Corporate FD: सुरक्षित निवेश के लिए परंपरागत निवेशक एफडी करवाना ज्यादा पसंद करते हैं. बाकी विकल्पों की तुलना में एफडी ज्यादा सुरक्षित निवेश है लेकिन इसमें रिटर्न थोड़ा कम है. अगर निवेशकों को एफडी में ज्यादा रिटर्न मिलने लगे तो इससे अच्छा और सुरक्षित विकल्प कोई नहीं हो सकता है. कॉरपोरेट एफडी आपको बढ़िया ब्याज और रिटर्न का वादा करती है. ये कॉरपोरेट एफडी बैंक एफडी के जैसे ही हैं. कंपनियां/एनबीएफसी कॉरपोरेट एफडी पर बढ़िया ब्याज का ऑफर देती हैं. अपनी व्यापारिक जरूरत के हिसाब से कंपनियां खासकर NBFCs जनता के निवेश के जरिए बाजार से पैसा उठाती हैं. कंपनियां जैसे बजाज फिनसर्व, एचडीएफसी, आईसीआईसीआई, श्रीराम प्रॉपर्टी आदि बढ़िया ब्याज दर पर कॉरपोरेट एफडी का ऑफर देती हैं.
व्यवसाय में शामिल जोखिमों को ध्यान में रखते हुए वे निवेशकों को आकर्षित करने के लिए ज्यादा ब्याज दर का भुगतान करते हैं. आम तौर पर कॉरपोरेट FD ब्याज दर 6% से 8.5% तक होती है, जो राशि और जमा की अवधि पर निर्भर करती है.
कॉरपोरेट FD की ब्याज दर 5 साल के कार्यकाल के लिए 7% जितनी अधिक है.
अगर आप एसबीआई के साथ 5 साल के लिए एफडी पर विचार करते हैं तो यह आपको 5.4% का रिटर्न देगा. जबकि बजाज फिनसर्व की FD की दर 7.2% है. श्रीराम फाइनेंस आपको उसी अवधि के लिए सालाना 8.4% ब्याज देगा.
हमेशा याद रखें कि अगर कंपनी डिफॉल्ट करती है तो आपका जमा किया गया पैसा जोखिम में है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक निवेश का जोखिम आम तौर पर ब्याज दर के सीधे अनुपात में होता है.
यह ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि सभी एनबीएफसी/कंपनियां जो पैसा जमा करती हैं, उन्हें आरबीआई और कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा निर्धारित नियमों और दिशानिर्देशों का पालन करना पड़ता है. लेकिन फिर भी निवेशकों को निवेश करने से पहले कंपनी की रेटिंग और इतिहास देख लेना चाहिए.
CRISIL, ICRA जैसी रेटिंग एजेंसियां उन कंपनियों को रेटिंग देती हैं जो जनता से पैसा लेकर डिपोजिट करती हैं. ये एजेंसियां कंपनी के ट्रैक रिकॉर्ड को देखती हैं कि ब्याज दर और रिपेमेंट के शेड्यूल आदि को निवेशकों के सामने रखा जा रहा है.
कंपनियों को एएए, एए, बीबीबी, और इसी तरह की रेटिंग दी जाती है. एएए उच्चतम रेटिंग है. इसका मतलब है कि कंपनी के पास एक ठोस बैलेंस शीट है. एनबीएफसी/कंपनियों को जनता के पैसों को डिपोजिट करने के लिए न्यूनतम बीबीबी रेटिंग बनाए रखनी होती है.
कॉरपोरेट फिक्स्ड डिपॉजिट की अवधि आमतौर पर एक से सात साल के बीच होती है. और आपके पास उस सीमा के भीतर किसी भी अवधि को चुनने की सुविधा है.
इसलिए अगर आप सिर्फ किसी लक्ष्य को बनाकर एक साल के लिए चुनना चाहते हैं तो एक साल चुन सकते हैं.
अगर आप लॉन्ग टर्म के लिए एफडी रखना चाहते हैं तो उसके अनुसार कार्यकाल चुन सकते हैं. यह सुविधा आपको बैंकों में भी मिलती है.
आरबीआई के दिशानिर्देशों के अनुसार, सभी सावधि जमाओं पर न्यूनतम 3 महीने की पेनल्टी अवधि होनी चाहिए. यानी अगर आप निवेश शुरू करने के पहले तीन महीनों के भीतर अपना पैसा निकालते हैं, तो आपको जल्दी निकालने के लिए आप पर पेनल्टी लगेगी.
इसके अलावा, बैंक/एनबीएफसी/कंपनी ये तय करेगी कि पेनल्टी का कार्यकाल कितना होगा. कॉरपोरेट FD के लिए पेनल्टी अवधि आमतौर पर बैंक FD से कम होती है.
कॉरपोरेट एफडी के लिए 6 महीने के बाद पैसा निकालने की अनुमति है, जो कंपनी के नियमों और रेगुलेशन के अधीन है.
कॉरपोरेट FD से मिलने वाली ब्याज ‘अन्य स्रोतों से आय’ के रूप में मानी जाती है. इस आपकी स्लैब दर के अनुसार टैक्स लगता है.
इसका मतलब है कि अगर कुल ग्रॉस आय 10% टैक्स ब्रैकेट के भीतर है, तो आपको ब्याज आय पर 10% टैक्स देना होगा. यदि टैक्स स्लैब दर 30% है तो हर वित्तीय वर्ष में ज्यादा टैक्स चुकाना होगा. इस आय पर कोई टीडीएस नहीं लगता है.
सीएफए के अरविंद अग्रवाल सलाह देते हैं. “शॉर्ट से मीडियम टर्म के निवेश के लिए कॉरपोरेट FD आपके पैसे को डेट और म्यूचुअल फंड में लगाने का एक अच्छा विकल्प है. लेकिन निवेश करने से पहले कंपनी की रेटिंग को जरूर देख लेना चाहिए.
अग्रवाल ने आगे कहा कि “इन FD में कुछ हद तक जोखिम शामिल होता है और निवेशक को इस को ध्यान में रखना चाहिए. अपने कुल निवेश का अधिकतम 10% -12% कॉर्पोरेट FD में निवेश करना बेहतर है, इससे अधिक नहीं.”
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