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पोर्टफोलियो को रीबैलेंस करके कमा सकते हैं मुनाफा, ये है तरीका

Portfolio Rebalancing: पोर्टफोलियो री-बैलेंसिंग एक तकनीक है, जिसके द्वारा एसेट एलोकेशन और रिस्क प्रोफाइल को मैनेज कर के अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.

  • हिमाली पटेल
  • Last Updated : September 21, 2021, 13:23 IST
डायवर्सिफिकेशन महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है और म्यूचुअल फंड निवेश के लिए ये बेहद जरूरी भी हो जाता है.
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एक निवेशक के रूप में आप अक्सर सुनते होंगे कि अपने पोर्टफोलियो को रिव्यू करना कितना महत्वपूर्ण है. लेकिन, रिव्यू करने के बाद भी क्या आप पोर्टफोलियो को रीबैलेंस करते हैं? पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग एक ऐसी तकनीक है, जिसके जरिए एसेट एलोकेशन और रिस्क प्रोफाइल को मैनेज कर के अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.

इस रणनीति में कुछ निवेशों को कम करके और मौजूदा सिक्योरिटीज में किसी के निवेश को बढ़ाना या नई सिक्योरिटीज खरीदना आदि शामिल होता है. कम से कम साल में एक बार निवेशकों को एसेट एलोकेशन जरूर करना चाहिए. समय-समय पर पोर्टफोलियो को रीबैलेंस करने से सालाना रिटर्न बढ़ने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है.

पोर्टफोलियो री-बैलेंसिंग

पोर्टफोलियो री-बैलेंसिंग एक प्रक्रिया है जिसके जरिए पोर्टफोलियो में एसेट के अनुपात में बदलाव कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, एक निवेशक निवेश के समय 50% शेयरों में और 50% बॉन्ड में निवेश करना चुन सकता है. कुछ समय बाद इक्विटी अच्छा प्रदर्शन करती है और इक्विटी एलोकेशन बढ़कर 65% हो जाता है. अब ओरिजिनल एसेट एलोकेशन पर वापस जाना जरूरी है.

पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग में अंडरपरफॉर्मिंग एसेट्स को बेचना और उन्हें नए के साथ बदलना होता है, जिससे पोर्टफोलियो को अच्छी ग्रोथ मिलती है और आप अपने फाइनेंशियल लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं. इसके साथ ही ऐसा करने से आप उन निवेशों से बाहर आ जाते हैं, जो अनुमानित दिशा में नहीं जा रहे होते हैं.

नियमित रूप से पोर्टफोलियो की री-बैलेंसिंग से निवेश का अनुशासन बना रहता है. जोखिम कम करने में भी मदद मिलती है. इसमें इस बात का भी ध्यान रखना पड़ता है कि पोर्टफोलियो आपके फाइनेंशियल लक्ष्य को पूरा करने में मददगार साबित हो.

कब करना होता है पोर्टफोलियो री-बैलेंस

  • विरासत में मिली संपत्ति की बिक्री से आय में वृद्धि या आपके पति या पत्नी ने जॉब छोड़ दी हो. दोनों ही केस में जोखिम लेने की आपकी इच्छा पर एसेट एलोकेशन पर दो अलग-अलग प्रभाव पड़ते हैं.
  • उम्र के साथ जोखिम सहने की क्षमता कम होती जाती है. जिस तरह से कोई व्यक्ति किसी फंड को देखता है जो समय के साथ बढ़ता है. उसी प्रकार पोर्टफोलियो रिव्यू करने से जोखिम सहने की क्षमता और विभिन्न प्रकार के एसेट के प्रति जोखिम के बीच का अंतर समाप्त हो जाता है.
  • एसेट क्लास का प्रदर्शन आपके शुरुआती एसेट एलोकेशन को प्रभावित करता है. प्रत्येक एसेट क्लास के भीतर हरेक फंड का समय-समय पर मूल्यांकन और री-बैलेंसिंग करना भी जरूरी होता है.
  • ऐसे सिनेरियो पर विचार करें जिसमें आप अपने बच्चे की स्कूली शिक्षा के लिए सेविंग्स कर रहे हैं. आप चाहते हैं कि बच्चा भारत में अंडरग्रैजुएट की पढ़ाई पूरी करे. लेकिन फिर उसके द्वारा चुने गए सब्जेक्ट्स को देखकर आपने उसे विदेश भेजने का फैसला किया. ऐसी परिस्थितियों में आपकी पूरी गणना खराब हो जाएगी. आप भुगतान की किस विधि का उपयोग करेंगे? ये वैसी परिस्थितियां हैं, जहां पोर्टफोलियो और उद्देश्यों का समय-समय पर मूल्यांकन करके री-बैलेंसिंग से सहायता मिल सकती है.
Published - September 21, 2021, 01:23 IST

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