म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) निवेशकों के लिए ‘फाइनेंशियल पोर्टफोलियो’ को सिंपल रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जब उनके पास कई कैटेगरी में म्यूचुअल फंड स्कीम्स का ढेर हो. चीजें तब और जटिल हो जाती हैं जब एक आइडियल म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) पोर्टफोलियो होने का आइडिया कंफ्यूज करने वाला होता है. कई फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स का मानना है कि एक आदर्श म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो जैसी कोई बात नहीं है. डेज़र्व के को-फाउंडर वैभव पोरवाल ने कहा, “इस सवाल का जवाब निवेशकों के उद्देश्यों के आधार पर अलग-अलग होता है. निवेश बहुत ही पर्सनल होता है और निवेशकों की आवश्यकताओं को समझना म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो बनाने का स्टार्टिंग पॉइंट है.”
हालांकि, कोई वन-साइज-फिट-ऑल म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो टेम्पलेट नहीं है, पोर्टफोलियो सिलेक्शन उम्र, इनकम, फाइनेंशियल गोल और रिस्क सहने की क्षमता जैसे फैक्टर पर डिपेंड करता है.
ट्रस्टप्लूटस वेल्थ (इंडिया) के MD और CEO समीर कौल ने समझाया, “कॉन्सेंट्रेशन रिस्क से बचने के लिए इक्विटी, डेट और गोल्ड जैसे विभिन्न एसेट क्लास में निवेश करके पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करना बहुत जरूरी है. पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करने का मतलब है स्कीम्स और एसेट क्लास में इन्वेस्टमेंट एलोकेट करना, जिससे अलग-अलग फंड मैनेजमेंट स्टाइल से फायदा मिल सके.”
इसके अलावा, अपने एसेट को विभिन्न एसेट क्लास में फैलाना हमेशा एक अच्छा प्लान है. निओ मनी के बिजनेस हेड, स्वप्निल भास्कर ने कहा, “समय के साथ फंड मैनेजर्स के लिए लॉन्ग टर्म में बेंचमार्क को लगातार पार करना मुश्किल होता जा रहा है, किसी के पोर्टफोलियो में अनावश्यक फेरबदल से बचने के लिए पैसिव फंड्स में निवेश करना समझदारी है.” पोरवाल ने कहा, “एसेट एलोकेशन 90% रिटर्न में योगदान देता है: सही एसेट एलोकेशन हासिल करना पोर्टफोलियो क्रिएट करने का सबसे महत्वपूर्ण कदम है.
यह कदम निवेशकों के एसेट एलोकेशन को उनके इन्वेस्टमेंट ऑब्जेक्टिव के साथ अलाइन (संरेखित) करता है.” एक्सपर्ट्स का सुझाव है कि इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश लार्ज, मिड, स्मॉल और फ्लेक्सी कैप फंडों के बीच अच्छी तरह से किया जाना चाहिए. यही तरीका डेट म्यूचुअल फंड के लिए अपनाया जाना चाहिए.
कौल ने कहा, “डेट में, निवेशक लिक्विड फंड (इमरजेंसी कॉर्पस के लिए – आदर्श रूप से 3- 6 महीने का बेसिक घरेलू खर्च), छोटी अवधि और मध्यम अवधि के फंड शामिल कर सकते हैं. स्कीम में ड्यूरेशन रिस्क को कैलकुलेट करने के लिए म्यूचुअल फंड स्कीम का पोर्टफोलियो कंपोजिशन समझना जरूरी है. ”
पोर्टफोलियो पर चर्चा करते समय, दो चीजों को नहीं भूला जा सकता जो हैं पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग और पोर्टफोलियो रिव्यू. अपने रिस्क एक्सपोजर को कम करने के लिए, आपने समय के साथ कई अलग-अलग तरह के निवेश होंगे. ऐसा समय भी आपने देखा होगा जब आपके निवेश ने अच्छा परफॉर्म किया और ऐसा समय भी जब मार्केट कंडीशन की वजह से उन्होंने अच्छा परफॉर्म नहीं किया. इसलिए, समय-समय पर अपने एसेट को रिव्यू करना और आवश्यकतानुसार अपने पोर्टफोलियो को रीबैलेंस करना जरूरी है.
रिव्यू के बाद, अपने रिस्क एक्सपोजर को कम करने के लिए अपने पोर्टफोलियो को समय-समय पर रीबैलेंस करना आवश्यक है और यह सुनिश्चित करना कि आपकी होल्डिंग केवल एक इन्वेस्टमेंट, एसेट क्लास या फंड की सफलता या विफलता पर निर्भर नहीं है.
LXME की फाउंडर प्रीति राठी गुप्ता ने कहा, “पोर्टफोलियो की समय-समय पर रीबैलेंसिंग (इक्विटी और डेट के बीच) उतनी ही जरूरी है जितना कि एक अच्छा पोर्टफोलियो बनाना. फिर धीरे-धीरे आप कम रिस्क वाले निवेश पर स्विच कर सकते हैं जैसे-जैसे अपने रिटायरमेंट के करीब आते हैं.”
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