Mutual Fund: अपने पोर्टफोलियो को डाइवर्सिफाई करने और सुरक्षा प्रदान करने के लिए डेट कैटेगरी में निवेश करना अच्छी बात है. यदि आपने डेट म्यूचुअल फंड में निवेश किया है तो यह सुनिश्चित करना चाहिए कि क्या आपने सही विकल्प चुने हैं. यदि आप नए निवेशक हैं और डेट म्यूचुअल फंड बारे में सोच रहे हैं तो यहां बताए गए कुछ पहलुओं पर विचार करने से आपको निवेश की सफर में आगे बढ़ने में आसानी होगी.
डेट म्यूचुअल फंड के प्रकार SEBI ने डेट म्यूचुअल फंड को विभिन्न केटेगरी में वर्गीकृत किया है, जैसे ओवरनाइट फंड, लॉन्ग-ड्यूरेशन फंड, लिक्विड फंड, डायनेमिक बॉन्ड फंड, अल्ट्रा शॉर्ट-टर्म फंड, शोर्ट-ड्युरेशन फंड, कॉर्पोरेट बॉन्ड फंड, लो ड्यूरेशन फंड, क्रेडिट रिस्क फंड, मनी मार्केट फंड, बैंकिंग & PSU फंड, गिल्ट फंड, फ्लोटर फंड.
आवश्यकता और रिस्क को समझें उपर बताई गई किसी भी केटेगरी में आप अपनी आवश्यकता और रिस्क लेने की क्षमता के आधार पर निवेश कर सकते है. आपको निवेश उद्देश्य और आपकी निवेश आवश्यकताओं के अनुरूप इनका चयन करना चाहिए.
डेट फंड में निवेश का उद्देश्यः डेट फंड में निवेश करने का आपका प्राथमिक उद्देश्य पूंजी का संरक्षण होना चाहिए. आपको विभिन्न लक्ष्य को हासिल करने के लिए डेट फंड को चुनना चाहिए और ये लक्ष्य हासिल हो जाने पर अपने निवेश को निकाल लेना चाहिए.
शोर्ट-टर्म के लिए इन्हें करें पसंद एक्सपर्ट बताते है कि, शॉर्ट टर्म लक्ष्यों के मामले में, आपको शॉर्ट मैच्योरिटी वाली योजनाओं जैसे ओवरनाइट, लिक्विड, अल्ट्रा शॉर्ट ड्यूरेशन फंड आदि में निवेश करना चाहिए. ये डेट म्यूचुअल फंड उच्च रिटर्न और पूंजी की उच्च सुरक्षा करते है, इसलिए शोर्ट-टर्म के लिए इन्हें बेहतर विकल्प माना जाता है, यदि आपने शोर्ट-टर्म के लिए निवेश किया है या करना चाहते है तो इन में से कोइ विकल्प चुन सकते है.
लोंग-टर्म के लिए इन्हें करें पसंद यदि लंबी अवधि के लक्ष्यों हासिल करने के लिए निवेश करना चाहते है तो आपको गिल्ट, मीडियम-टु-लोंग ड्यूरेशन और लोंग ड्यूरेशन फंड जैसी लंबी अवधि की योजनाओं का विकल्प चुनना चाहिए. हालांकि, ये लंबी परिपक्वता वाली स्कीम में कम परिपक्वता वाली स्कीम के मुकाबले ज्यादा उतार-चढाव आते है. एक्सपर्ट कहते है कि, लंबी मैच्योरिटी वाले प्लान की वोलेटिलिटी से बचने के लिए निवेशक को छोटी अवधि वाले प्लान हर 3-4 साल के लिए खरीदने चाहिए.
औसत मैच्योरिटी चेक करे विभिन्न फंड की औसत मैच्योरिटी अलग-अलग होती है, जिसके आधार पर उसमें कितना डिफॉल्ट रिस्क, क्रेडिट रेटिंग रिस्क, इंटरेस्ट रेट रिस्क, और चेंज इन परसेप्शन ऑफ इंटरेस्ट रेट रिस्क (change in perception of interest rate risk) है वह पता चलता है. अगर इनमें से कोई भी रिस्क है तो फंड के NAV में भारी गिरावट आएगी और यह फंड उस नुकसान से उबरने में काफी समय लगाएगा. इससे बचने का सिर्फ एक ही तरीका है कि आप इस फंड में लंबे समय तक निवेशित रहें. अब यह लंबा समय कितना होना चाहिए इसके लिए भी अलग अलग सिद्धांत हैं. आपको किसी डेट म्यूचुअल फंड में कम से कम उसकी औसत मैच्योरिटी के बराबर समय तक जरूर निवेश करना चाहिए.
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