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MCLR या रेपो लिंक्ड होम लोन में से किसमें है ग्राहकों को फायदा?

ग्राहकों के सामने सवाल ये पैदा हो रहा है कि क्या उन्हें MCLR पर मौजूद अपने होम लोन को RLLR पर शिफ्ट कर लेना चाहिए या नहीं?

  • Money9 Hindi
  • Last Updated : March 31, 2021, 14:24 IST
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होम लोन लेने वाले ग्राहकों के सामने कई तरह के सवाल होते हैं. इनके सामने होम लोन के लिए बैंक का चुनाव करने, कम ब्याज दरें, प्रोसेसिंग फीस और दूसरे डिस्काउंट देखने, लेट फीस, प्री पेमेंट चार्ज जैसे कई पहलुओं पर बैंकों के ऑफरों की तुलना करने की चुनौती होती है. अक्टूबर 2019 से रिजर्व बैंक ने बैंकों के लिए अपने रिटेल लोन को रेपो रेट से लिंक करने का निर्देश दिया था. इसके बाद होम लोन के पहले से मौजूद ग्राहकों के सामने एक बड़ा सवाल ये पैदा हो रहा है कि क्या उन्हें MCLR पर मौजूद अपने होम लोन को RLLR पर शिफ्ट कर लेना चाहिए या नहीं.

बेस रेट और MCRL

दरअसल, 1 अप्रैल 2016 से पहले जिन्होंने ने भी लोन लिए थे उनके लोन बेस रेट पर आधारित थे. इसके बाद MCLR या मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स लेंडिंग रेट अस्तित्व में आया. MCLR की दरें बेस रेट के मुकाबले 5 से 50 बेसिस पॉइंट्स कम थीं. MCLR रिजर्व बैंक (RBI) के तय किए जाने वाले रेपो रेट के साथ ज्यादा नजदीकी से जुड़ा हुआ होता है.

होम लोन के मामले में अगर रेपो रेट में बदलाव होता है तो इसका असर आपके होम लोन के फ्लोटिंग रेट पर पड़ता है. अगर बैंक MCLR को कम करता है तो आपके होम लोन से जुड़े हुए फ्लोटिंग रेट में भी गिरावट आती है. इससे आपकी होम लोन की EMI तो कम नहीं होती, लेकिन लोन की अवधि पर इसका असर जरूर पड़ता है. अब बात करते हैं RLLR की. RLLR एक एक्सटर्नल बेंचमार्क है यहां RBI के रेपो रेट का इस्तेमाल बैंक अपने रिटेल लोन इंटरेस्ट रेट के आकलन के लिए करते हैं. रेपो रेट लिंक्ड लेंडिंग रेट को RLLR भी कहा जाता है. रेपो रेट लिंक्ड लेंडिंग रेट या RLLR तय करने के लिए बैंक रेपो रेट पर अपनी ऑपरेटिंग कॉस्ट को जोड़ते हैं. ऐसे में रेपो रेट में कटौती या बढ़ोतरी होने पर RLLR में ज्यादा तेज बढ़ोतरी या कटौती होती है. रिजर्व बैंक ने अक्टूबर 2019 में रेपो रेट लिंक्ड लेंडिंग रेट (RLLR) को शुरू किया था ताकि कस्टमर्स को रेपो रेट का जल्द फायदा मिल सके.

किसमें है ज्यादा फायदा? बैंक MCLR में होम लोन को आमतौर पर 6 महीने या एक साल तक इस रेट से लिंक रखते हैं. इस वजह से MCLR पर आधारित होम लोन में दरें 6 महीने या 1 साल बाद ही बदलते हैं. इसका सीधा मतलब ये है कि इस अवधि के बीच में रेपो रेट में होने वाले बदलाव का असर MCLR पर दिखाई नहीं देता है.

दूसरी तरफ RLLR में बैंकों को तीन महीने में कम से कम एक बार लोन की दरें बदलनी पड़ती हैं. ऐसे में इस रेट पर आधारित होम लोन की दरों में ज्यादा तेजी से बदलाव होते हैं. साथ ही रेपो रेट में होने वाली गिरावट का असर इन पर ज्यादा जल्दी दिखाई देता है और इसका फायदा सीधे ग्राहकों को मिलता है.

क्या आपको मिल सकता है इसका फायदा? अगर आपने MCLR पर होम लोन लिया है और अब आप RLLR पर अपने होम लोन को शिफ्ट करना चाहते हैं तो मौजूदा वक्त में कई बैंक इसकी सुविधा ग्राहकों को दे रहे हैं. इसका मतलब ये है कि नए ग्राहकों के अलावा पुराने ग्राहक भी RLLR बेस्ड होम लोन का फायदा अब उठा सकते हैं. हालांकि, ग्राहकों को इसके लिए चार्ज चुकाना पड़ेगा.

Published - March 31, 2021, 02:24 IST

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