PFRDA और NPS Trust अब अलग-अलग होने जा रहे हैं. इसके लिए PFRDA Act में संशोधन जरूरी है. माना जा रहा है कि मानसून सत्र में ही इस एक्ट में संशोधन का बिल पास हो सकता है. हालांकि, इन दोनों के अलग होने की प्रक्रिया पहले से ही चल रही है. एनपीएस ट्रस्ट में इसके लिए नए लोगों की भर्ती भी की जा रही है. अब सवाल यह है कि इन दोनों के अलग होने की जरूरत क्या है और अलग होने से ग्राहकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा. हमने इस बारे में एक्सपर्ट्स से बात की है. आइए जानते हैं कि उन्होंने क्या कहा.
सेबी रजिस्टर्ड निवेश सलाहकार जितेंद्र सोलंकी ने बताया कि पीएफआरडीए एक रेगुलेटरी बॉडी है और इसका काम नियामकीय चीजें देखना होता है. वहीं, एनपीएस ट्रस्ट एनपीएस का प्रबंधन देखता है. एनपीएस के फंड मैनेजर्स क्या कर रहे हैं और पैसे कहां-कहां जा रहे हैं, इसका प्रबंधन करना एनपीएस ट्रस्ट का काम है. अभी तक एनपीएस के डे-टू-डे फंड का प्रबंधन भी पीएफआरडीए की देखरेख में होता था.
सोलंकी ने बताया कि दोनों को अलग करने से एनपीएस फंड का एक अलग सीईओ होगा और अपने कर्मचारी होंगे. तब एनपीएस की रकम के प्रबंधन की जिम्मेदारी पीएफआरडीए से हट जाएगी. इसका सीधा फायदा यह होगा कि दक्षता बढे़गी और खर्च घटेगा. उन्होंने बताया कि जैसे सेबी और म्यूचुअल फंड ट्रस्ट अलग-अलग हैं, वैसे ही पीएफआरडीए और एनपीएस ट्रस्ट भी अलग-अलग हो जाएंगे.
वहीं, टैक्स एवं निवेश सलाहकार बलवंत जैन ने बताया कि पीएफआरडीए और एनपीएस ट्रस्ट को अलग करने से दोनों का अपने-अपने काम पर फोकस होगा, जो सभी के लिए फायदेमंद है. उन्होंने बताया कि बहुत सारे एनपीएस के मैटर पेंडिंग हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं आ रहा है. जैसे एनपीएस के टियर-2 टैक्सेशन के बारे में अभी तक कोई स्पष्टीकरण नहीं है. अलग होने के बाद इन कार्यों में तेजी आएगी.