इन दिनों कई म्यूचुअल फंड (mutual fund – MF) नए एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (exchange traded fund – ETF) लॉन्च कर रहे हैं. कुछ ETF व्यापक रूप से डायवर्सिफाइड सूचकांकों को ट्रैक करते हैं, जबकि अन्य किसी सेक्टर या थीम पर ध्यान केंद्रित करते हैं. बुल मार्केट में इनमें से कुछ बाजार में अच्छे रिटर्न देने के लिए आकर्षक लग सकते हैं. यहां पांच कारक दिए गए हैं, जिन्हें आपको निवेश करते समय याद रखने चाहिए.
भारत में ETF अक्सर लिक्विडिटी की कमी के कारण काफी हद तक प्रभावित होते हैं. निफ्टी 50 और बैंक निफ्टी जैसे लोकप्रिय सूचकांकों पर नजर रखने वाले ETF को छोड़कर निवेशकों को नेट एसेट वैल्यू के पास ट्रेड करना मुश्किल हो सकता है. यदि आप एक हाई नेट वर्थ वाले व्यक्ति हैं या आपने बड़ी संख्या में इकाइयाँ जमा कर रखी है, तो लिक्विडिटी की कमी के कारण इन इकाइयों को बेचने में समस्या हो सकती है.
यदि आप ETF खरीद रहे हैं तो योजना के प्रबंधन के तहत संपत्ति और स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेडिंग वॉल्यूम की जांच जरूर कर ले और यदि अगर आप दोनों को कम पाते हैं, तो ऐसे में आप फंड ऑफ फंड रूट के जरिए निवेश करने पर विचार कर सकते हैं. कई बड़ी एएमसी ने ETF में फीड करने के लिए फंड ऑफ फंड स्कीम भी लॉन्च की है. ये एफओएफ योजनाएं दिन के अंत में लिक्विडिटी सुनिश्चित करती हैं, हालांकि इसके लिए अतिरिक्त चार्ज वसूला जाता है.
ETF के अंतर्निहित पोर्टफोलियो की जांच करें. इसके द्वारा ट्रैक किए गए इंडेक्स और इंडेक्स के घटकों की जांच करें. यदि इंडेक्स में बहुत कम स्टॉक हैं या एक या दो स्टॉक बड़े आवंटन किये गए हैं, तो आपको सावधान हो जाना चाहिए. यह अक्सर सेक्टोरल इंडेक्स ETF में होता है.
निफ्टी IT TRI पर नजर रखने वाले ETF का उदाहरण लेते हैं- इस इंडेक्स में केवल 10 स्टॉक हैं और इंफोसिस और TCS ने मिलकर इंडेक्स का 50% से अधिक हिस्सा लिया हुआ है. निवेश की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि सेक्टर कैसा परफॉर्म करता है और किसी एक स्टॉक में एक प्रतिकूल विकास जहां आवंटन बड़ा है, निवेश पर रिटर्न को कम कर सकता है और साथ ही साथ रिस्क को भी बढ़ा सकता है.
कई बार निवेशक पिछले रिटर्न को देखते हुए ETF का चयन करते हैं. यदि ETF ने हाल के दिनों में अच्छा प्रदर्शन किया है, तो यह माना जाता है कि यह अच्छा प्रदर्शन करता रहेगा. लेकिन, ऐसा करने से आप कभी-कभी एक ऐसे सेक्टर पर नज़र रखने वाले ETF में प्रवेश कर सकते हैं जो अपने पीक पर हो सकता है.
ऐसा ETF पिछले कुछ वर्षों या दिनों में बहुत अच्छे रिटर्न दिखा सकता है. लेकिन यह उस समय का सबसे अच्छा दांव नहीं हो सकता है. इसीलिए निवेश से पहले आपको यह पता लगाना होगा कि भविष्य में इस ETF से किस प्रकार का रिटर्न मिलने की सम्भावना है और उसके अनुसार अपनी रणनीति बनानी होगी. ऐसे में आप जरूरत पड़ने पर किसी एडवाइजर से सलाह भी ले सकते हैं.
अपने नकारात्मक पहलू को सीमित करने के लिए आपके पास एक डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो होना चाहिए. जब आप थीमैटिक ETF या सेक्टोरल ETF का चयन कर रहे हों, तो बुद्धिमानी से अपने पैसे को आवंटित करें. अपना सारा पैसा एक ही ETF की इकाइयों में न लगाएं. यदि आप केवल ETF पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं, तो आदर्श रूप से ETF का बुके खरीदें.
साथ ही वैकल्पिक रूप से, एक या दो ETF को सक्रिय रूप से प्रबंधित फ्लेक्सीकैप फंड के पोर्टफोलियो में जोड़ा जा सकता है. एसेट क्लास में डायवर्सिफिकेशन प्राप्त करने के लिए आप बॉन्ड या सोने में निवेश करने वाले ETF को भी चुन सकते हैं.
ETF की इकाइयों की बिक्री पर लाभ, टैक्स के अधीन आता हैं. भारतीय शेयरों में ETF निवेश को इक्विटी फंड के रूप में माना जाता है. बॉन्ड, गोल्ड या विदेशों में लिस्टेड शेयरों में निवेश करने वाले ETF को डेट फंड की तरह माना जाता है.
एक वर्ष से अधिक के लिए रखे गए इक्विटी ETF की इकाइयों की बिक्री पर प्राप्त लाभ को लॉन्ग टर्म गेन टैक्स के रूप में माना जाता है. यदि किसी फाइनेंशियल ईयर में आपका लाभ 1 लाख रुपये से अधिक है, तो उन पर 10% टैक्स लगाया जाता है. अन्य मामलों में, लाभ को शार्ट-टर्म कैपिटल गेन्स के रूप में माना जाता है और इस पर 15% की दर से टैक्स लगाया जाता है.
नॉन-इक्विटी ETF के मामले में तीन साल से अधिक के लिए रखे गए इक्विटी ETF की इकाइयों की बिक्री पर प्राप्त लाभ को लॉन्ग टर्म गेन टैक्स के रूप में माना जाता है और इन पर इंडेक्सेशन के बाद 20% का टैक्स लगता है. अन्य मामलों में, लाभ को शार्ट-टर्म कैपिटल गेन्स के रूप में माना जाता है और इस पर निवेशक की स्लैब रेट के अनुसार टैक्स लगाया जाता है.
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