भारत में म्यूचुअल फंड्स के आकार में काफी वैरायटी हैं. इनका एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) 10 करोड़ से लेकर 50 हजार करोड़ रुपए तक है. अगर किसी फंड का AUM ज्यादा है तो इसका मतलब यह है कि उसमें निवेशकों की एंगेजमेंट ज्यादा है और कम AUM का मतलब है कि निवेशक इस फंड में कम रुचि दिखा रहे हैं. ऐसे कई फंड हैं जिनका AUM कम है, लेकिन उनमें बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड और रिस्क/रिटर्न की खूबियां हैं. ऊंचे AUM का हमेशा यह मतलब नहीं होता कि ऐसी स्कीम बेहतर प्रदर्शन भी करेगी.
क्या होता है AUM? इस पूरी कहानी को समझने से पहले आपके लिए यह समझना जरूरी है कि म्यूचुअल फंड्स का एसेट अंडर मैनेजमेंट यानी AUM क्या होता है? क्या सिर्फ इसके आधार पर तय हो सकता है कि कोई फंड अच्छा रिटर्न देगा या नहीं? किसी म्यूचुअल फंड के पास मैनेजमेंट के लिए उपलब्ध निवेश की जो कुल मार्केट वैल्यू होती है, उसे एसेट अंडर मैनेजमेंट या एयूएम कहते हैं.
क्या होता है रिटर्न पर असर? आपके फंड के AUM से क्या फंड के रिटर्न पर वाकई कोई असर होता है? पहले यह समझते हैं कि इक्विटी म्यूचुअल फंड में क्या होता है? सच तो यह है कि किसी फंड के आकार से इक्विटी फंड के रिटर्न पर बहुत मामूली असर होता है. भारतीय शेयर बाजार का आकार काफी बड़ा है इसलिए इक्विटी फंड्स का AUM भी अक्सर बड़ा होता है. बड़े AUM से ऐसा लगता है कि फंड अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन यह इस बात की गारंटी नहीं होता कि आगे भी फंड अच्छा प्रदर्शन करेगा. लेकिन किसी स्कीम को सिर्फ इस आधार पर खारिज करना सही नहीं है कि उसके फंड का आकार कम है.
उदाहरण के लिए, एक्सिस ब्ल्यूचिप लार्जकैप फंड का AUM 32,615 करोड़ रुपए है, जबकि PGIM इंडिया लार्जकैप फंड का AUM सिर्फ 432 करोड़ रुपए का है.
ज्यादातर निवेशक नेट एसेट का आकार देखकर Axis Bluechip फंड में ही निवेश करेंगे, लेकिन अगर रिटर्न की बात करें तो एक और तीन साल में PGIM Ind Large cap ने बेहतर रिटर्न दिया है..
हालांकि, स्मॉलकैप इक्विटी म्यूचुअल फंड में AUM या फंड का आकार कुछ मायने रखता है. इसकी वजह यह है कि स्मॉलकैप फंड स्मॉलकैप शेयरों में निवेश करते हैं. ऐसी छोटी कंपनियों में ग्रोथ की संभावना बहुत ज्यादा होती है, लेकिन आकार बहुत छोटी होने से वे कभी-कभी नकदी की समस्या से जूझने लगती हैं.
स्मॉलकैप शेयर मिडकैप या लार्जकैप शेयरों की तुलना में कम तरल होते हैं. बाजार में जब गिरावट होती है, तो 100-50 करोड़ रुपए वाले स्मॉलकैप के फंड में रीडेम्पशन बढ़ जाता है, इसका नतीजा यह होता है कि फंड के पास पैसे की तंगी हो जाती है. ऐसी परिस्थिति में फंड मैनेजर के लिए शेयरों को बेचना भी आसान नहीं होता, जिससे कि निवेशकों की निकासी की भरपाई की जा सके. मतलब कुल मिलाकर एएनवी में गिरावट होने लगती है और निवेशकों का नुकसान होता है.
डेट फंड में क्या होता है? अगर डेट फंड की बात करें तो इनमें फंड का आकार या AUM कुछ मायने रखता है. बड़े AUM वाले डेट फंड का फायदा यह है कि इनमें लागत कम रहती है, क्योंकि बड़े फंड का एक्सपेंस रेश्यो कम होता है. वे किसी छोटे फंड के मुकाबले ज्यादा पैसा निवेश कर सकते हैं. बड़े डेट फंड कर्ज लेने वालों यानी जिन बॉन्ड आदि साधनों में वे निवेश कर रहे हैं, उनसे बेहतर ब्याज दर की डिमांड कर सकते हैं. इन सबका असर यह होता है कि उनका रिटर्न ज्यादा होता है.
हालांकि बड़े आकार के डेट फंड में एक समस्या यह है कि उन्हें लिक्विडेट करना यानी जरूरत पर पैसा हासिल करना मुश्किल होता है. डेट मार्केट अगर इलिक्विड हो और फंड को पैसे की जरूरत हो, तो उसके लिए रकम जुटाना आसान नहीं होता. यानी डेट सिक्योरिटीज में लिक्विडिटी का स्तर जैसे पैरामीटर भी मायने रखते हैं.
किस आधार पर करें चुनाव? कुछ फंड में आकार का फायदा मिलता है, लेकिन यह भी एक सीमा तक ही. इसलिए निवेशकों को किसी फंड को चुनते समय यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि फंड मैनेजर कितना कुशल है, उसकी टीम कैसी है, फंड हाउस का ट्रैक रिकॉर्ड कैसा है और वह शेयरों या अन्य सिक्योरिटीज के चयन के लिए किस तरह की प्रक्रिया का पालन करता है? इसलिए किसी फंड में निवेश करने से पहले किसी भी निवेशक को उसका ट्रैक रिकॉर्ड, एक्सपेंस रेश्यो, फंडहाउस की विश्वसनीयता, जोखिम और रिटर्न के रिश्ते आदि को भी समझना होगा.
पर्सनल फाइनेंस पर ताजा अपडेट के लिए Money9 App डाउनलोड करें।