जीवन का सबसे बड़ा फैसला होता है अपना जीवन साथी चुनना. जब कई चीजों की बात आती है तो ये जरूरी हो जाता है की पति-पत्नी दोनों का दृष्टिकोण एक हो. फाइनेंशियल प्लानिंग के लिए दोनों की आम सहमति होना जरूरी है. नवविवाहितों को इन 4 चीजों पर चर्चा जरूर करनी चाहिए.
टैक्सेशन एक मुश्किल टॉपिक है और फैमिली के लिए बहुत पर्सनल है. शादी से पहले हर इंडिविजुअल इसे अलग से फाइल कर टैक्स पे करता है. शादी हो जाने के बाद अगर दोनों पार्टनर कमा रहे हैं, तो हो सकता है कि एडिशनल टैक्स बचाने की गुंजाइश न हो. हालांकि केवल एक कमाने वाला है तो कुछ एडिशनल टैक्स बेनिफिट हो सकते हैं. जो कपल खास तौर से मेडिकल इंश्योरेंस के संबंध में और हाउस प्रॉपर्टी पर नेशनल रेंटल इनकम के संबंध में प्राप्त कर सकते हैं.
एक जॉइंट सेविंग अकाउंट और डेबिट या क्रेडिट कार्ड बनाना फायदेमंद हो सकता है, जिससे दोनों खरीदारी कर सकें. कपल इस बारे में बात कर सकते हैं कि दोनों को हर महीने उस अकाउंट में कितना कंट्रीब्यूट करना चाहिए. इसके कई फायदे हैं. यह फाइनेंशियल डिसिप्लिन लाता है कि आपको एक निश्चित अमाउंट ही खर्च करना है. आपको खर्चे ट्रैक करना आसान होता है. क्योंकि नियमित खर्चों का बजट पहले से तय होता है. इस बात की संभावना कम होती है कि एक पार्टनर को ऐसा लगे है कि दूसरा जायदा फायदा उठा रहा है या अपने जीवनसाथी के खर्च का विरोध कर रहा है. यह हर इंडिविजुअल को यह भी क्लियर करता है कि उनका कितना खर्च उनके अपने अकाउंट से होता है और इसलिए पर्सनल बजट में भी मदद कर सकता है.
इंश्योरेंस की जरूरतों का आकलन करना महत्वपूर्ण है. शादी से पहले ज्यादातर लोगों को लाइफ इंश्योरेंस की जरूरत महसूस नहीं होती क्योंकि उन पर कोई फाइनेंशियली डिपेंड नहीं होता. शादी से पहले इंश्योरेंस लिया गया है तो शादी के बाद, यदि दोनों पार्टनर कमा रहे हैं, तो हो सकता है कि प्रत्येक पार्टनर के कवरेज को ज्यादा बढ़ाने की जरूरत न हो. हालांकि केवल एक कमाने वाला सदस्य है, तो लाइफ इंश्योरेंस की जरूरत को समझते हुए एक उपयुक्त कवर लेना जरूरी है. लाइफ इंश्योरेंस की तरह ही, परिवार की जरूरत के हिसाब से हेल्थ इंश्योरेंस का दोबारा आकलन करना चाहिए.
हर व्यक्ति अलग है और उसी तरह उसके लाइफ के गोल्स भी. कई लोग इस बात से हैरान होते हैं कि उनके पार्टनर के फाइनेंशियल गोल कितने अलग हैं. इस बारे में बात करना जरूरी है कि दोनों के इंडिविजुअली क्या फाइनेंशियल गोल हैं. एक कपल के रूप में उनकी क्या अपेक्षाएं हैं. कई बार जब बच्चों की एजुकेशन की बात आती है तो दोनों का नजरिया अलग होता है. कुछ अपने बच्चों को बोर्डिंग स्कूल भेजना चाहते हैं, जबकि उनका पार्टनर बच्चे को आस-पास के स्कूल भेजना चाहता है. कुछ चाहते हैं कि उनके बच्चे विदेश में आगे की पढ़ाई करें, जबकि उनके पार्टनर चाहते हैं कि वो घर के करीब पढ़ाई करें. कोई एजुकेशन के लिए पहले से सेविंग करना चाहते हैं, जबकि दूसरा इसे लोन आदि के जरिए फंड करना चाहता है.
यह घर खरीदने या कार खरीदने जैसे दूसरे ज्वाइंट गोल के लिए भी सही है. इनमें से हर अप्रोच में ट्रेड-ऑफ है और कपल को इन ट्रेड ऑफ के बारे में बातचीत करने और अपने फाइनेंशियल गोल्स के बारे में आम सहमति बनाने की आवश्यकता है. एक बार जब इन फाइनेंशियल गोल के लिए क्लियरिटी आ जाएगी, तो निवेश की प्लानिंग वहीं से होगी.
इनमें से हर पॉइंट में जो एलिमेंट कॉमन है वो है कम्युनिकेशन. परिवार के सभी सदस्यों की फाइनेंस पर आम सहमति के लिए कम्युनिकेशन और रेगुलर डिस्कशन जरूरी है. फैमिली के फाइनेंशियल गोल को हासिल करने के लिए एक साथ काम करना और यह सुनिश्चित करना कि यह लॉन्ग टर्म में सफल हो बहुत जरूरी है.
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