भारत इस हफ्ते NSE पर 100वें ETF की लिस्टिंग का जश्न मना रहा है. इस मुकाम पर पहुंचने में हमें 19 साल लगे हैं और इसमें से 20 से ज्यादा ETF अकेले पिछले साल जुड़े हैं. इंडस्ट्री पर नजर रखने वालों का कहना है कि पैसिव इनवेस्टिंग में आगे और एक्शन दिखाई दे सकता है. और ऐसा हो भी क्यों न? ETF में कुछ ऐसी खूबियां हैं जो कि म्यूचुअल फंड की दूसरी कैटेगरीज में निवेशकों को नहीं मिलती हैं.
ये सस्ते होते हैं यानी इनका एक्सपेंस रेशियो कम होता है. इनमें शेयरों की तरह से ट्रेडिंग की फ्लेक्सिबिलिटी मिलती है और इन्हें छोटे टिकट साइज में खरीदा जा सकता है. इनकी मार्केट के कारोबार के वक्त खरीद-फरोख्त की जा सकती है. इससे इनवेस्टर्स को इंडेक्स में होने वाली तेजी का फायदा उठाने की सहूलियत मिलती है. इनमें म्यूचुअल फंड यूनिट्स के बेनेफिट भी मिलते हैं जिन्हें डीमैट खातों में रखा जाता है.
दूसरी ओर, ट्रेडिशनल म्यूचुअल फंड्स महंगे और कम फ्लेक्सिबिलिटी वाले होते हैं. इसके साथ ही, ETF इंडेक्स के साथ जुड़े होते हैं और इससे इनवेस्टर्स के लिए इन्हें ट्रैक करना आसान होता है.
19 जून को एडिट में मनी9 ने तर्क दिया था कि पैसिव इनवेस्टिंग पर निवेशकों को सक्रियता से नजर डालनी चाहिए.
यहां पढ़िए- पैसिव इनवेस्टिंग में एक्टिव होने का वक्त!
पैसिव इनवेस्टिंग को किसी भी इनवेस्टर के पोर्टफोलियो का हिस्सा होना चाहिए, लेकिन समूचा पोर्टफोलियो इसी का नहीं होना चाहिए. प्रोफेशनल तौर पर तैयार किए गए एसेट एलोकेशन निवेशकों को अच्छे और बुरे दोनों वक्त में मदद देते हैं. केवल पैसिव फंड से काम नहीं चलेगा.
इसकी कुछ वजहें भी हैं.
हालांकि, ETF एक सस्ता और आसान एंट्री पॉइंट मुहैया कराते हैं, लेकिन इनवेस्टर्स को इसमें सावधानी बरतनी चाहिए. मिसाल के तौर पर, इनवेस्टर्स ETF में शामिल स्टॉक्स के परफॉर्मेंस पर टिके होते हैं. इसमें किसी फंड मैनेजर का कोई दखल नहीं होता है. ये पूरी तरह से इंडेक्स पर आधारित होता है. ETF में कोई एक्टिव फंड मैनेजर नहीं होता है जो कि खबरों के हिसाब से इसकी रीबैलेंसिंग कर सके. ये फंड इंडेक्स के हिसाब से चलते हैं.
मिसाल के तौर पर, निफ्टी50 ETF जो कि देश की सबसे मशहूर ETF कैटेगरी है, इसमें हमेशा भारत की सबसे बड़ी 50 लिस्टेड कंपनियां ही शामिल रहेंगी. इसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता है. इस इंडेक्स की रीबैलेंसिंग एक्सचेंज वैल्यूएशन के आधार पर करता है.
ETF या इंडेक्स फंड्स में गिरावट का जोखिम 100% का होता है क्योंकि इक्विटी में ऐसा हो सकता है. इसमें कोई डेट एलोकेशन नहीं होता है. इसमें तेजी इंडेक्स के परफॉर्मेंस पर टिकी होती है.
चूंकि, फिलहाल मार्केट में तेजी है और इंडेक्स नई ऊंचाइयों पर पहुंच गए हैं, ऐसे में ETF एक जबरदस्त ऑप्शन लग रहा है. लेकिन, इस दुनिया में कुछ भी स्थाई भी नहीं है.
पर्सनल फाइनेंस पर ताजा अपडेट के लिए Money9 App डाउनलोड करें।