फंड ऑफ फंड्स (FoF) म्यूचुअल फंड की ऐसी स्कीमें है जो दूसरी स्कीमों में निवेश करती हैं. इस तरह किसी एसेट क्लास में सीधे निवेश करने की जगह फंड मैनेजर उस स्कीम में पैसा लगाते हैं जिसका पहले से ही इसमें निवेश है. उदाहरण के लिए अगर फंड मैनेजर सोने में निवेश करना चाहता है तो वह सोने में निवेश करने वाली गोल्ड स्कीम में पैसा लगाएगा. इसका मतलब यह है कि FoF में कंपनी के शेयर या बॉन्ड नहीं होते हैं. बजाय इसके FoF अन्य स्कीमों की यूनिटें होल्ड करते हैं. एक FoF अपने फंड हाउस या अन्य फंड हाउस की कई स्कीमों में निवेश कर सकता है. ऐसे निवेशक जो जोखिम घटाने के लिए अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करना चाहते हैं, वे इनमें पैसा लगा सकते हैं.
विदेशी म्यूचुअल फंड में भी निवेश संभव
फंड ऑफ फंड्स घरेलू भी हो सकते हैं या विदेशी भी. विदेशी फंड ऑफ फंड के जरिये फंड मैनेजर इंटरनेशल म्यूचुअल फंड स्कीमों में निवेश कर सकते हैं. ऐसी कई स्कीमें हैं, जो डेट और इक्विटी फंडों की मिली-जुली स्कीमों में निवेश करती हैं. ऐसे कई फंड कई एसेट क्लास वाले फंड में भी निवेश करते हैं.फंड ऑफ फंड्स निवेशकों को लिक्विडिटी मुहैया कराने में भी मददगार होते हैं या फिर ये बगैर डी-मैट अकाउंट के भी निवेश की सुविधा देता है.
फंड ऑफ फंड में निवेश के फायदे?
FoF में निवेश का सबसे बड़ा फायदा यह है कि फंड मैनेजर की तरफ से रीबैलेंसिंग (rebalancing) की जाती है तो निवेशक को कैपिटल गेंस (capital gains) पर टैक्स नहीं देना पड़ता है. इसलिए जब फंड ऑफ फंड डेट और इक्विटी के बीच में एसेट एलोकेशन (Asset Allocation) में जरूरी बदलाव करता है तो आपको कैपिटल गेंस पर टैक्स नहीं देना होता है. इसमें निवेश का दूसरा फायदा यह है कि आपको ट्रैक करने के लिए सिर्फ एक एनएवी होती है. आपको अलग फंडों में निवेश करने की जरूरत नहीं रह जाती है.
चूंकि FoF का प्रबंधन फंड मैनेजर करता है, जिससे आपको अपने पैसे की चिंता करने की जरूरत नहीं रहती है. फंड मैनेजर काफी प्रोफेशनल होते हैं. उन्हें पैसे के प्रबंधन का व्यापक अनुभव होता है. फंड ऑफ फंड के माध्यम से आप सीमित पैसे से कई तरह के एसेट क्लास में निवेश करते हैं. आपको अलग-अलग इन एसेट क्लास में निवेश करने में दिक्कत आ सकती है.
कैसे लगता है टैक्स
फंड ऑफ फंड्स को इक्विटी-ओरिएंटेड फंड की कैटेगरी में रखा जाता है. अगर यह भारतीय शेयरों वाले ईटीएफ में कम से कम 90 फीसदी निवेश करता है, जो फिर भारतीय में लिस्टेड कंपनियों के शेयरों में निवेश करता है तो इस पर इक्विटी शेयर में निवेश पर होने वाले कैपिटल गेन पर लागू टैक्स ही देय होता है. हालांकि इंटरनेशनल फंड्स में निवेश करने वाले फंड ऑफ फंड के रिटर्न पर किसी भी अन्य डेट फंड पर मिलने वाले रिटर्न की तरह ही टैक्स लगता है. अगर 36 महीने से पहले शेयर बेचे जाते हैं तो शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगता है. वहीं इससे ज्यादा महीनों के बाद शेयर बेचे जाते हैं तो इंडेक्सेशन बेनिफिट के साथ 20 फीसदी टैक्स लगता है.
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