खर्च चलाने के लिए राज्य जो कर्ज उठा रहे हैं उसपर लगने वाले ब्याज में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, यानी राज्यों को पहले के मुकाबले काफी महंगा कर्ज उठाना पड़ रहा है. दिसंबर तिमाही की पहली बॉन्ड नीलामी में राज्यों के लिए कर्ज की लागत में 10 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी दर्ज की गई है और यह बढ़कर 7.56 फीसद हो गई है, जो 23 हफ्ते का ऊपरी स्तर है. पहली नीलामी में 14 राज्यों ने बॉन्ड बिक्री के जरिए करीब 22500 करोड़ रुपए जुटाए हैं. कर्ज जुटाने के लिे बॉन्ड की अवधि को 17 साल से घटाकर 13 साल किए जाने के बावजूद कर्ज की लागत में बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
राज्यों के पास जब भी अपने संशाधनों से होने वाली कमाई में कमी आती है तो वे बॉन्ड जारी कर कर्ज उठाते हैं. अधिकतर ऐसा देखा गया है कि राज्यों को बॉन्ड के जरिए जिस ब्याज पर कर्ज दिया जाता है उसकी दर केंद्र सरकार के बॉन्ड के मुकाबले ज्यादा होती है, यानी केंद्र के मुकाबले राज्यों को महंगा कर्ज मिलता है. ऐसा इसलिए क्योंकि बॉन्ड बाजार में केंद्र सरकार की साख राज्यों की साख से ज्यादा बेहतर होती है. फिलहाल केंद्र सरकार के 10 साल के बॉन्ड की यील्ड 7.25 फीसद है.
अब राज्य क्योंकि ज्यादा ब्याज पर कर्ज उठा रहे हैं तो इससे उनके बजट पर बोझ पढ़ने की आशंका जताई जा रही है. और कर्ज का बोझ कम करने के लिए या तो उन्हें अपनी कमाई बढ़ानी होगी या खर्च कम करने होंगे. देश में अगले साल लोकसभा चुनाव है, ऐसे में राज्यों की तरफ से खर्च कम होने की उम्मीद का है, उल्टा राज्यों ने जो कर्ज उठाया है वह भी चुनावी सीजन में खर्च बढ़ाने में ही इस्तेमाल होगा.
यानी राज्यों सालभर में राज्यों की तरफ से खर्च तो कम नहीं होगा लेकिन कर्ज का बोझ उतारने के लिए राज्यों कमाई बढ़ाने का रास्ता अपनाना पड़ेगा. लेकिन देश में जीएसटी की व्यवस्था लागू होने के बाद राज्यों के पास कमाई बढ़ाने के लिए सीमित जरिए बचे हैं. राज्य अपने दायरे में आने वाली कुछ सेवाओं पर टैक्स लगा सकते हैं या फिर पेट्रोल पर टैक्स बढ़ा सकते हैं. लेकिन चुनावी सीजन में इसकी संभावना भी कम नजर आ रही है. यानी फिलहाल के लिए राज्यों पर कर्ज का बोझ बढ़ते रहने की आशंका है.