हमारे देश के लोग निवेश करने के लिए गोल्ड को सबसे अच्छा जरिया मानते हैं. हालांकि ये रेगुलर इनकम नहीं देता है, ये उतार-चढ़ाव के समय में पोर्टफोलियो इंश्योरेंस के तौर पर काम करता है. जबकि बढ़ती कीमत के कारण गोल्ड(Gold) ने लॉन्ग टर्म में अच्छा रिटर्न दिया है. सीनियर सिटीजन (senior citizen) आमतौर पर रेगुलर इनकम की तलाश में रहते हैं , ऐसे में उन्हें इक्विटी जैसे जोखिम भरे निवेश के लिए कम एलोकेशन करना चाहिए. अब सवाल यह उठता है कि आपने अपनी वर्किंग लाइफ के दौरान गोल्ड (Gold) में निवेश किया है, तो क्या आपको इसे तब तक बनाए रखना चाहिए जब आप रिटायरमेंट (Retirement)के करीब ना पहुंच गए हों या फिर रिटायर हो चुके हों.
महंगाई किसी भी इन्वेस्टर की सबसे बड़ी दुश्मन होती है अगर यह लंबे समय तक बनी रहती है तो लड़ाई और भी मुश्किल हो जाती है. लंबे समय में, महंगाई आपके मनी परचेज पावर पर असर डाल सकती है. महंगाई से लड़ने के लिए, खास तौर से हेल्थ केयर इन्फ्लेशन, जो आम तौर पर कंज्यूमर प्राइस इन्फ्लेशन से ज्यादा है, आपको पहले से अच्छी तैयारी करनी होगी. ऐसे में गोल्ड (Gold) खुद के लिए एक अच्छी संपत्ति बन जाता है. महंगाई के समय में गोल्ड (Gold) अच्छा प्रदर्शन करता है. महंगाई के साथ गोल्ड (Gold) की कीमतें भी ऊपर जाती हैं. अलंकित लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर अंकित अग्रवाल ने कहा, “विभिन्न एसेट क्लास में, गोल्ड को अक्सर महंगाई के खिलाफ बचाव के तौर पर देखा जाता है” ये परचेसिंग पॉवर में होने वाले नुकसान से निपट सकता है.
यदि आप एक ऐसा पोर्टफोलियो बनाने जा रहे हैं जो लंबे समय में आपके लाइफ स्टाइल को बनाए रखने में आपकी मदद करेगा, तो इसमें कुछ इक्विटी कॉम्पोनेंट जरूर होना चाहिए. एक्सपर्ट का कहना है कि आपके पास डाइवर्स इक्विटी पोर्टफोलियो में लगभग 10 प्रतिशत एलोकेशन होना चाहिए स्टॉक, इंडेक्स फंड, लार्ज-कैप फंड या मल्टी-कैप फंड. रिटायर होने पर, आपको सेक्टोरल या स्मॉल-कैप फोकस्ड फंडों में निवेश करने से बचना चाहिए. लेकिन जब आप इक्विटी फंडों को पैसा लगाते हैं, तो आप उतार-चढ़ाव का अनुभव करते हैं, 2008 में ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस या 2020 के कोविड -19 महामारी के नतीजों बारे में बताने की जरूरत नहीं है. अग्रवाल ने कहा “निवेश पोर्टफोलियो में गोल्ड रखने का खास कारण है. विभिन्न एसेट क्लास में, गोल्ड (Gold) को अक्सर महंगाई के खिलाफ बचाव माना जाता है”
सीनियर सिटीजन आमतौर पर फिक्स्ड डिपॉजिट, सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम, प्रधानमंत्री वय वंदना योजना में बड़ी रकम निवेश करते हैं. जिसे समय से पहले निकालने पर पेनल्टी लगती है. इक्विटी में निवेश जल्दी बेचा जा सकता है लेकिन यह भी वोलेटाइल मार्केट फेज के अधीन है. हालांकि, इक्विटी की तुलना में गोल्ड (Gold) कम वोलेटाइल एसेट है. गोल्ड (Gold) में निवेश, अगर गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड या गोल्ड सेविंग फंड का उपयोग करके किया जाता है, तो इमरजेंसी में लिक्विडिटी प्रोवाइड करता है.
इन्वेस्टमेंट एक्सपर्ट का कहना है कि रिटायरमेंट पोर्टफोलियो में गोल्ड (Gold) की जगह होती है, लेकिन इसे लंबे समय तक बनाए रखना पड़ता है. गोल्ड रिटर्न के मामले में एक cyclical एसेट है इसलिए इसे पोर्टफोलियो में जोड़ा जा सकता है लेकिन जब इसकी सीमा 7 साल से ज्यादा है. 24 कैरेट गोल्ड (Gold) ने जुलाई-2011 से जुलाई-2016 तक 5 साल की अवधि में 4.3% CAGR दिया है और पिछले 10 साल का CAGR 6.5% रहा है. हालांकि, गोल्ड पर पिछले 1 साल का रिटर्न 8% नेगेटिव रहा है. वेल्थ लैडर डायरेक्ट के फाउंडर एस श्रीधरन ने कहा, हम निवेशकों को सलाह देते हैं कि अगर इन्वेस्ट करने की सीमा 7 साल से कम है तो वो अपने पोर्टफोलियो में सोना जोड़ने से बचें. अग्रवाल ने पेपर गोल्ड (Gold) के जरिए निवेश की सलाह दी. अग्रवाल ने कहा, “निवेशकों को रिटायरमेंट से पहले गोल्ड में निवेश करने पर विचार करना चाहिए. आपको फिजिकल गोल्ड के बजाय पेपर गोल्ड – गोल्ड एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ETF), फंड-ऑफ-फंड और सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) के माध्यम से निवेश करने पर विचार करना चाहिए. ये ज्यादा कॉस्ट इफेक्टिव और ज्यादा लिक्विड हैं”
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