एक्सचेंज-ट्रेडेड-फंड, जिसे आमतौर पर ETF के तौर पर जाना जाता है, एक इन्वेस्टमेंट इंस्ट्रूमेंट हैं जो सिक्योरिटीज को स्टॉक एक्सचेंजों पर एक सामान्य शेयर की तरह ट्रेड करते हैं. ये नेचर से पैसिव हैं, ETF आम तौर पर एक इंडेक्स, सेक्टर, थीम या कमोडिटी और बॉन्ड जैसे एसेट को ट्रैक और मिरर करते हैं. भारत में, ETF का सेगमेंट धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है और कई म्यूचुअल फंड हाउस इन्वेस्टर्स को ETF ऑफर कर रहे हैं. दुनिया भर में, ETF तेजी से उन इन्वेस्टर्स की पसंद बनते जा रहे हैं जो वेल्थ क्रिएशन को खोए बिना अपनी इन्वेस्टमेंट कॉस्ट को कम रखना चाहते हैं.
ETF कई तरह के होते हैं जिनमें डेट या बॉन्ड ETF, इक्विटी या स्टॉक ETF, इंडस्ट्री-स्पेसिफिक ETF, इंडेक्स-स्पेसिफिक ETF, कमोडिटी बेस्ड ETF जैसे सोना और चांदी, और कई दूसरे ETF शामिल हैं. NSC में 100 से ज्यादा ETF लिस्टेड हैं. ETF एक अलग तरह का इन्वेस्टमेंट है और इन्वेस्टर्स को उन्हें अपने पोर्टफोलियो में शामिल करने से पहले बेसिक बातें जाननी चाहिए. ETF में निवेश करने से पहले निम्नलिखित बातों को समझना है.
a) ETF बनाम म्यूचुअल फंड: अक्सर, निवेशक ETF को म्यूचुअल फंड समझते हैं, जो सच नहीं है. म्युचुअल फंड इंडेक्स-ट्रैकिंग भी हैं, लेकिन उन्हें इस तरह से एक्टिवली मैनेज किया जाता है कि वो इंडेक्स को बीट करते हैं. दूसरी ओर, ETF स्टॉक एक्सचेंज में ट्रेड किया जाने वाला एक इन्वेस्टमेंट फंड है. यह एक पोर्टफोलियो को असेंबल करके इंडेक्स के प्राइस मूवमेंट और रिटर्न को मैच करने की कोशिश करता है.
b) डीमैट अकाउंट: ETF में इन्वेस्ट करने के लिए आपको एक डीमैट अकाउंट की जरूरत होती है. चूंकि ETF एक्सचेंज-लिस्टेड इंस्ट्रूमेंट हैं, इसलिए इसमें निवेश करने के लिए आपके पास एक एक्टिव डीमैट अकाउंट होना चाहिए.
c) ट्रेडिंग: जैसा कि नाम से पता चलता है, ETF को किसी भी दूसरे स्टॉक की तरह एक्सचेंजों पर ट्रेड किया जाता है. ETF की कीमतों में पूरे ट्रेडिंग सेशन में उतार-चढ़ाव देखा जाता है. जिस तरह एक इन्वेस्टर जितनी बार चाहे उतनी बार स्टॉक खरीद और बेच सकता है, उसी तरह ETF को भी ट्रेडिंग आवर के दौरान किसी भी समय खरीदा और बेचा जा सकता है. ETF म्युचुअल फंड की तरह नहीं हैं जो मार्केट का समय समाप्त होने के बाद सिर्फ एक बार ट्रेड करते हैं.
d) लिक्विडिटी इश्यू: चूंकि ETF अभी भी भारत में विकसित हो रहे हैं और अपनी शुरुआती स्टेज में हैं, लिक्विडिटी कभी-कभी एक समस्या हो सकती है. ETF की यूनिट उतनी आसानी से ट्रेड नहीं की जा सकती हैं, जैसे कि इंडिविजुअल स्टॉक की यूनिट की जा सकती हैं. किसी एसेट का मार्केट साइज जितना ज्यादा होगा, लिक्विडिटी उतनी ही बेहतर होगी.
