सोने (Gold) के इंपोर्ट को कम करने के मकसद से लाई गई गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम (Gold Monetisation Scheme) फिलहाल सफल होती हुई नहीं दिख रही है. मोनेटाइजेशन स्कीम के तहत 8 साल में महज 21 टन सोना ही अर्थव्यवस्था में आ पाया है. सरकार की इस स्कीम को लाने का मकसद था कि घरों और मंदिरों में रखे सोने को वापस अर्थव्यवस्था में लाया जाए. साथ ही गोल्ड इंपोर्ट पर निर्भरता को भी कम किया जा सके. बता दें कि नवंबर 2015 में सरकार ने गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम का ऐलान किया था.
घरों में 23,000-25,000 टन सोने का स्टॉक
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में बताया है कि मोनेटाइजेशन स्कीम के तहत 8 साल में सिर्फ 21 टन सोना ही अर्थव्यवस्था में आया है. दूसरी ओर WGC के मुताबिक भारतीय घरों में सोने का स्टॉक 23,000 और 25,000 टन के बीच रहने का अनुमान है जिसका आनुमानित मूल्य 1.4 ट्रिलियन डॉलर है. WGC के अनुसार वित्त वर्ष 2022-23 में भारत ने 651 टन सोने का इंपोर्ट किया था, जबकि देश का इंपोर्ट बिल इस अवधि में 31.7 अरब डॉलर था.
बढ़ते चालू खाते के घाटे को देखते हुए भारत के गोल्ड इंपोर्ट बिल को कम करने की जरूरत है. यही वजह है कि वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल घरों में पड़े सोने को जुटाने के साथ ही उसे ज्वैलर्स को उधार देकर इसको वापस उपयोग में लाने के लिए गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम को लोकप्रिय बनाने की कोशिश कर रहा है. बता दें कि 2015 में ही गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम के अलावा सरकार ने सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम भी लॉन्च की थी. गोल्ड बॉन्ड स्कीम के तहत अब तक 110 टन गोल्ड की बिक्री की जा चुकी है. रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा देखा जा रहा है कि गोल्ड बॉन्ड स्कीम के आने के बाद सोने की फिजिकल डिमांड एक हद तक कम हुई है और उसके परिणामस्वरूप आयात में कमी आई है.