपनियों के पास पड़े इस भारी कैश सरप्लस का इस्तेमाल पूंजीगत निवेश के तौर पर होना चाहिए था, ताकी कंपनियां नई इकायों की शरुआत करतीं, बाजार में नई मांग भी तैयार होती और नई नौकरियां भी निकलती, साथ में इस पैसे का इस्तेमाल पहले से खाली पड़े पदों को भरने के लिए भी हो सकता था.
4 साल में सीधे 1 लाख पद घट गए
2016-17 से लेकर पिछले साल मार्च तक पब्लिक सेक्टर की कंपनियों में नौकरी करने वाले लोगों का आंकड़े में 1 लाख की कमी आई है, यानी 4 साल में सीधे 1 लाख पद घट गए हैं. जिन्हें पब्लिक सेक्टर की कंपनियां अपने पास पड़े कैश रिजर्व से भर सकती थीं. लेकिन अब यह पैसा म्यूचुअल फंड बाजार में निवेश होने जा रहा है. इससे कंपनियों और सरकार को तो फायदा हो सकता है, लेकिन रोजगार के बाजार में नौकरियों की किल्लत और भी ज्यादा बढ़ सकती है.