वित्त वर्ष 2020-21 के लिए 30 सितंबर इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की आखिरी तारीख है, इसका मतलब अब आपके पास कुछ ही दिन शेष बचे हैं. निवेशक फिजिकल और डिजिटल दोनों फॉर्म में सोने (gold) में निवेश करते हैं. गोल्ड में निवेश करने वालों को इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते वक्त इसकी जानकारी देनी होती है. सोने को हमेशा से सुरक्षित निवेश माना जाता है. इसलिए, आपके चुने हुए सोने (gold) के निवेश के तरीके के आधार पर, आपको IT रिटर्न के नियमों को जानना चाहिए. उदाहरण के लिए, गोल्ड बॉन्ड के जरिए गोल्ड (gold) में निवेश करने वाले निवेशकों को फिजिकल गोल्ड खरीदने वालों की तुलना में अलग टैक्स देनदारी होगी.
फिजिकल सोने में निवेश करना भारतीय समाज में सबसे आम है. एक भारतीय परिवार में गहनों या सिक्कों के रूप में भौतिक सोना विरासत में मिलना बेहद आम बात होती है. निवेशक को सोना खरीदने या रखने के 36 महीने के भीतर उसे बेचने पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स लागू होता है.
साथ ही, सोने की बिक्री से मिलने वाले रिटर्न को निवेशक की सालाना कमाई में जोड़ा जाता है. इसके साथ ही शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन के लिए उस पर लागू आयकर स्लैब दर के के मुताबिक टैक्स लगता है.
लॉन्ग टर्म कैपिटल लाभ के मामले में, एक व्यक्ति को कुल वैल्यूएशन का 20% इनकम टैक्स के रूप में देना होगा. अतिरिक्त 4% सेस लगता है. अगर तीन साल से अधिक समय बाद सोना बेचा जाता है तो इसे लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन माना जाएगा और वही नियम लागू होंगे. इसमें टैक्स बिक्री की कमाई के आधार पर तय होगा, आय पर होगा, चाहें लाभ हो या हानि?
डिजिटल गोल्ड को भी फिजिकल गोल्ड जैसे माना जाता है. ये गोल्ड में निवेश का एक नया तरीका है, जो तेजी से पॉपुलर हो रहा है. डिजिटल गोल्ड में इनवेस्टमेंट अलग अलग वॉलेट ऐप्स और बैंक ऐप्स के जरिए संभव है. आप न्यूनतम एक रुपए से डिजिटल गोल्ड में इनवेस्ट कर सकते हैं.
डिजिटल गोल्ड में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स पर 4% सेस और सरचार्ज के साथ रिटर्न पर 20% टैक्स लगता है. अगर डिजिटल गोल्ड को 36 महीने से कम समय के लिए रखा जाता है, तो रिटर्न पर सीधे टैक्स नहीं लगता है.
पैसिव सोने के निवेश में म्यूचुअल फंड, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) और सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (एसजीबी) शामिल हैं. इन सभी में, सोना वर्चुअल रूप में होता है न कि फिजिकल फॉर्म में.
म्यूचुअल फंड और गोल्ड ईटीएफ पर टैक्स फिजिकल गोल्ड के समान है. दूसरी ओर, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड से मिलने वाले रिटर्न पर अलग तरह से टैक्स लगता है. उदाहरण के लिए, गोल्ड म्यूचुअल फंड या ईटीएफ के जरिए निवेश करने पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन के लिए 20% टैक्स के साथ 4% सेस लगाया जाता है.
दूसरी ओर, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में, निवेशक प्रति वर्ष 2.5% का ब्याज अर्जित करते हैं, जिसे अन्य स्रोतों से आय के रूप में वर्गीकृत किया जाता है और करदाता के टैक्स ब्रैकेट के अनुसार कर लगाया जाता है।
दूसरी ओर, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में, निवेशक सालाना 2.5% की ब्याज अर्जित करते हैं, जिसे दूसरे स्रोतों से आय के रूप में माना जाता है. इसके बाद निवेशक को टैक्स ब्रैकेट के अनुसार इनकम टैक्स देना होता है.
साथ ही एसजीबी निवेश के 8 साल बाद निवेशक का रिटर्न पूरी तरह से टैक्स फ्री होगा. आमतौर पर, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड 5 साल की मिनिमम न्यूनतम लॉक-इन पीरियड के साथ आते हैं, और अगर इस समय के बाद और मैच्योरिटी तक पहुंचने से पहले किसी भी समय होल्डिंग बेची जाती है, तो ऐसे लेनदेन से सभी रिटर्न को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन माना जाएगा. इस पर 20% इनकम टैक्स के साथ साथ 4% सेस और फिजिकल गोल्ड जैसा सरचार्ज भी देना पड़ेगा.
टैक्स एक्सपर्ट्स का सुझाव है कि आईटीआर दाखिल करते समय सभी को अपने पास मौजूद सोने की घोषणा करनी चाहिए. आईटी एक्सपर्ट अरविंद अग्रवाल के मुताबिक “जब आप अपना इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करने जा रहे हैं तो वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए सितंबर के इस महीने के अंत तक, अपनी सोने की होल्डिंग को दर्ज करना न भूलें, चाहे वह फिजिकल हो या डिजिटल या वर्चुअल फॉर्म में. वरना, आप पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है.”
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