पेट्रोल और डीजल को छोड़ दिया जाए तो देश में गोल्ड ऐसी कमोडिटी है जिसकी कीमतों पर हर किसी की नजर रहती है. लेकिन, क्या आपको पता है कि ज्वैलरी की अलग-अलग दुकानों पर सोने की कीमतों में अंतर क्यों होता है? यहां हम आपको इसकी वजह बता रहे हैं.
एसोसिएशनों के तय दाम को मानने के लिए दुकानदार बाध्य नहीं
कोलकाता के ज्वैलर्स का कहना है कि हालांकि वेस्ट बंगाल बुलियन मर्चेंट्स एंड ज्वैलर्स एसोसिएशन (WBBMJA) हर दिन गोल्ड के दाम तय करता है. हालांकि, कोई भी ज्वैलरी दुकान इसे मानने के लिए बाध्य नहीं है. WBBMJA के असिस्टेंट सेक्रेटरी एस के चंद्रा कहते हैं, “WBBMJA की तय की गई कीमतों को मानना अनिवार्य नहीं है. दुकानदार अपने हिसाब से कीमतें तय कर सकते हैं.”
कोई रेगुलेटर नहीं
ऐसे में आपको एक ही इलाके में अलग-अलग दुकानों पर सोने की कीमतों में अंतर मिल सकता है. देश के बाकी हिस्सों की तरह से ही बंगाल में भी सोने की कीमतों को तय करने वाला कोई रेगुलेटर नहीं है.
हालांकि, कई आउटलेट्स एसोसिएशन की तय की गई कीमतों को मानते भी हैं. लेकिन, कई ज्वैलर्स अपने मन से गोल्ड की कीमतों को तय करते हैं और ये कीमत अक्सर WBBMJA की तय की गई कीमत से ज्यादा होती है. इससे यह साफ होता है कि इस पूरे कारोबार में कोई निश्चित नियम नहीं है.
हालांकि, घरेलू बाजार में गोल्ड की रिटेल और होलसेल कीमत तय करने की कोई रेगुलेटरी अथॉरटी मौजूद नहीं है.
इन फैक्टर्स पर निर्भर हैं गोल्ड के दाम
गोल्ड की कीमतें तय करने वाले फैक्टर्स में डिमांड और सप्लाई, महंगाई, इंपोर्ट ड्यूटी, जीएसटी, रुपये और डॉलर का एक्सचेंज रेट और ग्लोबल मार्केट में गोल्ड की कीमत शामिल हैं. जीएसटी और दूसरे स्थानीय टैक्स राज्यों के हिसाब से अलग-अलग होते हैं.
कुछ कारोबारी संस्थान रिजर्व बैंक के जारी किए गए रेट्स को भी मानते हैं.
हालांकि, लोगों के बीच गोल्ड की कीमतों को लेकर चर्चा हाल के वक्त में बढ़ी है. लेकिन, अलग-अलग आउटलेट्स पर इसकी कीमतों में अंतर एक आम बात है.
मार्च में बढ़ा इंपोर्ट
भारत गोल्ड का सबसे बड़ा इंपोर्टर है. देश में गोल्ड की 70-80 फीसदी डिमांड आयात के जरिए पूरी होती है. मार्च में देश में सोने का आयात 160 टन के साथ रिकॉर्ड पर पहुंच गया. इंपोर्ट ड्यूटी में गिरावट और कीमतों में कमजोरी आने के चलते मार्च में सोने का आयात बढ़ा है. पिछले साल अगस्त-सितंबर में गोल्ड के दाम रिकॉर्ड लेवल पर चले गए थे.
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