कई लोगों के लिए, रिटायरमेंट का मतलब है कि अब उनके पैसा कमाने की उम्र बीत गई है. रिटायर्ड लोगों के लिए जरूरी है कि वो उनके रिटायरमेंट एसेट का इस तरह इस्तेमाल करें कि उन्हें एक रेगुलर इनकम मिलती रहे और उनपर टैक्स का बोझ भी कम पड़े. हालांकि कई सीनियर सिटीजन के लिए, फिक्स्ड इनकम और मार्केट से जुड़े इन्वेस्टमेंट के कॉम्बीनेशन वाला रिटायरमेंट पोर्टफोलियो बनाना एक बड़ी चुनौती है.
आदर्श स्थिती ये है कि किसी के रिटायरमेंट के पैसे को उसके जिंदा रहने तक चलना चाहिए. एक व्यक्ति 50 या 60 साल की उम्र में रिटायर होता है, जबकि जीवन की उम्मीद 80 साल तक की जा सकती है.जो रिटायर्ड लोग पैसिव इनकम चाहते हैं वो इन इन्वेस्टमेंट को कंसीडर कर सकते हैं और अपने रिटायरमेंट पोर्टफोलियो में इन निवेश को जगह दे सकते हैं.
घरों की मांग बढ़ रही है जिसका मुख्य कारण है भारत की बढ़ती आबादी और खर्च करने की क्षमता का बढ़ना. ये ट्रेड इंडिकेट करता है कि कमर्शियल या हाउसिंग प्रॉपर्टी को किराए पर देकर आप इनकम का एक और जरिया बना सकते हैं. हालांकि, ऐसा करने के लिए, आपको उन जगहों पर निवेश करने की जरूरत है जो हाई डिमांड और हाई प्राइस पर शुरू होते हैं.
सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम (SCSS) जो ज्यादातर सीनियर सिटीजन का पहला विकल्प है. ये उनके फाइनेंशियल पोर्टफोलियो में जरूर होनी चाहिए. जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, ये प्रोग्राम बुजुर्ग सिनीयर सिटीजन और हाल ही में रिटायर लोगों तक ही सीमित है. SCSS, 60 साल से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति के लिए डाकघर या बैंक के माध्यम से उपलब्ध है. हाल ही में रिटायर हुए व्यक्ति अपना रिटायरमेंट फंड मिलने के बाद SCSS में निवेश कर सकते हैं, बशर्ते फंड मिलने के तीन महीने के अंदर. SCSS में पांच साल की अवधि होती है जिसे स्कीम के मैच्योर होने बाद और तीन साल के लिए बढ़ाया जा सकता है. वर्तमान में ये सालाना 7.4% का इंटरेस्ट रेट ऑफर कर रहा है.
फिक्स्ड डिपॉजिट पर ओल्ड इस गोल्ड की कहावत ठीक बैठती है. ये कभी भी आउट फैशन नहीं होता. रिटायर्ड लोगों के लिए एक प्लस प्वाइंट यह है कि FD में ब्याज दर की गारंटी है, जो उन्हें इक्विटी में निवेश के उतार-चढ़ाव से दूर रखता है.
पोस्ट ऑफिस मंथली इनकम स्कीम उन स्कीम में से एक है जहां आप एक स्पेसिफिक अमाउंट का निवेश कर सकते हैं और बदले में हर महीने एक फिक्स्ड इंटरेस्ट अमाउंट रिसीव कर सकते हैं. इंडिविजुअल 4.5 लाख रुपये तक का कंट्रीब्यूट कर सकते हैं और ज्वाइंट में आप पांच सालों के दौरान 9 लाख रुपये तक का निवेश कर सकते हैं. इस स्कीम का उद्देश्य कैपिटल को सेव करना है.
जब कोई रिटायर होता है, तो उसके बिना कमाई का दौर करीब दो दशकों या उससे अधिक समय तक चलता है, इसलिए रिटायरमेंट एसेट का एक हिस्सा इक्विटी से जुड़े प्रोडक्ट में डालना जरूरी हो जाता है. याद रखें कि रिटायरमेंट इनकम (इंटरेस्ट, डिविडेंड) महंगाई की चपेट में है, यहां तक कि रिटायर्ड फेज के दौरान भी. स्टडी के अनुसार, इक्विटी दूसरे एसेट की तुलना में बेहतर इंफ्लेशन-एडजस्टेड रिटर्न जनरेट करता है.
किसी की रिस्क उठाने की क्षमता के आधार पर, एसेट का स्पेसिफिक पर्सेंटेज इक्विटी म्यूचुअल फंड (MF) को एलोकेट किया जा सकता है, जिसमें लार्ज-कैप और बैलेंस्ड फंड के जरिए एडिशनल डायवर्सिफिकेशन होता है. मंथली इनकम प्लान में कुछ इक्विटी एक्सपोजर (MIP) भी शामिल हो सकते हैं. रिटायर्ड लोगों को सेक्टोरल और थीम आधारित फंडों के साथ-साथ मिड-कैप और स्मॉल-कैप शेयरों से बचने की सलाह दी जाती है. इसका उद्देश्य खासतौर से हाई लेकिन अनिश्चित रिटर्न पर फोकस करने के बजाय लगातार रिटर्न हासिल करना है.
यह ध्यान देना जरूरी है कि इक्विटी में एक्सपोजर निवेशक के रिस्क प्रोफाइल और उसके टाइम होराइजन पर निर्भर करता है. अगर संभावना है कि किसी को 3-5 साल से पहले इन फंडों की जरूरत पड़ सकती है, तो इक्विटी से दूर रहना बेहतर होगा.
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