किसी भी रिश्ते में भरोसे के साथ जरूरी है कि दोनों ओर से योगदान बराबरी का हो. अब ये योगदान एक दूसरे के लिए समय का हो या फिर वित्तीय मोर्चे पर. छोटे-मोटे मन मुटाव को घाव गहरा नहीं होता लेकिन फाइनेंस, खर्च और प्लानिंग (Financial Planning) पर अगर गाड़ी के दोनों पहियों के बीच बैलेंस ना हो तो सफर मुश्किल हो जाएगा. कोविड-19 जैसे महामारी इस प्लानिंग और बैलेंस पर अलग चोट लगा सकती है.
अगर किसी एक की नौकरी चली गई या सैलरी कट हुआ तो ये पूरी फाइनेंशियल प्लानिंग (Financial Planning) पर असर करेगी. वहीं पति-पत्नी की सैलरी मे अगर फर्क है तो जरूरी है कि दोनों में फाइनेंशियल प्लानिंग को लेकर लक्ष्य और योगदान की सफाई रहे.
वर्लड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट (Global Gender Gap Report) के मुताबिक कोविड-19 महामारी की वजह से महिलाओं को समान स्तर पर आने में अब 135.6 साल लग सकते हैं जबकि पहले ये अनुमान 99.5 साल का था. इस रिपोर्ट के 14वें संस्करण में ये बताया गया है कि भारत 28 पायदान नीचे खिसकर 156 देशों की सूची में 140वें स्थान पर आ गया है.
हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कोविड-19 से बने आर्थिक संकट में महिलाओं के लिए नौकरी जाने का खतरा ज्यादा है. वहीं 2 साल पहले मॉन्स्टर इंडिया के एक सर्वे ने दर्शाया था कि भारत में महिलाएं पुरुषों से 19 फीसदी कम कमाती हैं. वहीं अगर पति की आय पत्नी से कम है तो भी प्लानिंग को लेकर कोई दिक्कतें ना हों इसलिए जरूरी है कि दोनों ओर से भागीदारी तय की जाए.
परिवार के लिए कुछ ऐसे लक्ष्य होंगे जिन्हें दोनों को मिलकर पूरा करना होगा जबकि कुछ ऐसे लक्ष्य भी हो सकते हैं जो पार्टनर अलग से प्लान कर रहे हैं. मसलन, घर खरीदने जैसे लक्ष्य साझा गोल है जबकि किसी ट्रिप या कोई बड़ा गिफ्ट खरीदने के लिए किया निवेश अकेले की प्लानिंग हो सकती है.
चार्टर्ड अकाउंटेंट और पेन मनी ब्लॉग की लेखिका लावण्या मोहन मानती हैं कि रिश्ते में बराबरी का मतलब हमेशा साम्यिक नहीं होता. महिलाओं और पुरुषों की आय में फर्क को देखते हुए, कपल्स को आपस में खुलकर बात करनी चाहिए कि अपने साझा लक्ष्यों के लिए कैसे प्लान और योगदान करना चाहते हैं.
उनका सुझाव है कि पार्टनर्स या तो अपनी आय के अनुपात मे योगदान दे सकते हैं या फिर अलग-अलग खर्च को वहन कर सकते हैं. मसलन, अगर एक पार्टनर घर के राशन-पानी, ग्रोसरी, सब्जियों आदि जैसे खर्च उठाता है तो दूसरा EMIs का भार संभाल सकता है.
जिंदगी के सफर में आप भले ही पार्टनर हों लेकिन अपना अलग से बैंक खाता होना बेहद जरूरी है. हालांकि, साझा खर्च के लिए एक जॉइंट अकाउंट रख सकते हैं.
लावण्या मोहन कहती हैं कि लक्ष्यों को लेकर पति-पत्नी को एक दूसरे से खुलकर बात करनी होगी. उन्हें पूरी पारदर्शिता के साथ अपने निजी लक्ष्य और वे कितना और कैसे बचा रहे हैं ये जानकारी साझा करनी चाहिए. अगर किसी एक ने अपनी किसी निजी जरूरत के लिए कोई कर्ज लिया है तो उसे अपने स्तर पर ही चुकाने की कोशिश करें. हालांकि. इस कर्ज की जानकारी पार्टनर को होना बेहद जरूरी है. इमरजेंसी होने पर ही दूसरा पार्टनर उसे चुकाए.
उदाहरण के तौर पर वे बताती है कि संबंध से पहले का अगर कोई कर्ज जारी है तो इसे उसी व्यक्ति को वहन करना चाहिए.
संभव है कि पति-पत्नी में से एक एग्रेसिव निवेशक हो जबकि दूसरा निवेश में जोखिम लेने से कतराता हो. ऐसे में भी उन्हें निवेश का एक हिस्सा कॉमन गोल्स के लिए लगाना चाहिए और वो भी उस विकल्प में जिसमें दोनों की सहमति हो.
मोहन किसी भी हेल्दी रिलेशनशिप में पारदर्शिता को गूढ मंत्र मानती हैं – अब पार्टनर मिलकर ये खुद तय करें कि वे पर्सनल फाइनेंस का कौन सा हिस्सा एक साथ प्लान करना चाहते हैं और क्या अलग रखना चाहते हैं.
होम लोन हो सेक्शन 80C, साझा प्लानिंग (Financial Planning) के कई फायदे हैं. लावण्या मोहन बताती हैं कि जॉइंट होम लोन लेने से ना सिर्फ प्रॉपर्टी पर बराबरी का हक होता है बल्कि इससे दोनों पार्टनर्स टैक्स देनदारी में होम लोन डिडक्शन ले सकते हैं. जॉइंट होम लोन लेने पर अक्सर लोन एलिजिबिल्टी भी बढ़ जाती है.
इसके अलावा टैक्स बचत वाले निवेश विकल्पों और इंश्योरेंस में एक साथ निवेश से अगर एक पार्टनर ने 80C की लिमिट पार कर ली है तो दूसरा उसे क्लेम कर सके.
इसके अलावा जरूरी है कि पति-पत्नी एक दूसरे अपने सभी निवेश और उनसे जुड़े नॉमिनेशन, वसीयत या वारिस की जानकारी दे कर रखें.
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