e) एक्सपेंस: ETF की बहुत कम फीस इसे लंबे समय में एक आकर्षक और बहुत कॉस्ट इफेक्टिव इन्वेस्टमेंट बनाता है. रेगुलर इक्विटी म्यूचुअल फंड में 2.5% के एक्सपेंस रेश्यो के मुकाबले, ETF से जुड़े खर्च आम तौर पर 0.5% से कम होते हैं और कुछ कैटेगरीज में 0.1% तक कम हो सकते हैं.
f) डायवर्सिफिकेशन: चूंकि एक ETF कई सिक्योरिटीज ऑफर करता है, हर यूनिट स्टॉक, एसेट या सेक्टर में डायवर्सिफिकेशन प्रोवाइड करती है;जो ETF के टाइप पर निर्भर करता है. इसलिए, ETF इन्वेस्टमेंट कॉन्सेंट्रेशन रिस्क को कम करता है. कई अंडरलाइंग सिक्योरिटीज की वजह से डायवर्सिफिकेशन के लिए ETF एक अच्छा ऑप्शन है.
g) टैक्स इम्पलिकेशन: जो इन्वेस्टर्स ETF को प्रॉफिट बुक करने के लिए बेचते हैं, वो कैपिटल गेन टैक्स के दायरे में आते हैं, जिसे ETF की सिक्योरिटीज के नेचर के आधार पर कैलकुलेट किया जाता है
i) इक्विटी ETF पर टैक्स: कैपिटल गेन टैक्स दो तरह के होते हैं – शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स. खरीदने के 12 महीनों के भीतर यूनिट की बिक्री से मिले प्रॉफिट पर शॉर्ट टर्म गेन टैक्स लागू किया जाता है. सरचार्ज और दूसरे सेस टैक्स को छोड़कर टैक्स रेट 15% निर्धारित किया गया है. यदि यूनिट 12 महीने से अधिक समय तक रखने के बाद बेची जाती हैं, तो उस पर मिले प्रॉफिट पर लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स लागू होता है.
इक्विटी ETF के लिए, यदि गेन अमाउंट 1 लाख रुपये तक है तो उस पर कोई लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स नहीं है. हालांकि, इससे ज्यादा के प्रॉफिट पर बिना किसी इंडेक्सेशन बेनिफिट के 10% के रेट से टैक्स लगाया जाएगा.
ii) गोल्ड, डेट और इंटरनेशनल ETF पर टैक्स: ETF के दूसरे एसेट जैसे गोल्ड ETF, डेट ETF या इंटरनेशनल ETF के लिए शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म की डेफिनेशन बदल जाती है. ऐसी ETF कैटेगरी के लिए, लॉन्ग टर्म का मतलब 36 महीने या उससे अधिक है जबकि शॉर्ट टर्म का मतलब 36 महीने से कम है. इन एक्सचेंज-ट्रेडेड-फंड पर लगने वाला टैक्स रेट समान हैं. इंडेक्सेशन बेनिफिट्स के साथ 20% लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स है. यदि कोई निवेशक 36 महीने के अंदर यूनिट बेचता है, तो शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन, यदि कोई हो तो उनकी सालाना इनकम में जोड़ा जाएगा और लागू टैक्स इन्वेस्टर के इनकम टैक्स स्लैब के अनुसार होगा.
ऐसे समय में जब एक्टिवली मैनेज्ड फंडों को हायर अल्फा (बेंचमार्क से अधिक) रिटर्न बनाए रखना मुश्किल हो रहा है, ETF में निवेश लॉन्ग टर्म में निवेश का एक बढ़िया तरीका बन सकता है. वहीं, ETF इन्वेस्टर्स को डायवर्सिफिकेशन का फायदा भी देते हैं. इसलिए ETF में हर इन्वेस्टर के पोर्टफोलियो का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनने की क्षमता है.
(लेखक BankBazaar.com के सीईओ हैं)
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