यदि आप बॉन्ड में ट्रेडिंग करने का सोच रहे है तो आपको शेयर मार्केट के मुकाबले ज्यादा सावधानी रखनी होगी. बॉन्ड ट्रेडिंग के साथ जुड़े कुछ अहम मुद्दों को ध्यान में नहीं रखने पर तगडा नुकसान जेलने की नौबत आ सकती है. बॉन्ड में ट्रेडिंग करते समय आपको लिक्विडिटी, क्रेडिट रेटिंग, बॉन्ड यील्ड जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को समझना जरूरी है.
यहां हम आपको बता रहे हैं कि शेयर मार्केट के मुकाबले बॉन्ड में ट्रेडिंग करना कितना अलग हैः
शेयर ट्रेडिंग बनाम बॉन्ड ट्रेडिंग
Equitymath.in के फाउन्डर शशांक महेता बताते हैं, “शेयर की ट्रे़डिंग स्टॉक एक्सचेंज पर होती है, वहीं, बॉन्ड की ट्रेडिंग ओवर-द-काउंटर, यानी सेकेंडरी बॉन्ड मार्केट में मुमकिन है. शेयर मार्केट में काफी लिक्विडिटी होती है, उसकी तुलना में सेकेंडरी बॉन्ड मार्केट में कम लिक्विडिटी होती है. शेयर मार्केट में काफी उतार-चढ़ाव रहता है, वहीं बॉन्ड के सेकेंडरी मार्केट में उतार-चढ़ाव काफी कम होता है.” सिर्फ लाइसेंस-होल्डर ब्रोकर्स या डीलर के द्वारा बॉन्ड में ट्रेडिंग संभव है.
यील्ड का महत्व
सेबी-रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर धर्मेश कुमार भट्ट बताते हैं, “बॉन्ड्स में ट्रेडिंग करते वक्त सिर्फ मार्केट प्राइस नहीं, बल्कि, उसकी रेटिंग और यील्ड को ध्यान में रखना चाहिए. खराब क्वॉलिटी के बॉन्ड में घाटा होने की संभावना बढ़ जाती है.”
शेयर में भाव बढ़ता है तो आप उसे बेच कर मुनाफा कमाते हैं, लेकिन बॉन्ड में ऐसा नहीं है. बॉन्ड ट्रेडिंग में पैसा कमाने के लिए आपकी नजर यील्ड पर होनी जरूरी है.
एक्सपर्ट बताते हैं कि यील्ड ज्यादा हो तब खरीददारी करनी चाहिए और जब यील्ड कम हो जाए तब बॉन्ड बेचने चाहिए क्योंकि यील्ड नीचे जाती है तो बॉन्ड प्राइस ऊपर जाते हैं.
हालांकि, ये कहना आसान है, लेकिन करना मुश्किल, क्योंकि बॉन्ड यील्ड का आधार लिक्विडिटी और रेटिंग्स जैसे अन्य फैक्टर पर निर्भर है.
लिक्विडिटी
सेकेंडरी मार्केट में बॉन्ड की सीधी खरीददारी करने में सावधानी न रखने पर पैसा गंवाने की संभावना ज्यादा रहती है क्योंकि अधिकांश बॉन्ड लिक्विड नहीं होते हैं, यानी कि जब आपको पैसे की जरूरत हो और आप बिक्री करने जाएं तब आप एग्जिट नहीं कर सकते.
आप ब्रोकर को सेल करने के लिए ऑर्डर तो देंगे, लेकिन बायर और भाव न मिलने की संभावना रहती है. यदि बॉन्ड कम लिक्विडिटी वाला होगा तो आपको को भारी लॉस हो सकता है.
क्रेडिट रेटिंग
बॉन्ड्स की क्रेडिट रेटिंग की जानकारी लेने के बाद ही उसमें निवेश करना चाहिए. ज्यादा कूपन ऑफर करने वाली कंपनी की क्रेडिट रेटिंग चेक करके ही उसमें निवेश करना चाहिए.
कम रेटिंग वाली कंपनी के डिफॉल्ट होने का जोखिम ज्यादा होता है और तब आपको कुछ नहीं मिलेगा. शेयर मार्केट में आप शेयर बेच के थोड़ा पैसा निकाल भी सकते है, लेकिन बॉन्ड में लिक्विडिटी की कमी होने के कारण आप डिस्ट्रेस्ड बॉन्ड को बेच नहीं पाएंगे. यदि कंपनी के पास आपको चुकाने का पैसा नहीं होगा तो आपको मूलधन से भी हाथ धोना पड़ेगा.
कंपनी की फाइनेंशियल परिस्थितिओं को समझे बिना बॉन्ड में ट्रेडिंग न करें. सेकेंडरी मार्केट में बॉन्ड ट्रेडिंग करने से पहले मार्केट की गहरी समझ होनी जरूरी है.
इंटरेस्ट ट्रेंड की समझ होनी आवश्यक है और सिक्योरिटी सिलेक्शन में सावधानी रखनी पड़ती है. यदि इन मामलों में आप कमजोर हैं तो बेहतर है कि म्यूचुअल फंड के जरिए निवेश करें.
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