डूबे कर्जों को वसूलने में फिसड्डी निकले सरकारी बैंक
बैंकों ने वित्तीय वर्ष 2014-15 से 2022-23 तक 10.42 लाख करोड़ रुपए की कुल ऋण राशि बट्टे खाते में डाल दी है और खातों से महज 1.61 लाख करोड़ रुपए की राशि ही वसूल की है
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ऋण राशि वसूलने में काफी पीछे हैं. सोमवार को लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि नौ वित्तीय वर्षों के दौरान सरकारी बैंक बट्टे खातों में डाले गए 5 रुपए में से 1 रुपए की भी वसूली नहीं कर पाए हैं. बैंकों ने वित्तीय वर्ष 2014-15 से 2022-23 तक 10.42 लाख करोड़ रुपए की कुल ऋण राशि बट्टे खाते में डाल दी है और एनपीए में डाले गए खातों से महज 1.61 लाख करोड़ रुपए की राशि ही वसूल की है. ऐसे में बैंकिंग उद्योग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि एनपीए में डाले गए खातों से वास्तविक वसूली कम है.
वित्त मंत्रालय की ओर से एक लिखित प्रतिक्रिया में भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा गया कि उस अवधि के दौरान वसूल की गई राशि राइट ऑफ में डाली गई राशि का 15.45 प्रतिशत है. आरबीआई दिशानिर्देशों के अनुसार, एनपीए ऐसे खाते हैं जिसमें कर्ज लेने वाला जानबूझकर ऋण नहीं चुका रहा है. ऐसे खातों को राइट-ऑफ के माध्यम से संबंधित बैंक की बैलेंस शीट से हटा दिया जाता है. पिछले हफ्ते इसी तरह के एक प्रश्न के जवाब में डॉ कराड ने कहा था कि इस तरह के खातों को राइट ऑफ करने से उधारकर्ताओं की देनदारियों में छूट नहीं मिलती है.
राइट ऑफ में डाले गए खातों से वसूली विभिन्न प्रक्रियाओं के माध्यम से शुरू की जाती है, जिसमें सिविल मुकदमा दायर करना या ऋण वसूली न्यायाधिकरणों में, वित्तीय संपत्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण और सुरक्षा हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 के तहत कार्रवाई, राष्ट्रीय कंपनी कानून में मामले दर्ज करना शामिल है. इसके अलावा दिवालियापन संहिता, 2016 के तहत न्यायाधिकरण, बातचीत के माध्यम से भी निपटान या समझौते किए जाते हैं.
बैंक निपटान पर बातचीत या समझौता कर सकते हैं या नॉन परफॉर्मिंग एसेट को बेच भी सकते हैं. मंत्री ने यह भी साफ किया कि जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों को समझौता निपटान का मौका दिया जाता है. इसका मकाद ऋणदाताओं को बिना किसी देरी के डिफ़ॉल्ट धन की वसूली के लिए कई विकल्प उपलब्ध कराना है.